Wednesday, February 20, 2013
Friday, February 8, 2013
ताज़ा मुक्तक........
आँखें न जाने क्या क्या सह जाती है
कभी जलती हैं आग सी ,कभी दरिया सी बह जाती हैं
क्यूँ पढता नहीं 'वो' इन्हें
लब जो कह पाते नहीं ये आँखें अक्सर कह जाती हैं.......पूनम माटिया 'पिंक'
Taza muqtak ......
Aankhe'n na jaane kya kya sah jaati hain
kabhi jalti hain aag sii ,kabhi dariya se bah jati hain
kyun padhta nahi 'vo' inhe
lab jo kah paate nahi ye aankhe'n aksar kah jaati hain .....poonam matia'pink'
Sunday, February 3, 2013
पत्थर के बुतों का देश ...........
मानसिक और शारीरिक बलात्कार दोनों ही चीर कर रख देते हैं एक लड़की की अस्मत | कभी जिन्दा रहते लड़की लाश सी बन जाती है कभी जीने लायक नहीं रहती और कभी ख़ुदकुशी कर इस संसार को छोड़ जाती है |
दिल्ली में गैंग रेप केस की शिकार एक लड़की
‘दामिनी/निर्भया /अमानत’ जो खुद तो चिर निंद्रा में सो गयी पर देश के हर इंसान को
झकझोर कर लंबी गहरी नींद से उठा गयी| उस लड़की के अदम्य साहस को नमन| इसके साथ ही
पटियाला के बादशाहपुर की उस लड़की को भी नमन जिसने दो दिन पहले जांच में पूछे गए इन
सवालों (‘कैसे उन्होंने तुम्हारे छाती को छुआ ?क्या उन्होंने पहले जींस खोली या शर्ट? कितनी बार उन्होंने तुम्हारा
बलात्कार किया ? सबसे पहले किसने छुआ ?) से परेशान
होकर आत्महत्या कर ली| न जाने क्या मनस्थिति रही होगी
उसकी, सोच कर भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं| एक तरह से ईश्वर का शुक्रिया कि ‘दामिनी’
को इस परिस्तिथि से तो बचा लिया| पता नहीं वो भी अत्यंत शारीरिक पीड़ा के बाद ऐसी
मानसिक पीढा सह भी पाती या नहीं|
यह कैसी
व्यस्था बना दी है हमने? कैसा समाज है यह ? बात तो यह है की ऐसी परिस्थिति ही क्यूँ आये? क्यूँ नहीं हम अपनी
सोच बदलें, क्यूँ नहीं कानूनों को स-शक्त करें, क्यूँ नहीं सुरक्षा-व्यवस्था उचित तरीके
सेचाक-चौबस रहे| प्रश्न बहुत हैं, जवाब नहीं मिलते|
ईश्वर उन दोनों
भारत की बेटियों की आत्मा को शांति प्रदान करे जो असमय ही इस
दुनिया से चली गयी| युद्द स्तर पर मंथन ज़रूरी है ताकि समाजिक,
राजनीतिक, कानूनी
,मीडिया ,फिल्म्स और पारिवारिक ,सभी क्षेत्रों में सोच और
व्यवहारिक अंतर आ सके
|असभ्य और पाषाण हृदय
हो गयी है मानसिकता |लगता है जैसे पत्थर के बुतों के देश
में जी रहें हैं
हम | ऐसे संवेदना विहीन समाज, जहाँ लड़की का कोई अस्तित्व नहीं है
,श्रद्धांजलि
देने का कार्यक्रम कहीं सिर्फ एक अनुष्ठान बनके न रह जाए |आज हम सबको
इन घटनाओ से सबक लेना है और
शपथ लेने है जिस से हम सब मिलकर देश में
सामाजिक , राजनितिक, क़ानूनी रूप से ऐसा सुरक्षित माहोल बनाए कि
फिर किसी लड़की
के साथ ऐसा न हो| ईश्वर हम सब को ऐसा करने के लिए साहस और सद्बुद्धि
दे|
आज औरत सिर्फ एक भोग का समान बनके रह गयी है और लोग उसे इस्तेमाल
कर छोड़ देने की वस्तु समझने लगे हैं कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी गर मैं औरत की भारत
के बाजारों में आसानी से उपलब्ध चीनी समान से तुलना करूँ |अगर स्त्री को दुर्गा का
रूप न भी समझा जाये तो उसे एक साथ निभाने वाली जीवित ,सोचने समझने की शक्ति रखने
वाली इन्सान समझा जाना चाहिए |
जितना हम लडकियों को सीखा पाएं उतना अच्छा है जो उनके आत्म
विश्वास को बढ़ाएगा
और साथ ही छोटी-मोटी वारदात से उनको बचाएगा पर इस से भी हम वह सब
नहीं रोक
पाएंगे जो बहुत सारी घटनायो में हो रहा है मतलब गैंग रेप या कोई बड़ा
पुरुष शारीरिक
बल का इस्तेमाल कर किसी छोटी बच्ची के साथ ऐसा करता है या फिर कोई
पुरुष किसी
महिला को ब्लैक मेल करके या फिर किसी हथियार के सहारे ऐसा करता है|
अपनी
पंक्तियों के ज़रिये मई कुछ यूँ कह सकती हूँ ..