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Tuesday, June 18, 2013

फेसबुक के बेताज सरताज ........


दिन ब दिन यहाँ (फेसबुक पे ) 
नए नए बोस नज़र आने लगे हैं

नवांकुर हो या बरगद विशाल  
बस अपनी ही चलाने लगे हैं 

अंतर में झाँकने की फुर्सत नहीं  
दूसरों को शीशा दिखाने लगे हैं  

दिल नाम की चिड़िया रखते नहीं  
दिमाग से बन्दूक चलाने लगे है 

आत्म तुष्टि जरूरी है माना  
क्यूँ दूसरों पे ऊँगली उठाने लगे हैं  

धरती है विशाल ,वृहद् है आकाश  
क्यूँ अपनी ही परिधि बनाने लगे हैं  

समय बदलता है रहता नहीं स्थिर  
क्यूँ इस तत्थ्य को भुलाने लगे हैं  

प्रश्न उठाने लगें तो हैं अंतहीन  
क्यूँ बेवजह सर खुजाने लगे हैं ............poonam matia