Tuesday, December 30, 2014
My English Write ups at Citymag.in
http://citymag.in/articles/articledetails.php?articleid=482&title=Relationship%20does%20matter%20%E2%80%A6%E2%80%A6%20a%20few%20golden%20rules#.VKLNlsAA
http://citymag.in/articles/articledetails.php?articleid=485&title=Why%20ashamed%20being%20a%20HOMEMAKER%20?#.VKLNjsAA
http://citymag.in/articles/articledetails.php?articleid=509&title=bhrun%20hatya%20or%20female%20foeticide%20-%20Poem%20by%20Poonam%20Matia#.VKLNYsAA
http://citymag.in/articles/articledetails.php?articleid=523&title=Good%20touch%20or%20Bad%20touch%20-%20Save%20your%20children#.VKLO2sAA
http://citymag.in/articles/articledetails.php?articleid=485&title=Why%20ashamed%20being%20a%20HOMEMAKER%20?#.VKLNjsAA
http://citymag.in/articles/articledetails.php?articleid=509&title=bhrun%20hatya%20or%20female%20foeticide%20-%20Poem%20by%20Poonam%20Matia#.VKLNYsAA
http://citymag.in/articles/articledetails.php?articleid=523&title=Good%20touch%20or%20Bad%20touch%20-%20Save%20your%20children#.VKLO2sAA
Friday, December 19, 2014
प्यार की पहली फ़ुहार……रायबरेली के 'दिशेरा टाइम्स' में प्रकाशित
- Poonam Matiaप्यार की पहली फ़ुहार……..‘सभी दरवाज़े बंद ...आँगन में सन्नाटा सा ....सिर्फ एक खिड़की से आती हुई ट्यूब की रौशनी. अक्सर ही मेरी नज़र उस तरफ चली जाती थी जब भी टहलते हुए कुछ देर के लिए रूकती थी मैं. एक जगह बैठ के कभी पढने में मज़ा ही नहीं आता था . कभी कमरे में, कभी बगीचे में और कभी छत तक जाने वाली सीढ़ियों पर बैठ जाती थी अपनी किताबों और नोट्स का पुलिंदा लेकर. रजिस्टर हाथों में उठाकर घूम-घूम के रट्टा लगाती हुई जब भी मेरी निगाह खिड़की से बाहर जाती थी तो न जाने क्यूँ उस खुली खिड़की से आती हुई रौशनी को देख थम सी जाती थी, खोजी दिमाग में प्रश्न अनेक आते थे . कौन है वहां ,क्या कर रहा है ? कभी देखा ही नहीं किसी को वहां घुसते या निकलते! बस इन्ही प्रश्नों के जवाब खोजती एक दिन जिद्द सवार हो गयी मुझपर कि आज तो पता करना ही है वहां उस खिड़की के पार उस कमरे में कौन है जिसका मुझे कुछ अता-पता ही नहीं था . मेरे हाथ की किताब अचानक थम्म से गिर गयी जब मैंने वहां से एक गोरे से ,लम्बी कद-काठी वाले चश्मिश लड़के को सुबह छह बजे निकलते देखा. वह बिना इधर-उधर देखे अपनी ही किसी धुन में खोया ताला लगा कर चल दिया. आज जब यह दृश्य आँखों के सामने से गुज़र रहा है तो फिर वही खलबली सी है दिल में और एक अजीब सा अहसास है, ग्लानि भी है शायद . कितनी बचकाना सी हरकत की थी हम सहेलियों ने मिलकर, जब मैंने स्नेहा को बताया कि एक स्मार्ट सा लड़का उस किराये के कमरे में पढने आता है सी ए की परीक्षाओं के लिए. हाहाहा सब खोज खबर निकाल ली थी हमने अपनी सहेली टीना से जो उस घर के सामने ही रहती थी. टीना ने बताया था कि सिर्फ कुछ ही दिन पहले उसने वह कमरा रेंट पर लिया है और यह बात उसने भी अपने सोर्सेज यूज़ करके निकलवाई थी किसी से . खैर जब पता चल ही गया तो बरबस निगाह उस तरफ जाने लगी. कब आता है, कब जाता है? एक खेल या कोई प्रोजेक्ट सा बन गया था, जैसे कि उसके खत्म होने के बाद दुसरे प्रोजेस्ट्स की तरह को ग्रेड्स मिलने वाले हों . क्यूँ न बनता? आखिर वो इधर-उधर देखता ही नहीं था, जब कभी बाहर निकलता तो बस नज़रें नीचे किये हुए. मुझे तनिक भी स्वीकार्य नहीं था कि कोई ऐसे भी लड़के होते हैं जिन्हें अपने आस-पास देखने का मन न करे और सच कहूँ तो इन्सल्ट सी फील होती थी कि कैसे कोई सुगंधा यानि मुझे अनदेखा कर सकता है . हाहाहा! मेरी सहेलियों ने चने के झाड़ पे जो चढ़ा रखा था मुझे कि मुझसे सुंदर कोई है ही नहीं . यह रोज़ का किस्सा बन गया सुबह छह बजे खिड़की की ओर स्वत: ही नज़र चली जाती थी. उठी तो वैसे ही रहती थी पढने के लिए किन्तु घर में कहीं भी हूँ भाग कर जाफ़री, (हाँ, यही कहते थे अंग्रेजों के जमाने में बने उन क्वाटर्स के आखिरी कमरे को) में पहुँच जाती थी. दिन में हम सहेलियां भी सैर को उस घर के आगे से निकलती थी हंसती हुई और जानबूझ कर ऊंची आवाज़ में बात करती हुई और आखिरकार ‘उसने’ आँखे उठाकर देख ही लिया .वाओ! एक जीत का अहसास हुआ, मानो क़िला फ़तह कर लिया हो हमने . चलो अपनी और बातें फिर बताउंगी अभी बच्चों के स्कूल से वापस आने का समय हो गया है. हाहाहा! तुम भी बहुत मज़े लेकर सुन रहे हो, है न ?’ सुगंधा ने टेलीफोनिक साक्षात्कार को वहीँ रोक, अगले दिन का समय निश्चित किया और रसोई में जाकर खाने-पीने की तैयारी में ऐसे लग गयी जैसे कुछ हुआ ही न हो . ह्म्म्मम्म अब यह रसोई का काम , कपडे धोना ,घर साफ़ करना आदि-आदि के साथ फ्रीलांस रिपोर्टिंग करना उसकी दिनचर्या में शामिल जो था .इसी के सिलसिले में स्वप्निल ने उससे साक्षात्कार प्लान कर लिया था. ‘एक दिन मैंने जब खिड़की को खुले नहीं देखा तो बैचैनी सी होने लगी .कहीं उसने घर छोड़ तो नहीं दिया ,कहीं वो बीमार तो नहीं हो गया ? ऐसे ही अनगिनत सवाल ज़ेहन में उठने लगे’, सुगंधा खोई-खोई सी बोलती चली जा रही थी और स्वप्निल अपना माइक लिए उसके सामने बैठा उसके चेहरे के उतार-चड़ाव बड़े गौर से देख रहा था . आज वह उससे अपॉइंटमेंट ले घर ही आ गया था . ‘अचानक ही ‘वह’ (आज भी उसका नाम मुझे मालूम नहीं, क्यूंकि कभी बात ही नहीं हुई) आया और ताला खोलने लगा. मैंने चैन की सांस ली और वापस पढने ही बैठने वाली थी कि ‘उसने’ नज़रे घुमाकर चुपके से मेरे घर की ओर देखा. ओह! मैं झट से नीचे बैठ गयी ,कहीं वो मुझे देख न ले देखते हुए. इतने दिन से दिल में एक चाह थी कि ‘वो’ मुझे देखे तो सही और उस जब उसने देखा तो न जाने कितनी ही लहरें मेरे दिल में एक साथ ही उठ गयीं मानो कोई तूफ़ान ही न आ जाये’ , सुगंधा मुस्कुराते हुए कहती जा रही थी . स्वप्निल ने कुछ कहने के लिए अभी मुँह ही खोला था पर न जाने क्या सोच कर चुप हो गया और सुगंधा के हाव-भाव ऐसे देखने लगा जैसे आवाज़ के साथ वो भी माइक में रिकॉर्ड कर लेगा.
- contd....................
- Poonam Matia
‘मुझे वहां न पाकर ‘वो’ अन्दर चला गया और मैं वहीँ बुत बनी सोचती रह गयी कि आखिर ये मुझे हुआ क्या है,’ सुगंधा बोलती जा रही थी . ‘स्नेहा जब शाम को साथ पढने आई तो उसे मैंने सब बताया. उसने कहा कि चल ‘उसके’ घर के आगे घूम के आते हैं . मैं भी पगली सी ‘उसकी’ एक नज़र फिर से पाने को चल पड़ी. हमारी आवाजें सुनके ‘वो’ बाहर आया ,हाथ में तब भी किताब ही थी . ‘उसने’ हम दोंनो को देखा और अनमना सा वापस चला गया. फिर तो कमाल ही हो गया ,शाम को खिड़की से ‘उसका’ चेहरा नज़र आने लगा. हाहा हा! वो भी मेरी तरह घूम घूम के पढ़ने लगा था. नज़र से नज़र मिलती थी और बस फिर अपनी अपनी पढ़ाई में लग जाते थे हम दोनों. अब वो अपने हाथ में एक गुलाब का फूल भी लेकर पढने लगा था. हम सहेलियां यह देख बहुत ज़ोर–ज़ोर से हंसती थी और मुझे लगा कि प्रोजेक्ट ओवर.’ स्वप्निल ! जब मैं परीक्षा के बाद अपनी बुआ के घर कुछ दिन रह कर वापस आई तो मेरी निगाहें बरबस ही उसकी खिडकी की ओर मुड गयीं . वहां कोई नहीं था, न ही किसी के होने का आभास ही. पढ़ाई के बहाने से टीना के घर गयी तो पता चला कि ‘उसने’ बिना कोई कारण बताये रूम छोड़ दिया था.’ इतना कहते ही सुगंधा की आँखों में आंसू की बूँदें छलक आयीं और वह भीतर चली गयी. स्वप्निल सोच रहा था, ‘ये कौनसा सा अहसास था जो आज भी सुगंधा को उस अनजान लड़के से जोड़े हुए था या फिर यह वो अल्हड़ प्यार की फ़ुहार थी जो सुगंधा को आज भी बरबस भिगोये देती है.’
Thursday, December 18, 2014
इम्तिहान-ए-ज़ीस्त में फ़ेल हो गए......
भवें तनने लगी
पर पलकें नम होने लगी
अजीब सी परिस्थिति, विकट सा मायाजाल
कानों में गूंजते गोलियों के धमाके
टीवी कमेंटेटर के रुंधे स्वर
एक के बाद एक
‘बाल शहीदों’ की गिनती में इज़ाफा
माँओं ने कुछ बुने ख़ाब
सजाये पिताओं ने उनमे कुछ गौहर नायाब
सज संवर बाँध कमर में पेटी, गले में टाई
हर इम्तिहान को तैयार स्कूल को चले ‘नवाब’
पर अलामते बरसीं और
ज़िन्दगी की परीक्षा में ‘फ़ेल’ हो गए
ये मासूम आखिर क्यूँ जीवन की पटरी से
बे-वक़्त ‘डी-रेल’ हो गए?
पर पलकें नम होने लगी
अजीब सी परिस्थिति, विकट सा मायाजाल
कानों में गूंजते गोलियों के धमाके
टीवी कमेंटेटर के रुंधे स्वर
एक के बाद एक
‘बाल शहीदों’ की गिनती में इज़ाफा
माँओं ने कुछ बुने ख़ाब
सजाये पिताओं ने उनमे कुछ गौहर नायाब
सज संवर बाँध कमर में पेटी, गले में टाई
हर इम्तिहान को तैयार स्कूल को चले ‘नवाब’
पर अलामते बरसीं और
ज़िन्दगी की परीक्षा में ‘फ़ेल’ हो गए
ये मासूम आखिर क्यूँ जीवन की पटरी से
बे-वक़्त ‘डी-रेल’ हो गए?
‘जिहाद’ के नाम पर धमाके
तो पहले भी हुए बहुत
ऊंची इमारत, होटल, घर, मंदिर, संसद
सरहद के इस पार, सरहदों के उसपार
कभी ये दोषी ,कभी वो दोषी
समझाकर हर बार हमने ख़ुद को किया तैयार ,
मालूम हैं नहीं रुकेंगे ये दहशतगर्द
पर! इस दफ़े कुछ टूट गया है भीतर
‘झंडा’ कौनसा है? नहीं है ख़बर
क्या ‘गीता’, क्या ‘कुर’आन’
हर एक ‘ज़िन्दा’ है बस हैरान, परेशान
किसी तसव्वुर में ,किसी ज़ाविये से
इस खूँ का बहना जायज़ है क्या ???
कौनसा ज़ुल्म, कौनसा जुर्म , कौनसा कहर
बरपाया था नौ-निहालों ने ?
जो इम्तिहान-ए-ज़ीस्त में फ़ेल हो गए
ये मासूम आखिर क्यूँ जीवन की पटरी से
बे-वक़्त ‘डी-रेल’ हो गए?
तो पहले भी हुए बहुत
ऊंची इमारत, होटल, घर, मंदिर, संसद
सरहद के इस पार, सरहदों के उसपार
कभी ये दोषी ,कभी वो दोषी
समझाकर हर बार हमने ख़ुद को किया तैयार ,
मालूम हैं नहीं रुकेंगे ये दहशतगर्द
पर! इस दफ़े कुछ टूट गया है भीतर
‘झंडा’ कौनसा है? नहीं है ख़बर
क्या ‘गीता’, क्या ‘कुर’आन’
हर एक ‘ज़िन्दा’ है बस हैरान, परेशान
किसी तसव्वुर में ,किसी ज़ाविये से
इस खूँ का बहना जायज़ है क्या ???
कौनसा ज़ुल्म, कौनसा जुर्म , कौनसा कहर
बरपाया था नौ-निहालों ने ?
जो इम्तिहान-ए-ज़ीस्त में फ़ेल हो गए
ये मासूम आखिर क्यूँ जीवन की पटरी से
बे-वक़्त ‘डी-रेल’ हो गए?
पूनम माटिया 'पूनम'
Friday, December 12, 2014
Sunday, December 7, 2014
http://citymag.in/articles/articledetails.php?articleid=523&fb_action_ids=835882206454370&fb_action_types=og.comments
http://citymag.in/articles/articledetails.php?articleid=523&fb_action_ids=835882206454370&fb_action_types=og.comments
Read My Full article at @Citymag.in ............
Dear friends, you all must be wondering why I am talking about such philosophical facts. Actually, Childhood is the most pliable, soft and sponge like stage of life when good/bad/ugly , all have equal chances of getting absorbed. Simultaneously, this is ‘the age’ when it’s very difficult to offer difficult, rather I should say ,heavy sex-related information to sink in their, yet not matured minds .
Across the world and especially India, child sexual abuse is on all time high. Mentality of people, especially adults, has been observed to be ‘SICK’ ….. when we hear cases of rape of minors ranging from a few months to few years.
In addition, to our dismay, we find these rapists to be someone in the extended family or in the school or in the vicinity/neighbourhood.
Heart cries and mind aches when we hear reports of rape of young toddlers, preschoolers or primary school children, who haven’t even matured sexually what to say about their mental growth . As soon as something come up in media like in recent past when this type of incident happened in a Bangluru school , lots of discussions start and we see print and tele-media and now social media also to be engaged in hot discussions with pensive or bold statements coming from all sectors - social, political leaders demanding ‘death punishments’ and the like .
It is a tragedy that none wants to derive solutions ……. They only debate to score high among the speakers and to remain in headlines. ......Poonam matia
|
Read My Full article at @Citymag.in ............
Dear friends, you all must be wondering why I am talking about such philosophical facts. Actually, Childhood is the most pliable, soft and sponge like stage of life when good/bad/ugly , all have equal chances of getting absorbed. Simultaneously, this is ‘the age’ when it’s very difficult to offer difficult, rather I should say ,heavy sex-related information to sink in their, yet not matured minds .
Across the world and especially India, child sexual abuse is on all time high. Mentality of people, especially adults, has been observed to be ‘SICK’ ….. when we hear cases of rape of minors ranging from a few months to few years.
In addition, to our dismay, we find these rapists to be someone in the extended family or in the school or in the vicinity/neighbourhood.
Heart cries and mind aches when we hear reports of rape of young toddlers, preschoolers or primary school children, who haven’t even matured sexually what to say about their mental growth . As soon as something come up in media like in recent past when this type of incident happened in a Bangluru school , lots of discussions start and we see print and tele-media and now social media also to be engaged in hot discussions with pensive or bold statements coming from all sectors - social, political leaders demanding ‘death punishments’ and the like .
It is a tragedy that none wants to derive solutions ……. They only debate to score high among the speakers and to remain in headlines. ......Poonam matia
Saturday, December 6, 2014
समीक्षा पूनम माटिया द्वारा ............. कहकशां-रमेश सिद्धार्थ की दिलकश ग़ज़लें
कहकशां –
रमेश सिद्धार्थ की दिलकश ग़ज़लें
(वेदांत म्युज़िक क.)
इश्क़ जाने ख़ुदा कैसे, कब हो गया||
देखते- देखते ही ग़ज़ब हो गया ||
पीर- ओ-murshid मुर्शिद जो ढूँढा किये उम्र भर|
इक झलक में ही हासिल वो सब हो गया ||
इक झलक में ही हासिल वो सब हो गया ||
रोमांचित कर देने वाली आठ ग़ज़लों का नायब संग्रह
है ‘कहकशां’ ग़ज़ल के शौक़ीनो के लिए –जिसमे रमेश सिद्धार्थ ने एक से
बढकर एक मोती जड़ दिए हैं|
इश्क़ में इंसान क्या क्या हासिल कर सकता है और
किस कदर ख़ुदा की मेहरबानी उसपे अता होती है उसकी ताज़ा तरीन नुमाइंदगी देखने को
मिलती हैं रमेश सिद्धार्थ के इन अशआर में|
इश्क का नूर ज्यों ही उजागर हुआ|
ज़हन का हर ख़लल बेसबब हो गया ||
ज़हन का हर ख़लल बेसबब हो गया ||
रूहानी ख़ुशी और सुकूं मिलता है जब रोहित
चतुर्वेदी की दिलकश आवाज़ में एक के बाद एक खूबसूरत ग़ज़लें अपना रंग बिखेरती हैं|
तुम्हारे शाने से आती है ग़ैर की खुशबू |
मेरे यकीन को धोखा बताओगे कब तक ||
रिश्ते ,वफ़ा ,बेवफाई ,दूरियां ,यादें ,फुरक़त ..हर सिम्त घूम के आती है लेखक की सोच| .इसकी एक बानगी यूँ भी है-
ये जात –पात की दीवारें गर गिरानी हों|
पढ़ो न पोथियाँ,पढ़ लो कबीर काफी है ||
तुम्हारे शाने से आती है ग़ैर की खुशबू |
मेरे यकीन को धोखा बताओगे कब तक ||
रिश्ते ,वफ़ा ,बेवफाई ,दूरियां ,यादें ,फुरक़त ..हर सिम्त घूम के आती है लेखक की सोच| .इसकी एक बानगी यूँ भी है-
ये जात –पात की दीवारें गर गिरानी हों|
पढ़ो न पोथियाँ,पढ़ लो कबीर काफी है ||
गले मिलो तो सही, दिल पिघल ही जायेंगे |
कलह मिटाने को रंग और अबीर काफ़ी है ||
कलह मिटाने को रंग और अबीर काफ़ी है ||
एकल और युगल गायिकी , दोनों ने ही नए आयाम दिए
हैं ग़ज़लकार के अलफ़ाज़ को|.
ज़िन्दगी में गुज़रते हुए लम्हों और छूटते हुए रिश्तों के ज़ाविये से कई शे’र कहे गए हैं इन ग़ज़लों में जैसे ......
गुजरें लम्हों से वास्ता रखना ||
हमसे ज़्यादा न फ़ासला रखना ||
सूख जाए न प्यार का बिरवा ||
चंद पत्तों को तो हरा रखना ||
ज़िन्दगी में गुज़रते हुए लम्हों और छूटते हुए रिश्तों के ज़ाविये से कई शे’र कहे गए हैं इन ग़ज़लों में जैसे ......
गुजरें लम्हों से वास्ता रखना ||
हमसे ज़्यादा न फ़ासला रखना ||
सूख जाए न प्यार का बिरवा ||
चंद पत्तों को तो हरा रखना ||
रूमानी अहसास के कद्रदानो के लिए बार-बार सुनने
लायक| दिली मुबारकबाद जनाब रमेश सिद्धार्थ को|.
ग़ज़लकार –रमेश सिद्धार्थ
संगीत –विपिन सुनेजा
गायक-गायिका-रोहित चतुर्वेदी ,भावना
मूल्य -120 रूपये
.................
समीक्षा : पूनम माटिया ‘पूनम’
(लेखिका ,कवियित्री ,संपादिका )
poonam.matia@gmail.com