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Wednesday, March 4, 2015

ऐसे होली हम मनाते हैं..तब और अब



हमेशा की तरह उत्तरी भारत खासकर उत्तरप्रदेश , हरियाणा , राजस्थान और पंजाब के निवासियों की तरह दिल्ली में भी होली अपनी पूरी शानो-शौकत से मनाई जाती रही है| रंग ,अबीर ,गुलाल ,गुब्बारे और पिचकारियाँ हर बाज़ार की रौनक बढ़ाती हैं और गुंजिया मिठाई की दुकानों की|
मथुरा .वृन्दावन के मंदिरों से टीवी में सीधा प्रसारण किया जाता है और  राधा कृष्ण रास बनता है मुख्य आकर्षण जगह जगह फूलों की होली का|
हमारे घर में भी कांजी , भल्ले –सौंठ पूरी कचौरी बनते हैं और नेक के लिए  गुलाल की होली भी खेली जाती है| रेजिडेंट वेलफेयर सोसाइटी होली मंगलने (जलाने) की भी तैयारी ज़ोर-शोर से करती है| भाईचारे और सद्भावना का यह त्यौहार सभी के जीवन में खुशियों का प्रतीक होता है|
परन्तु चिंता का विषय यह है कि इसकी भव्यता में शनै: शनै: कमी आ रही है और ज़मीनी तौर पे अब लोग कम ही निकलते हैं घरों से अड़ोसी-पड़ोसी, मित्रों ,रिश्तेदारों से मिलने| हालांकि सोशल साइट्स जैसे फेसबुक आदि पे इसका कई दिन पहले से काफ़ी ज़ोर रहता है ..ज्यादा कुछ लिखने की बजाए मैं अपनी रचना  साझा करना चाहूंगी जिसमे वो सभी सन्दर्भ हैं जो चिंता का विषय हैं 


घर-घर खेली जाती थी 
आज सिमट गयी चर्चा में
, 
ग़ज़लों में
, कविता में, 
रौनक थी
 गली-मोहल्लों की
रंगों से सजते चेहरे थे
 
अब सजती फेसबुक की दीवारें
बस कवि-सम्मलेन कर-करके 
होली की होली
 हम जलाते हैं
ऐसे होली हम मनाते हैं


भर पिचकारी
, ले गुब्बारे
रंगे-पुते चेहरों के संग
 
घूमती थी टोलियाँ
घर-घर मचती थी
 अठखेलियाँ
सूनी-सूनी गलियों में
अब कुछ ही
 बच्चे देखे जाते हैं 
कूद-फांद मचा करके
बस थोड़ा सा इतराते हैं
 
ऐसे होली हम मनाते हैं
|

अपनेपराये अड़ोसी-पड़ोसी
सब मिलकर मिष्ठान कई बनाते थे
 
गुंजिया
, मठरी, कांजी, भल्ले 
संग मल-मल के
  रंग लगाते थे 
गूगल से
 कॉपी-पेस्ट कर 
रंग-मिठाई
, सजे कार्ड सिर्फ़
आज हम भिजवाते हैं
 
ऐसे होली हम मनाते हैं
 |

देवर-भाभी
, ननद-भौजाई, जीजा-साली 
राधा
कृष्ण सा रास रचा 
आनंद बड़ा उठाते थे
 
डरती-डरती बालाएं
अब अस्मत अपनी बचाने को
 
घर में ही सिमटी रह जाती
  
नेताओं के बड़े उदगार
अब मीडिया में सुंदर
 छवि बनाते हैं 
ऐसे होली हम मनाते हैं
 |

होली तो हो
ली , कहके टालें कैसे 
सुलझाने को समस्या
  
अब आगे कदम बढाते हैं
 
धर्म
संस्कृति, परम्परात्यौहार 
सब जुड़ें इक तार में
 
चलो इक नए सिरे से
 हम 
हाथों में हाथ मिलाते हैं
 
ऐसे होली हम मनाते हैं
|


पूनम माटिया ‘पूनम’
27.2.2015