Wednesday, September 26, 2012

एक आम इंसान कही खो रहा....



इन ऊँची -ऊँची गगन चुम्बी इमारतों में
एक आम इंसान कही खो रहा  

कभी सर ऊँचा कर चलता था
आज आस्तित्व भी धूमिल हो रहा  .

सपने उड़ान भर रहें है ऊंची 
लेकिन यथार्थ में धरातल को छू रहा 


आधुनिक समाज का सूटेड-बूटेड है पहनावा
चिंताजनक है स्तिथि, अंतर्मन जो खोखला हो रहा

रिश्तों में प्यार दिखाई दे बेशक
जरूरत के समय केवल एक दिखावा ही हो रहा  

रास्ते गाँव से शहर की तरफ आते रहे 
मगर वापस जाने का पथ धूमिल हो रहा  

इन ऊँची -ऊँची गगन चुम्बी इमारतों में
एक आम इंसान कही खो रहा  ...................पूनम(अप्रकाशित)

24 comments:

  1. vastav me jab rishtey nibhaney ka samay aata hai to har insaan apne ko bahut kamjor pata hai. aur aaj ke samay me ek aam aadmi ke liye uska pahchaan banana kathin ho gya hai parantu kudrat hame ek vishesh quality ke sath sansar me bhejta hai jo hamare vyaktitva vikas me sahayak hota hai.

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    1. Atul.........sateek kathan .......kudrat hame s-shakt kar bhejti hai .........har stithi ko jhelne ke liye .....apni pahchaan banaane ke liye .........parantu ........aaj aur puraaane zamaane mei bahut bada antar hai .........rishton mei vo gahraai nahi rah gayi hai ........:(

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  2. bilkul shi likha hai poonam ji apne very good

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    1. Mohan ......shukriya ......aapne padha aur blog mei aa kar remark bhi likha ......

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  3. सपने उड़ान भर रहें है ऊंची
    लेकिन यथार्थ में धरातल को छू रहा

    आधुनिक समाज का सूटेड-बूटेड है पहनावा
    चिंताजनक है स्तिथि, अंतर्मन जो खोखला हो रहा

    रिश्तों में प्यार दिखाई दे बेशक
    जरूरत के समय केवल एक दिखावा ही हो रहा .............badhiya rachna....Poonam ......yatharth se rubru karwati huyi..........kyoki aaj yahi halat hai har insaan ki....sapne oonche-2.....lekin hai wo khokhla.....par oonche sapno ko bechne ke liye....packing bhi achchi rakhni padti hain...to wo...bas isi mei juta rahta hain.....har insaan ke sapne sirf apne liye hi rah gaye hai....to wo unhe pura karne mei lagaa rahta hain ..yahaa tak ki rishto ko bhi daanv par lagaa deta hai......sahi kahaa sirf khokhlapan aur dikhava hi rah gayaa hai ....in oonchi imartao ke beech..wo kahi kho gayaa hai......

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    1. सही विश्लेषण किया नरेश .//har insaan ki....sapne oonche-2.....lekin hai wo khokhla.....par oonche sapno ko bechne ke liye....packing bhi achchi rakhni padti hain...to wo...bas isi mei juta rahta hain.....har insaan ke sapne sirf apne liye hi rah gaye hai....to wo unhe pura karne mei lagaa rahta hain ..yahaa tak ki rishto ko bhi daanv par lagaa deta hai......sahi kahaa sirf khokhlapan aur dikhava hi rah gayaa hai..// आभार

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  4. एक समय एसा आयेगा कि जो रास्‍ता गॉव से शहर की ओर आया है वह बापस गॉव की ओर जाने के लिये लालायत रहेगा किन्‍तु तप शहर से गॉव की ओर जाने के लिये बहुत देर हो चुकी होगी ?

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    1. सही कहा ........आपने देर तो होती ही जा रही ..........
      आभार आपका जो आपने अपने विचार साझा किये

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  5. रिश्तों में प्यार दिखाई दे बेशक
    जरूरत के समय केवल एक दिखावा ही हो रहा

    सच का आईना दिखाती बेहतरीन कविता।

    सादर

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    1. शुक्रिया यशवंत जी ......सच है भी तो यही .........अनदेखा कैसे करें :)

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  6. कल 28/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  7. पुनः आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 29/09/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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    1. शुक्रिया यशोदा ....आप मेरे शब्दों को विस्तृत आधार दे रही हैं

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  8. इस कदर खो गया है कि खुद को भी नहीं खोज पा रहा....
    बहुत सुन्दर!!!

    अनु

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    1. अनु .....शुक्रिया मेरी रचना में तत्व देखने हेतु

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  9. रिश्तों में प्यार दिखाई दे बेशक
    जरूरत के समय केवल एक दिखावा ही हो रहा '

    यथार्थ का सटीक चित्रण

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    1. वंदना जी .......दिखावा मात्र ही रह गया है ........रिश्तों की पहली सी गर्माहट कहाँ ...............सु स्वागतम एवं शुक्रिया

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  10. इन ऊँची -ऊँची गगन चुम्बी इमारतों में
    एक आम इंसान कही खो रहा ..........sahi avlokan ki hain.....

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    1. मृदुला जी ......आभारी हूँ आपकी प्रतिक्रिया के लिए

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  11. रिस्तो में में बनावट ओर ब्यक्तित्व में मिलावट है ऐसे में प्रकट रूप में ना दिखाई देने वाला स्नेह का असीम सिंधु ...शांत चुपचाप निर्जन में अस्तित्व हीन होकर धीरे धीरे सूख रहा...

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    1. श्री प्रकाश जी आपका चिंतन बिंदु सही है क्योंकि स्नेह पूर्ण रिश्ते ही यथार्थ में साथ निभाते हैं .....दिखावा तो एक पानी के बुलबुले सा है .....जिसका आस्तित्व क्षणिक है ...........स्वागत एवं आभार

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  12. आम इंसान खुद भी गुम है और सारे रिश्ते भी खो गए हैं ... यथार्थ को कहती सुंदर अभिव्यक्ति

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    1. संगीता जी सटीक कथन .........धन्यवाद आपका

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