Monday, October 29, 2012

इंसान को इंसान समझना..........



मित्रों यह रचना मैंने ''अपना घर ,भरतपुर '' के प्रयासों के प्रति समर्पित की .....

मूर्ती पूजते हैं हम
मूर्तिकार को भूल जाते हैं

कहने को भगवान सब में है
कहते हैं हम
पर उसे इंसानों में
देखना भूल जाते हैं

जो खाता नहीं
उसे छप्पन भोग लगाते हैं
दूजे का खाली पेट
नज़र अंदाज़ कर जाते हैं

मंदिर मस्जिद को सजाते हैं
नक्काशी करवाते हैं
एक एक नक्श
उसकी बारिकियाँ
सब पर निगाह रखते हैं
जीवित इंसान के
शरीर पर खरोंचें ,ज़ख्म हैं कितने
उन पर एक प्यार भरी
निगाह डालना भूल जाते हैं

मुश्किल नहीं किसी का पेट भरना
पर अपने से ध्यान
हटाना भूल जाते हैं

खुदा बसता खुदा के बन्दों में
बस यही याद रखना है
एक स्नेह स्निग्ध साथ
एक मदद भरा हाथ
बढ़ाना है ज़रुरी
गिरे हुए को उठाना
ज़ख्मो को सहलाना
कूड़ा करकट ,कीड़ा मकोड़ा नहीं
इंसान को इंसान समझना
चलो एक बार यही
करके दिखाते हैं
चलो एक बार यही 
करके दिखाते हैं.........पूनम (अप्रकाशित)

''अपना घर ''एक सेवा सदन है जहाँ असहाय ,पीड़ित ,वेदनादायक स्तिथि में पाए जाने वाले लोग, जिनका कोई नहीं होता ,उन्हें इलाज़ और रहन सहन की सुविधा मिलती है .........इसका प्रमुख कार्य क्षेत्र ,भरत पुर राजस्थान में है .....और इसके अलावा कोटा ,अलवर  में भी है ......आज (28/10/12)  दिल्ली में भी इसका लोकार्पण हुआ ........



17 comments:

  1. खुदा बसता खुदा के बन्दों में
    बस यही याद रखना है
    एक स्नेह स्निग्ध साथ
    एक मदद भरा हाथ
    बढ़ाना है ज़रुरी
    गिरे हुए को उठाना
    ज़ख्मो को सहलाना
    कूड़ा करकट ,कीड़ा मकोड़ा नहीं
    इंसान को इंसान समझना....बहुत अच्छा सन्देश देती रचना...की नर ही नारायण हैं.....लाचार , बेसहारा को सहारा दे दिया जाए और भूखो का पेट भर दिया जाए...तो इस से बड़ी कोई पूजा नहीं हो सकती.......एक सार्थक रचना....पूनम .......

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  2. I think........ kisi ki khusiyon ko har koi bant leta hai lekin kisi greeb ke dukhon ko bantna asaan nahi hota. aur yadi hum kisi ki madad karte bhi hain to ye insaniyat hogi na ki us per kisi prakar ka ehsaan........apke dwara ek sarthak prayas.

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    1. अतुल ...सही कहा ......अच्छे समय /सुख में साथ हज़ार .......पर दुःख की घडी में अकेले ,परिस्थिति लगे पहाड़ ......
      उस समय ही हमें सुखनवर की दरकार ....पूनम ........आभार सराहना के लिए

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  3. Rahul....................October 30, 2012 at 10:17 PM

    दीदी.... ऊऊउफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़.... क्या झकझोर के रख देने वाला शब्द चित्र उभारा है आपने... सच्चाई के करीब क्या.. खालिस सच.... जिस बेहतरीन ढंग से आपने तुलनात्मक तारतम्य संजोया है अपनी रचना में.. अभिभूत हूँ.. उसे महसूस करके.. नमन आपकी सोच और लेखनी को................

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    1. Rahul.....जिस चित्र (एक ज़ख़्मी, कीड़े पड़े हुए पैरों के ज़ख्म में ,गंद में लतपत).........को देख मैंने ये रचना लिखी .......उसे देख स्वत: ही ये विचार ,ये शब्द ज़हन में आते गए .....बैचैनी के उस आलम में ......अगर मेरा लिखा कुछ न्याय कर पाये .......उस नारकीय स्तिथि में पाए जाने वाले ....असहाय लोगों के साथ .........और सेवा कर्मियों के प्रयास उजागर हो पाए ..........तो मेरी रचना सार्थक हो जाती है ............फिर उसकी शिल्प कैसी है ........मुझे याद ही नहीं रहता ...................तुम्हारा बहुत बहुत आभार जो तुमने मुझे अहसास दिलाया कि मैंने एक विचारणीय बिम्ब प्रस्तुत किया........

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  4. bahut hee marmik panktiya likhi aapne aabhaar aapka punam jii

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    1. शुक्रिया अशोक जी ..आपने ही प्रोत्साहित किया अपने सु कार्यों से

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    1. सही कहा संगीता जी .......धन्यवाद ....आप का सदैव स्वागत है

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  6. Jaha jaiyega hame paiyega...apka blog follow kar liya hain poonam ji

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    1. खरामा खरामा ......खुशामदीद .....:) अपर्णा ...शुक्रिया

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