Friday, April 19, 2013

स्तिथियाँ बदलती ही नहीं .......... क्यूँ ..........??????????????


बहुत दुःख की बात है  कि समय बीतता जाता है .......और स्तिथियों में कोई अंतर नहीं नज़र आता .....वे रहती है ज्यों की त्यों ........भयावह ... सजा की कमी है या नैतिक शिक्षा की ....क्या चलता है दीमाग में ऐसी  विकृत मानसिकता वाले मानुष रूपी  पशु के भीतर जब वह ऐसा कुकृत्य करता है .......क्या उसके खुद के लालन पालन में कुछ कमी रही रह गयी ......या उसने खुद कुछ ऐसा भोगा ...... जो अब उस दबाव को वो सहन नहीं कर पा रहा और इस तरह का दानवीय व्यवहार ज्वालामुखी के रूप में उजागर हो रहा है ......इसमें उस नन्ही, नासमझ,नादान बच्ची का क्या कसूर ....... जो इस उम्र में अभिशापित हो गयी ...........मरने के कगार पे है ....बच गयी तो सारी  उम्र के लिए यह दर्दनाक हादसा अपने साथ लेकर जीएगी ......'दामिनी' चली गयी ....और न जाने कितनी रोज पीड़ा भोगती हैं .....स्तिथियाँ बदलती ही नहीं ..........  क्यूँ ..........??????????????



कुछ शब्द जो उद्वेलित मन से बह निकले .....

दरंदगी, वहशियत की हद से गुज़र रहे हैं लोग
जाने कौन सी इच्छा की पूर्ती कर रहे हैं लोग


वासना की चरम सीमा पर दानवीय व्यवहार
अपनी मर्यादा में क्यूँ नहीं रह पा रहे हैं लोग


न वाज़िब सजा, न आधारभूत नैतिक शिक्षा
पतन संस्कृति का क्यूँ थाम नहीं पा रहे हैं लोग


सियासी दांव-पेंच से आसान है बच निकलना
कानूनी शिकंजे क्यूँ कड़े नहीं कर पा रहे हैं लोग


भोगना, सहना जैसे आदत बन गयी है
संवेदना-शून्य पाषाण क्यूँ बनते जा रहे हैं लोग
 .................................. पूनम 

Wednesday, April 17, 2013

विक्रमी संवत के नव वर्ष 2070 के शुभ अवसर पर कवी सम्मेलन.......


14 अप्रेल को आप्टे भवन ,केशव कुञ्ज ,झंडेवालान ,दिल्ली में इन्द्रप्रस्थ साहित्य भारती(पंजी ) सम्बद्ध –अखिल भारतीय साहित्य परिषद् ,न्यास द्वारा विक्रमी संवत के नव वर्ष 2070  के शुभ अवसर पर कवी सम्मेलन का आयोजन किया गया था .दीप प्रज्ज्वलन के बाद  सुरेखा जी ने सरस्वती वंदना की .
मित्र प्रवीण आर्या जी ,अध्यक्ष भारद्वाज जी ,पूर्व महापोर महेश शर्मा और विशिष्ट अतिथि राम नारायण दूबे जी, महापोर ,पूर्वी दिल्ली के सानिध्य में आदरणीय देवेन्द्र आर्या जी और मनोज शर्मा जी के सफल मंच सञ्चालन में कई  प्रतिष्ठित जैसे पुरुषोत्तम बज्र जी , राम आसरे जी तथा कई नवोदित कवी और कवियित्रियों ने वहां रचना पाठ किया.
प्रवीण आर्या जी ने विक्रमी संवत की समकालीन उपयोगिता पर प्रकाश डाला और अपने गीतों के माध्यम से देश भक्ति और नव निर्माण पर जोर दिया .देवेन्द्र आर्या जी ने मंच सञ्चालन के दौरान  अपने अनुभव को दोहों  के रूप में सुनाया. कई  फेसबुक मित्रों,जैसे शशी श्रीवास्तव ,संगीता शर्मा ,मृदुला शुक्ला  ने भी रचना पाठ किया. अन्य मित्रों में जिनके नाम मुझे पता हैं और अभी याद आ रहे हैं उनमे भारत गौड़ ,रघुवंशी, ‘चकाचक’ जी ,अनूप आदि ने भी स-शक्त रचनाये सुनाई. सुदर्शन टी वी जल्द ही इस आयोजन को प्रस्तुत करेगा.
मुझे भी काव्य-पाठ का सुअवसर मिला जिसमे मैंने (पूनम माटिया) अलग अलग कलेवर की कुछ रचनाये और कुछ अंश सुनाई जैसे ..........(video link .....http://www.youtube.com/watch?v=joMFExPcN2I)



होश और जोश के संग उम्मीदें परवाज़ भरे


भक्ति और शक्ति के संग जंग का एलान करें


आओ चले वर्ष २०७० में नयी उमंगों ke संग


ले माँ भगवती का नाम स-शक्त आगाज़ करें ....


नव जीवन -नव वर्ष ........

मिथ्या है या सच
पर सुना है मैंने यही कथन 

चली जाती है आत्मा
कुछ पल करने को विचरण
रात्रि के किसी पहर में
जब गहरी निंद्रा में होता तन 

जब आत्मा करती
शरीर का फिर से वरण
जागते है हम तभी और
तब होता है नवजीवन

शुष्क, सख्त बीज को मिलता
जब अनुकूल वातावरण
होता है वो तब अंकुरित
तब होता है नवजीवन

फूल खिल के मुरझा जाता
और दे जाता एक दुस्वपन
पर जैसे दिखे नयी कली
तब होता है नवजीवन

अथाह पीड़ा सहती नारी
आँखों में है सुन्दर स्वप्न
जब जनती माँ शिशु को
तब होता है नवजीवन

माँ बाप के आँचल से निकल
बेटी रखती बाहर कदम
पर जब वापिस आये सुरक्षित
तब होता है नवजीवन

मात-पिता की बिटिया प्यारी
सजाती उनका घर आँगन
पर जब बेटी जाती दूजे घर
तब होता है नवजीवन

वृद्धावस्था है एक चुनौती
जानता है यह हर जन
पर बच्चे जब बनते लाठी
तब होता है नवजीवन

पल-पल बदलती इस दुनिया में
भावनाएं बदलती हैं हर क्षण
जन्म लेती है नयी संभावनाएं
तब होता है नवजीवन



प्रतिपल होते नवजीवन को
आओ करे हम सब नमन
पुलकित मन और ऊर्जित तन से
नव वर्ष का हो आगमन
.......................................पूनम 
माँ बाप के आँचल से निकल
बेटी रखती बाहर कदम
पर जब वापिस आये सुरक्षित
तब होता है नवजीवन




सोच में परिवर्तन चाहिए ......शब्दों में प्रवाह 
धर्म में हरीकीर्तन चाहिए .... कर्मो में उत्साह




वजूद इंसानियत का रहे कायम 
वक्त का दरिया ले जाये कहीं भी


मै खामोश हूँ 
न समझ कि मन में बात नहीं 

सूरज छिपा है 
न समझ कि वो है ही नहीं 

असफल हुए इक बार ,तो क्या 
और भी मौके मिलेंगे अजमाने को 

ख्वाब तो बुन ,ए-दोस्त 
कोशिश तो कर 
ज़माने को दिखाने को

बांस के बीज 
को भी लगते हैं कई वर्ष 
कोपल निकलने से पहले 
ज़मीं के नीचे जड़े फैलाने को
  


जय माँ झंडेवाली..... .....
जब भी तेरी सूरत देखूं 
मन मेरा हर्षाये 
भाव मेरे मन के मैया 
शब्द बनने को ललचायें 
तेरी माला के मनके बन 
मैं तेरे सीने से लग जाऊं 
जन्मो जन्मो तक मैया 
मैं तेरा प्यार पा जाऊं 
तेरे माथे के सिन्दूर से 
माँ मैं अपनी मांग सजाऊँ
तेरे आशीषों से मैया 
अपना जहाँ सजाऊं 
कंगन तेरे हाथों में साजे 
मैं बस मोती बन जड़ जाऊं 
आस का पंछी ऐसे उड़ता 
जैसे क्षितिज पा जाऊं 
मैया तेरी चुनरी की किरण 
बन मैं खुद पे इतराऊं 
आँखों में जब जब देखूं मैया
मैं स्नेह-सगर में गोते खाऊं
अश्रु पूरित ,नम आखों में मैया 
मैं तेरी छवि पा जाऊं
माँ तेरी अनुकम्पा हो जाए 
मैया मैं भव से तर जाऊं
कृपा अपनी बनाये रखना 
मैं हरदम तुझको ही ध्याऊं 
दरस तिहारे मुझे हैं प्यारे 
कभी तुझसे दूर न जाऊं
जय जय माँ झंडेवाली 
मैं तेरी जाई 
तुझमें ही समा जाऊं





Thursday, April 11, 2013

बस यूँही ..........


















आँखें पढना आसान नहीं हर कोई जाने


कोई इन्हें पढना न जाने तो हम माने  


पढ़कर भी अनजान बने तो क्या माने ...........पूनम 

सभी को नव संवत की शुभकामनाएं .................




होश और जोश के संग उम्मीदें परवाज़ भरे 

भक्ति और शक्ति के संग जंग का एलान करें 

आओ चले वर्ष २०७० में नयी उमंगों संग 

माँ भगवती का नाम ले स-शक्त आगाज़ करें .............पूनम