Friday, March 14, 2014

सास बहु काहे न खेले होली..........



फाग की मस्ती छाई थी 
छलकी थी ख़ुशी चहु ओर
रंग लगा इक-दूजे को
भागन-भाग थी सब ओर

चरण-स्पर्श को झुकी नव-वधु 
पाने को आशीष
सासू जी भी दिया तुरंत
धर हाथ बहु के शीश

जाने क्यूँ इक चुप्पी, पर  
दोनों बीच थी रही पसर
कौन, किस पे रंग डाले पहले
सोच सोच रहा था वक्त गुज़र

सकुचाई, लज्जाई सोचे बहुरिया
न समझे उसको कोई प्रखर
दूजी ओर सासू  की पदवी
रोके हुई थी उसे मगर  

व्यस्त थी दोनों औरों के संग
थी फिर भी इक-दूजे पे नज़र
माँ-बेटी सी प्यार की गंग
जो नहीं बही थी अभी इधर

सब थे चूर अपनी मस्ती में
नहीं थी उनको कोई खबर
थे यह दोनों भी भीगे-भीगे
पर न इक-दूजे के स्नेह में तर

कशमकश थी जारी
रह गई क्यूँ यहाँ कोई कसर
होवे इस होली कोई जादू-मन्तर
इस रिश्ते पे भी चढ़े रंग ज़बर .. पूनम माटिया 'पूनम' 

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