Thursday, September 4, 2014

ग़ज़ल ................कितना मुश्किल होता है



नज़रों का इक धोखा रखना, कितना मुश्किल होता है ||
आँखों को   आईना करना , कितना मुश्किल होता है ||

मौत जिस्म से ज़्यादा मन की, दुःख देती है ऐ लोगों |
अक्सर यूँ बेबात ही मरना, कितना मुश्किल होता है ||

दर्दों-ग़म के इस मेले में,  सबसे हम हंस-हंस के मिले | 
यूँ भी ख़ुद को ज़िन्दा रखना, कितना मुश्किल होता है ||

फ़ूलों से हम जब गुज़रे, तो हमको ये मालूम हुआ | 
काँटों की राहों पे चलना, कितना मुश्किल होता है ||

हर    इक ठोकर ने हमको , ये पाठ पढ़ाया है यारों  |
गिर, गिरके हर बार संभलना, कितना मुश्किल होता है || 

नज़रों से गिरने में कोई,    हैरानी की बात नहीं |
पर नज़रों में किसी की उठना, कितना मुश्किल होता है ||

सामने दरिया, नदी, समन्दर, बहते हों कितने ‘पूनम’|
खुद को फिर भी प्यासा रखना, कितना मुश्किल होता है ||

..... पूनम माटिया 'पूनम' 

No comments:

Post a Comment