दोस्तों ...... वैसे तो साफ़-सफ़ाई कोई एक दिन या कुछ घंटो की बात नहीं ..फिर भी जिस स्तिथि में हमारा भारत आज है .........उसमे एक ऊर्जित अभियान की आवश्यकता है ........ ताकि भारत में हर गली-कूंचे में स्वच्छ वातावरण मिले ....
खुद मेरा अनुभव है .......मेरे छोटे भाई का परिवार विदेश में रहता है .....और ....कई अलग -अलग कारणों के साथ वापस न आने का एक कारन यह भी है कि यहाँ ..जहाँ -तहां गंदगी दिखती है ...... खैर ..........कल से शुरू हो रहे '' स्वच्छता अभियान ' के तहत एक छोटा सा योगदान .....
खुद मेरा अनुभव है .......मेरे छोटे भाई का परिवार विदेश में रहता है .....और ....कई अलग -अलग कारणों के साथ वापस न आने का एक कारन यह भी है कि यहाँ ..जहाँ -तहां गंदगी दिखती है ...... खैर ..........कल से शुरू हो रहे '' स्वच्छता अभियान ' के तहत एक छोटा सा योगदान .....
और दोस्तों मैं कुछ बातों की ओर विशेष ध्यान दिलाना चाहती हूँ
कचरे का सही निराकरण ..........ही सफाई की ओर पहला कदम है .यहाँ- तहां कूड़ा फेंकना ............ और सफाई अपनी ज़िम्मेदारी न समझना हमारी (भारतीयों की ) सबसे बड़ी कमजोरी है ........ऐसा नहीं कि हमे सफाई रखना आता नहीं ........ जब भी कोई विदेश जाता है .सुधर जाता है ........ क्यूंकि वहां के माहोल में ही उसे रहना पड़ता है नहीं तो ऊंचा फाइन देना पड़े ..........पर हमारी परेशानी यह है कि अपने देश में ..लोकतंत्र का सही मतलब नहीं समझते ..बल्कि उसे मिसयूज़ करते हैं .........
इसके अलावा ........ अधिकतर लोगों की (खासकर गरीबों की ) मजबूरी है कि उन्हें अभी तक आधारभूत सुविधाएं नहीं मिली आज़ादी के इतने बरस बाद भी उनके घर नहीं हैं .......और घर हैं भी .तो उनमे टॉयलेट्स /शौचालय नहीं हैं ...इसलिए सड़कें /नदी /नालें /रेलवे ट्रेक उनके लिए ऐसे हैं जैसे कूड़ाघर और शौचालय .......
वे कपडे भी नदियों के किनारे या फिर सड़क पे जो म्युनिसिपलिटी की नल /हैंडपंप होते हैं .वहां नहाते -धोते हैं ........
कूड़ा अधिकतर पौलिथिन में फेंका जाता है .......या फिर खाली ढक्कन /बोतल और प्लास्टिक की पन्नियाँ खुले में फेंकी जाती हैं जो घर बाहर की नालियों को ब्लाक करती हैं यानि अवरोध बनती हैं .........इसका एक महत्वपूर्ण कारन है कि आजकल जितना भी सामान चाहे वो बिस्किट ,वेफर्स ,टॉफ़ी .,चॉकलेट , केक पेस्ट्री ,चाट -पकोड़ी .....सभी प्लास्टिक कोटेड होता है ........ जितना भी टेक-अवे फ़ूड यानि बाज़ार से पैक कराके लाया गया खाना .......पत्तल ,थेर्मोकोल की प्लेट्स .....सब्ज़ी .....फल .,कपडे जूते ........क्या नहीं है जो पौलिथिन या प्लास्टिक की फिल्म वाली पैकिंग में नहीं मिलता ..... (एक फैशन सा बन गया है लेमिनेटेड क्राकरी और पैकेजिंग का इस्तेमाल )....... और यहाँ -वहां खाना और कचरे का जहां -तहां फेंक देना ............ ..........बहुत कुछ है जो सुधार मांगता है ......फिर भी थोड़े से शुरुवात करना बुरा नहीं है ...हमारे वैज्ञानिक भी इस पैकिंग मटेरियल के लिए कोई विकल्प सोचे जो जैविक हो..... सही कदम -सही दिशा में उठायें तो मज़िलें मिल ही जाती हैं ...बेशक से समय लगे .......... और समय लगेगा ही ..क्यूंकि समय लगा है स्तिथियों के इतना बिगड़ने में ..........
इसके अलावा ........ अधिकतर लोगों की (खासकर गरीबों की ) मजबूरी है कि उन्हें अभी तक आधारभूत सुविधाएं नहीं मिली आज़ादी के इतने बरस बाद भी उनके घर नहीं हैं .......और घर हैं भी .तो उनमे टॉयलेट्स /शौचालय नहीं हैं ...इसलिए सड़कें /नदी /नालें /रेलवे ट्रेक उनके लिए ऐसे हैं जैसे कूड़ाघर और शौचालय .......
वे कपडे भी नदियों के किनारे या फिर सड़क पे जो म्युनिसिपलिटी की नल /हैंडपंप होते हैं .वहां नहाते -धोते हैं ........
कूड़ा अधिकतर पौलिथिन में फेंका जाता है .......या फिर खाली ढक्कन /बोतल और प्लास्टिक की पन्नियाँ खुले में फेंकी जाती हैं जो घर बाहर की नालियों को ब्लाक करती हैं यानि अवरोध बनती हैं .........इसका एक महत्वपूर्ण कारन है कि आजकल जितना भी सामान चाहे वो बिस्किट ,वेफर्स ,टॉफ़ी .,चॉकलेट , केक पेस्ट्री ,चाट -पकोड़ी .....सभी प्लास्टिक कोटेड होता है ........ जितना भी टेक-अवे फ़ूड यानि बाज़ार से पैक कराके लाया गया खाना .......पत्तल ,थेर्मोकोल की प्लेट्स .....सब्ज़ी .....फल .,कपडे जूते ........क्या नहीं है जो पौलिथिन या प्लास्टिक की फिल्म वाली पैकिंग में नहीं मिलता ..... (एक फैशन सा बन गया है लेमिनेटेड क्राकरी और पैकेजिंग का इस्तेमाल )....... और यहाँ -वहां खाना और कचरे का जहां -तहां फेंक देना ............ ..........बहुत कुछ है जो सुधार मांगता है ......फिर भी थोड़े से शुरुवात करना बुरा नहीं है ...हमारे वैज्ञानिक भी इस पैकिंग मटेरियल के लिए कोई विकल्प सोचे जो जैविक हो..... सही कदम -सही दिशा में उठायें तो मज़िलें मिल ही जाती हैं ...बेशक से समय लगे .......... और समय लगेगा ही ..क्यूंकि समय लगा है स्तिथियों के इतना बिगड़ने में ..........
खाएं चोकलेट, वेफ़र जितनी बार
आइसक्रीम से भी कर लें प्यार
पर छिलके, रैपर, ढक्कन खाली
सड़क पे फैकना, है गलत व्यवहार
आइसक्रीम से भी कर लें प्यार
पर छिलके, रैपर, ढक्कन खाली
सड़क पे फैकना, है गलत व्यवहार
बच्चो पूनम लगाये गुहार ..
कचरा न फेंकें सड़क पे यार
क्यों करते हम धरा पे वार
सफाई करना इक पवित्र काम
रख सफ़ाई, करें वतन से प्यार
क्यों करते हम धरा पे वार
सफाई करना इक पवित्र काम
रख सफ़ाई, करें वतन से प्यार
बच्चो पूनम लगाये गुहार ...
नदी-नाली में कचरा भरमार
बढ़ते पानी से आएगा ज्वार
डूबेंगे पशु, घर खेत, खलिहान
महामारी मचाएगी हाहाकार
बढ़ते पानी से आएगा ज्वार
डूबेंगे पशु, घर खेत, खलिहान
महामारी मचाएगी हाहाकार
बच्चो पूनम लगाये गुहार ..
अकेले नहीं हम, पूर्ण संसार
फेंकने वालो की लगी भरमार
अजैविक कचरे का लगा अंबार
जिसका नहीं कोई पारावार
फेंकने वालो की लगी भरमार
अजैविक कचरे का लगा अंबार
जिसका नहीं कोई पारावार
बच्चो पूनम लगाये गुहार ..
जन-जन में करें प्रचार
रखना है स्वच्छ घर-संसार
हर कोई ले अपने संज्ञान
नयी पीढ़ियों को दें उपहार
रखना है स्वच्छ घर-संसार
हर कोई ले अपने संज्ञान
नयी पीढ़ियों को दें उपहार
बच्चो पूनम लगाये गुहार
कूड़ा डालें ‘बिन’ में हरबार
कूड़ा डालें ‘बिन’ में हरबार
पूनम माटिया ‘पूनम’
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