Saturday, September 24, 2016

मंगल-उत्सव--२० सितम्बर २०१६








फूलों से महक ले लो , तितली से रंग ले लो
उत्सव है आज हर क्षण, आओ कि रंग खेलो
जी हाँ, आज अदबी फ़लक के चमकते सितारे, हिंदी-उर्दू काव्य-मंचों के प्रतिष्ठित शायर जनाब #मंगल नसीम जी के जन्मोत्सव पर मैं हम सब की ओर से उन्हें लम्बे, स्वस्थ एवं व्यस्त जीवन की शुभकामनायें प्रेक्षित करती हूँ|
जिसने कलाम पढ़ लिया मंगल नसीम का
वो बन गया ग़ुलाम-सा मंगल नसीम का
एहसास जो अलफ़ाज़ के घर ढूंढ रहे थे
पाया उन्होंने आसरा मंगल नसीम का 

आदरणीय बालस्वरूप राही जी की ये पंक्तियाँ उस्ताद शायर मंगल नसीम जी पर सटीक बैठती हैं और वहीँ साहित्य में अपने अद्वितीय योगदान से सबको चमत्कृत कर देने वाले शायर जनाब #सर्वेश चंदौस्वीं जी का कहना है कि ‘जब तक मंगल नसीम जैसे ग़ज़ल के परस्तार ग़ज़ल को नसीब होते रहेंगे तब तक ग़ज़ल की मक़बूलियत में इज़ाफ़ा होता रहेगा|’ यहाँ उपस्थित सभी ही मंगल नसीम जी और उनकी शायरी के चाहने वाले हैं और शायद ही कोई हो जो उनके व्यक्तित्व–कृतित्व से अनभिज्ञ हो किन्तु फिर भी मैं आपके सामने उनके जीवन के महत्वपूर्ण लम्हों को रखना चाहती हूँ |
२०१५ में मंगल नसीम जी से साक्षात्कार के दौरान बहुत सी जानकारी हासिल हुई| आपका जन्म पुरानी दिल्ली के कटरा ईश्वर भवन, खारी बावली में २० सितम्बर १९५५ को हुआ|आपके पिता श्री रामेश्वर दास जी का कत्थे का कारोबार था सो घर में सिर्फ़ कारोबारी माहौल था|शायरी के बादल घर के क़रीब से भी गुज़रने से परहेज़ करते थे|चार भाई–बहिनों में दूसरे नंबर पर दुनिया में आये आपका नाम मंगल सेन शर्मा था| कटरा बढ़िआन, नया बांस पहला मदरसा था| सन् १९६६ में रोहताश नगर, शाहदरा में आ गए| एक दिन काम पर जाते हुए आपके पिता जी बेहोश हो गए| समय पर मदद मिलने के कारण स्वस्थ तो वे हो गए किन्तु बच्चों के सर पर छत बनाने की चिंता प्रगाढ़ हो गयी| इसी के फलस्वरूप १९६७ में यह बलबीर नगर स्थित मकान खरीदा और घर में तब्दील किया| तो मित्रों ये १९६६ में ही तय हो गया था कि #पूनम माटिया भी दुनिया में आने के बाद कभी दिलशाद गार्डन निवासी बनेगीं और ‘मंगल नसीम’ का साक्षात्कार लेंगी तो उन्हें क़रीब ही बलबीर नगर में होना चाहिए| 
ख़ैर आगे बढ़ते हैं – मंगल नसीम जी ने दिल्ली के ही रामलाल आनंद कॉलेज से वाणिज्य में स्नातक की शिक्षा ग्रहण की और पढ़ाई में ज़हीन होने के कारण कॉलेज के पहले साल तक टॉप किया|
क्या सीरत क्या सूरत थी/माँ ममता की मूरत थी/पाँव छुए और काम हुए/अम्मा एक महुरत थी .... इन कालजेयी पंक्तियों को कहने वाले मंगल नसीम कब और कैसे वाणिज्य से ग़ज़ल की ओर आकृष्ट हुए इसका भी बड़ा रोचक किस्सा है| 



अब आया ध्यान-ए-आरामे-जां इस नामुरादी में /कफ़न देना तुझे भूला था मैं असबाबे शादी में’ .. हक़ीम मोमिन खां मोमिन के इस शेर ने कारोबार से त’अल्लुक रखने वाले ख़ानदान के चिराग़ को ऐसे अपनी ओर आकर्षित किया कि आज तक आप गेसू-ए-ग़ज़ल की गिरफ़्त से आज़ाद नहीं हो पाए, न होना ही चाहते हैं बल्कि अब तो देश-विदेश में आप शिष्यों की श्रंखला दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है|
सीने के ज़ख्म दर्द उभारे चले गये/जैसी भी हमपे गुज़री गुज़ारे चले गये/कश्ती मेरे वजूद की जब डूबने लगी/दो हाथ और दूर किनारे चले गये- इस ग़ज़ल से शायरी की दुनिया में आपने दस्तक दी|कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में प्राणी विज्ञान के हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट जनाब #सत्य प्रकाश शर्मा ‘तफ़्ता’  ने आपको अपना शिष्य स्वीकार किया| इस तरह आपका त’अल्लुक ‘दाग़’ स्कूल से हो गया| अक्सर आपके उस्ताद ऐसा कहा करते थे - ‘“मंगल जब शेर पढ़ता है तो ऐसा लगता है जैसे हौले-हौले बादे नसीम चलती है’ और यूँ आप ‘मंगल नसीम’ हो गए|
विशुद्ध ब्राह्मण परिवार का होने के कारण उर्दू सीखने के लिए बहुत पापड़ बेले- जामा मस्जिद से दो कायदे खरीदे और फिर शब्दों की शिनाख्त़ आई| ख़ुद को टेस्ट करने के लिए दवाइयों की शीशीओ पर लगे लेबल, मुस्लिम बस्तियों में दुकानों के साईन-बोर्ड पढ़-पढ़ कर आपने रियाज़ किया और इस दौरान काफ़ी चोटें और लोगों की मार भी खाई क्योंकि अपनी धुन में दुकानों के बोर्ड देखते हुए अक्सर औरों से आपकी टक्कर हो जाया करती थी| फिर ५-६ लाइब्रेरियों की ग़ज़लों की सभी किताबें भी आपने पढ़ डालीं| 
आपने ग़ज़ल को अपना शौक़ नहीं बनाया बल्कि इबादत का दर्जा दिया| आप एक मिसाल हैं जिन्होंने न तो एक दिन में ग़ज़ल सीखी, न एक दिन में कही यहाँ तक कि अपने कहे मिसरों को शेर भी नहीं माना जब तक उस्ताद की मुहर नहीं लगी| औसतन एक साल में में दो ग़ज़ल कहने वाले आप के दो शेरी मज्मुए-१९९२ में ‘पर नहीं अपने’ जिसमें ४० ग़ज़लें हैं और ठीक अठारह वर्ष बाद २०१० में ‘तीतर पंखी’जिसमें ३९ ग़ज़लें हैं मंज़रे –आम पर आये हैं| १९ (उन्नीस) नौकरियाँ करने और उन्नीस ही इस्तीफ़े देने के बाद आप प्रकाशन के क्षेत्र में आये और आज ‘अमृत प्रकाशन’, ‘पलाश प्रकाशन’ दोनों ही देश की चर्चित प्रकाशन संस्थाओं में गिने जाते हैं|
मैं ख़ुशकिस्मत हूँ कि मेरा तीसरा काव्य संकलन –‘#अभी तो सागर शेष है ....’ भी अमृत प्रकाशन से आया है और प्रकाशन के दौरान आपसे मैंने बहुत कुछ सीखा| सबसे बड़ी बात कि छोटी-बड़ी कोई बात हो आप उस पर चर्चा करते हैं ये आपके व्यक्तित्व की सहजता एवं विशालता दोनों को दर्शाता है| इसलिए ही अपने-पन का एहसास आपके दायरे में आने वाले हर शख्स़ को होता है| पिछले तीन वर्ष से आपके जन्मदिवस के उत्सव का हिस्सा बन रही हूँ और देख रही हूँ कि आप के सभी शागिर्द आप के आत्मीय हैं चाहे हास्य व्यंग्य के चर्चित हस्ताक्षर डॉ. प्रवीण शुक्ल हों या चंद्रमणि चन्दन जी, पदम् प्रतीक जी, पवन दीक्षित जी, दीप्ति मिश्र ,गुनवीर राणा, दिनेश रघुवंशी, दीपक गुप्ता, जगदीश भारद्वाज जी ..सभी ही गर्वान्वित होते हैं आप से जुड़कर|
इंग्लैंड के चौदह शहरों में और अमरीका के नौ शहरों में आप काव्य पाठ कर चुके हैं| लाल किले के प्रतिष्ठित मंच को भी आप सु-शोभित कर चुके हैं कई बार| आपके अनुभव से यहाँ उपस्थित सभी लाभान्वित हो इसलिए आपकी सोच, आपके विचार सबके समक्ष रखना चाहती हूँ|आपको अक्सर कहते सुना है –‘नस्ले-नौ को चाहिए कि बस बड़ों का आशीर्वाद कमाए क्योंकि उनके आशीष में ही ईश्वर का वास है’ और यह भी कि जीवन जीयें मरने के बाद के लिए- जितनी उम्र है उतना तो सभी जीयेंगे ही परन्तु मरने के बाद भी लोग आपको याद रखें, तो ऐसा जीवन जिओ और यह तब ही हो सकता है जब हम ‘लेने’ की नहीं बल्कि ‘देने’ की मानसिकता रखें|’
एक बार पुन: जन्मदिन की बधाई |
......... पूनम माटिया 
Poonam.matia@gmail.com

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