Sunday, June 2, 2019

सपनों से मौत तक-कहानी -पूनम माटिया


सपनों से मौत तक


रात का अंतिम पहर
गहरी नींद में .कुछ तो कुछ पन्द्रह मिनट की 'शोर्ट नैप' लेते हुए किताब, कॉपियाँ छाती पर ही रख अध-सोये से। वार्डन के कमरे का लट्टू जगमग था मानो वार्डन अभी भी जगी हुई छात्रावास के छात्रों पर कड़ी निगाह रखे हो। 
अक्सर अमीर घरों के लाड़-प्यार में पले बच्चे या फिर अनुशासन-प्रिय माँ-बाप की इच्छाओं-आकांक्षाओं की पूर्ति करने के लिए घर से होस्टल भेजे बच्चे ही होते हैं बोर्डिंग स्कूल में।  हाँ! कुछ ऐसे भी होते हैं जिनका अपना कोई नहीं होता, या फिर वो बच्चे जिन्हें एक्स्ट्रा-करिकुलर एक्टिविटीज़ का भी चस्का होता है पढ़ाई के साथ...पर ये सच है बच्चे कोई भी हों नींद में डूबे बच्चे ख़ासकर परीक्षाओं के दिनों में बड़े निर्दोष, मासूम लगते हैं, बहुत प्यार आता है उनपर, जाने कौन से सपनों में खोये। कड़क से कड़क 'मेटरन' का भी दिल पसीज जाए। यही ही हुआ होगा जब मिस ट्रौफ़र अचानक शयनागार में आई बच्चों पर एक नज़र डालने ...
अपनी चेस्ट पर बच्चों को ब्लेस करते हुए क्रॉस का साइन बनाया और वापस मुड़कर अपने रूम में जाने को ही थी कि ....धां-धां ढूँ...ढूँ...ढूँ....धड़ाम..धड़ाम....शोर सुनकर काँपने का भी मौक़ा नहीं मिला और सब के चीथड़े उड़ गये। यहाँ वहाँ चीत्कार ... दूर तक पलंग के टुकड़े, मांस के लोथड़े .... सुंदर, सुकोमल बच्चे तब्दील हो गए कटी-फटी लाशों में ...खून ही खून ...किताबों -कॉपियों के परखच्चे उड़ गए, सोते हुए ख़ामोश बच्चे ...वार्डेन... लाइट्स ..... अधखाये टिफिन्स ...सुंदर कपड़े सब के सब खाक़ ... एक और आतंकवादी हमला ...एक और मानव त्रासदी ... वहशत का नंगा नाच.... दुःख की बात तो ये ...कि अपने ही नौनिहाल खौफ़नाक मौत के हवाले

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