Tuesday, May 19, 2020

एक ग़ज़ल पेशे नज़र............. Poonam Matia





*बेटों से हो रखवाली, होगी इक नई तारीख़*
*इनसे हो न शैतानी, होगी इक नई तारीख़*


*खेल ये सियासत का, आदमी जो समझेगा*
*ख़त्म होगी बदहाली, होगी इक नई तारीख़*


*मत उदास बैठो अब, कब तलक़ रहेंगे ग़म*
*रात तो ढलेगी ही, होगी इक नई तारीख़*


*मुन्हसिर है सब उस पर, वो ही है जहां का रब*
*गर रज़ा भी हो उसकी, होगी इक नई तारीख़*

मुन्हसिर- निर्भर
जहां-जगत

*अब हवा भी बदली है, बदली हैं फ़ज़ाएँ भी*
*अब लगे है हमको भी, होगी इक नई तारीख़*


पूनम माटिया

2 comments:

  1. अब हवा भी बदली है,बदली है फजाएं भी
    अब लगे है हमको भी,होगी इक नई तारीख"

    शानदार

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    1. पुष्कर जी ... आभार .......इस बदलते राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश को दर्शाने की कोशिश की।एक नए भारत की झलक|

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