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Monday, March 21, 2022

ख़यालों की चिड़िया- पूनम माटिया- #गोरैया दिवस


ये ख़यालों की #चिड़िया है बड़ी चुलबुली
कभी यहाँ, कभी वहाँ उड़, बैठ जाती|
एक पल जीवन-तरु के आदि में ले जाती,
दूजे पल अज्ञात और अनिश्चित भविष्य
का पुरज़ोर हिलोरा दे अशांत कर जाती|
परों में उत्साह की उड़ान भर कभी
ये नन्ही रंग-रंगीली रुनझुन चिड़िया
माँ का सुखद, सलोना, धवल चांदनी-सा
स्वरूप अँखियों में तारों-सा चमका जाती|
सुबह-सवेरे मन्दिर की घंटी, आरती के स्वर,
बर्तनों की टनटन और चूल्हे पे सब्ज़ी की महक
अलसाई आँखों में ठन्डे पानी के छींटे,
वो पंखे की तेज़ गति में अकस्मात कमी,
मन ही मन कुढ़-कुढ़ और फिर दूर तलक
सड़कें माप, भारी-सा बक्सा उठाये अकेला सफ़र!
कभी भूत से वर्तमान में संग अपने ले आती|
अचानक! फिर फुद्फुदाकर श्यामल-सी चिड़िया,
ऐनक से सधी आँखों, किताबों के मध्य
अपनी रसोई, अपने ही पलंग पर शुष्क पत्तियों-सी
शाख से जुडी रहने का वृथा प्रयास करती ख़ुद मुझे ही
माँ की जगह खड़ा कर जाती|
भीतर तक कुलबुला कर, इस चिड़िया पे क्रोधित हो
बरबस ही नयनो में सावन भर पागल बदरा-सी
इसके परों को भिगो, निस्तेज करने को मैं आतुर ही होती
कि फ़िर जा बैठती ये चंचल, चपला-सी
दुरंगी ऊन के गोले के बीच फँसी सलाइयों में|
नन्हे हाथों को थामे माँ के सधे और संतुलित हाथ
एक, एक फंदे को धीमे-धीमे अपने ही
स्वेटर में तब्दील कर मानो
चाँद से ब्याह रचाया हो अपनी गुड़िया का,
घर-बाहर सब दो फर्लांग में नाप
दादू से मनवाई गयीं किले-सी फ़रमाहिशें!
ये चमकीले #अहसासात की चिड़िया
फिर प्यारी-सी लगने लगती |
प्यार से सहलाने को हाथ बढ़ाने को होती,
अंगुलियाँ भी खुलने को होती तैयार,
दुष्ट फिर आ बैठती दर्द से चटकते घुटनों पे,
चीं-चीं कर शहर-भर में नगाड़ा पीट आती
बढ़ती उम्र की एक-एक आहट का|
शोर से घबरा कानों तक पहुँच जाते हाथ|
नन्ही-सी जान! बक्श देती उसकी जान
पर कहाँ थी मानने वाली वो शैतान?
फ़ुदक-फ़ुदक कर जा बैठती
कढ़ाई में गोल-गोल पूरियां तलती
माँ की सूती साड़ी के सुंदर पल्लू में|
ख़यालों की ये चुलबुली चिड़िया दिखती ज़रूर नन्ही
पर रखती अपने परों में ग़ज़ब की जान
जानती-पहचानती घर-आँगन अपना
और जानती-पहचानती उतार-चढ़ाव मेरी ज़िन्दगी के|
ये ख़यालों की चिड़िया है बड़ी चुलबुली
कभी यहाँ, कभी वहाँ उड़, बैठ जाती|
एक पल जीवन-तरु के आदि में ले जाती,
दूजे पल अज्ञात और अनिश्चित भविष्य
का पुरज़ोर हिलोरा दे अशांत कर जाती|
कभी बच्ची बन खेलती,
दौड़ाती, खिजाती मुझे और कभी मेरी ही माँ बन
जीवन के पाठ पढ़ा, सुखद नींद दे जाती|
ख़यालों की चुलबुली चिड़िया सहेजे हैं सभी यादें मेरी
रखे है परों में अपने सुख-दुःख की कॉपी मेरी|
पूनम माटिया
Poonam Matia
May be an image of bird and nature

Sunday, July 12, 2020

Teej-तीज-अंतस्.......... पूनम माटिया

#अंतस्  अभी तक #साहित्यिक, #सामाजिक क्षेत्र में कार्य करती रही है किंतु यह पहला #सांस्कृतिक आयोजन रहा वो भी ऑनलाइन डिजिटल माध्यम से।
ज्ञात हो कि #तीज पर्व का यह अनूठा, कला, संगीत और नृत्य प्रतियोगिताओं तथा जन्मदिन और वैवाहिक सालगिरह के #सलेब्रेशन्स से सजा आयोजन अंतस् ने आर डब्ल्यू ए विवेक विहार महिला एसोसिएशन के साथ मिलकर किया। लगभग 2-3 सप्ताह से चल रही तैयारियों में लगे दोनों कार्यकारिणी के सदस्यों की उत्सुकता और मेहनत रंग लाई जब देश ही नहीं विदेश से भी विभिन्न प्रतिभागियों ने मनोयोग से  प्रतियोगिताओं में तस्वीरों और वीडिओज़ के माध्यम से हिस्सा लिया।
7 जुलाई 20 को अपराह्न 4 बजे अंशु जैन की उद्घोषणा से आरम्भ हुए इस प्रोग्राम का सुगठित, अनुशासित एवं रोचक #संचालन #पूनम_माटिया ने अनवरत 3 घंटे तक किया। मुख्य अतिथि ग्रीनफ़ील्ड विद्यालय की प्रधानाचार्या नमिता जोशी और अतिविशिष्ट अतिथि मिथिलेश गोयल पत्नी राम निवास गोयल, दिल्ली  विधान सभा अध्यक्ष तथा अन्य विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति ने आयोजन  की गरिमा में श्रीवृद्धि की।
कलात्मक बिंदी , टैलेंट हंट, नृत्य और गायन प्रतियोगिताओं से सजे इस आयोजन में विभिन्न प्रायोजकों-अनुभूति योग, कृष्णा डायमंड्स, अमरवीर ट्रस्ट ने कैश अवार्ड और उपहारों तथा योग एवं डाइट पैकेजेस, पौधों और प्रमाण पत्रों की प्रतिभागियों और विजेताओं के लिए व्यवस्था की।
तीज और तीज से इतर विषयों पर कोरोना काल में सकारात्मक संदेश देने वाले प्रतिभागियों को प्रथम, द्वित्तीय तृतीय स्थान के अतिरिक्त एक सांत्वना पुरस्कार रूप में स्टार परफ़ॉर्मर भी घोषित किया गया। साक्षी जैन, तान्या रुस्तगी माटिया, तरुणा पुंडीर, सुनीता अग्रवाल, भावी जैन, दीप्ति सिंह तथा कई अन्य को पुरस्कृत किया गया।
 यु ट्यूब पर वीडिओज़, ऑडियोज़, तस्वीरों की कलात्मक प्रस्तुति में विशिष्ट सहयोग दिया नरेश माटिया, कामना मिश्रा और तरंग माटिया ने।
कई सौ एंट्रीज़ में से कुछ  प्रतिभागियों  के चयन का कार्य महिला एसोसिएशन की कार्यकारिणी में  राजरानी गुप्ता, उर्मिला अग्रवाल , प्रतिभा गोयल आदि ने किया।
वाट्सप ग्रुप और यू ट्यूब के माध्यम से देश विदेश के कई सौ श्रोताओं ने इस आयोजन को देखा और सराहा।
अंत मे धन्यवाद ज्ञापन पूजा गोयल ने प्रस्तुत किया तथा राष्ट्र गान के संग आयोजन का समापन हुआ।





Sunday, June 7, 2020

विनम्र श्रद्धांजलि-उस्ताद शायर, आचार्य (स्व) श्री सर्वेश चंदौसवी जी

आज उस्ताद शायर, आचार्य (स्व) श्री सर्वेश चंदौसवी जी की अरिष्टि का दिन है। 

उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि,

भाव-सुमन

उन्हें सर्व श्री डॉ कुँवर बेचैन, मंगल नसीम, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, विनीत चौहान, डॉ कीर्ति काले, राजेश चेतन, नरेश शांडिल्य, अनिल अग्रवंशी, राज कौशिक, रसिक गुप्ता, सपन भट्टाचार्य, गुनवीर राणा, पी के आज़ाद, अनिल मीत, पूनम माटिया, बलजीत कौर तन्हा, प्रमोद शर्मा असर, राजेन्द्र कलकल, उर्वशी अग्रवाल, विजय स्वर्णकार, चरण जीत चरण, मंजू शाक्य, सुमित भार्गव और डॉ प्रवीण शुक्ल द्वारा अपने भाव-सुमन समर्पित किये गए हैं।
विनयावनत
णमोकार चैनल
पी एस स्टूडियो एवम
समस्त सर्वेश चंदौसवी परिवार


 
25 मई 2020 को मशहूर ओ मारूफ़ शायर जनाब सर्वेश चन्दौसवी इस फ़ानी दुनिया को छोड़ गये |
लगभग अपनी उम्र के चालीस बरस में जो भी उन्होंने हिन्दी-उर्दू की अस्नाफ़(विधाओं) में लिखा, उन्होंने उसे कहीं भी प्रकाशित न किया  लेकिन जब अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों से कुछ फ़ारिग हुए तो एक ऐसा लक्ष्य saadh लिया जिसे सुनकर भी विश्वास नहीं होता था|
बदनसीबी कहें या ख़ुशनसीबी उनसे मेरी पहली मुलाक़ात भी उस दिन हुई जब वे अपने लक्ष्य के पहले पड़ाव पर थे ........ 2014 का विश्व पुस्तक मेला ...... और सर्वेश जी की पहली चौदह पुस्तकों का लोकार्पण .... अद्भुत, अविस्मर्णीय क्षण ....
मंजुलि प्रकाशन का मंच और एक विशाल जमघट अदबी हल्क़े के लोगों का! और क्यों न होता ......लोग एक पुस्तक लिख कर ही प्रसिद्द हो जाते हैं .ये तो एक साथ चौदह पुस्तकें साहित्य के ख़ज़ाने के साथ आ रही थीं|
मुलाक़ात करवाई ग़ज़लगोई में सिद्ध-प्रसिद्द आदेश त्यागी जी ने|
2019 तक अपने लक्ष्य को पूर्ण किया सर्वेश जी ने य’आनी हर वर्ष तय संख्या ..2015 में 15, 16 में 16, 17 में 17, 18और 19 में 18, 19 संग्रह कुल मिलाकर 99 पुस्तकें  उन्होंने दुनिया को दीं | 2020 में 20 दिसंबर को 20 संग्रह देने का उनका लक्ष्य भी पूर्णता के नज़दीक ही था किन्तु इस #लॉकडाउन के दौरान 25 मई को ईश्वर ने उन्हें अपने पास बुला लिया|
इसी दौरान उनसे उर्दू और ग़ज़ल के मुतालिक़ सीखने का अवसर भी मिला और उनके व्यक्तित्व को क़रीब से जानने के कुछ अवसर भी मिले|
उस्ताद शायर थे वो , उनके शागिर्द और शागिर्दों के भी शागिर्द भारत और भारत से बाहर भी थे ..... मुझ नाचीज़ को शागिर्द होने का मौक़ा नहीं मिला पर उन्होंने उससे कम भी कभी नहीं समझा मुझे| 2016 में 16 संग्रहों में से एक –लम्हा –दर-लम्हा के बेक फ्लैप को लिखने का अवसर देकर अपनी पुस्तकों में मुझे भी स्वर्णिम इतिहास का अभिन्न हिस्सा बना दिया|
पिछले वर्ष ही गठित और सक्रीय हुई मेरी संस्था , अंतस् को भी उनका स्नेहिल आशीर्वाद प्राप्त हुआ जब अंतस् की छटी काव्य-गोष्ठी की सर्वेश जी ने अध्यक्षता करने की सहज स्वीकृति दी|
यूँ तो कई बार मौत को बड़े क़रीब से शिकस्त देकर लौट आये थे पर इस बार ........... !

यही एहसास उनकी इस ग़ज़ल में सुनें ..जो विडियो उन्हें श्रद्धांजलि-स्वरूप आज उनकी अरिष्टि पर डॉ प्रवीण शुक्ल और णमोकार चैनल के माध्यम से रिलीज़ हुई है |
श्रद्धांजलि की एक सभा भी ज़ूम पर डॉ प्रवीण शुक्ल और श्री राजेश चेतन जी द्वारा आयोजित की गयी थी  जिसमे भी श्रद्धा-सुमन अर्पित करने वालों की एक लम्बी फ़ेहरिस्त थी|
ईश्वर सर्वेश जी की आत्मा को शांति दे और शोक-संतप्त परिवार तथा उनके वृहद् अदबी परिवार को इस दुःख को वहन करने की क्षमता दे| ॐ शांति

पूनम माटिया
7 जून 2020






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