Friday, August 24, 2012

ज़माल ए हुस्न


आजकल ‘उसका’ भी ये आलम है ‘पूनम’


चाँद आसमां में रहता है मगर 


जिक्र उसका जाने क्यों सरे आम होता है 


रोशन होते हैं चिराग उसके नाम से 


ज़माल से उसके चुंधिया जाती हैं नज़रें 


हर गुलशन का ‘वही’ गुलफ़ाम होता है 


झील सी गहरी उसकी आँखों में नहा कर 


खुद चाँद भी ज़लवा-फ़रोश होता है .........पूनम (AR)

5 comments:

  1. kitna bhi gam me ho koi padh ke ye char panktiyan muskurahat khud b khud chehre per jhalak jaati hai........

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    1. अरे! वाह .यह तो सफलता है इस रचना की कि आपके चेहरे पर मुस्कराहट ले आई :)))))))))शुक्रिया अतुल ,मेरा मनोबल बढाने के लिए

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  2. यशवंत जी .....आपका आभार व्यक्त करना चाहूंगी कि आपने इसे ''बेहतरीन '' समझा ........कल आपके ब्लागस्पाट पर देखने की इच्छुक ....:)पूनम

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  3. ज़माल ए हुस्न

    आजकल ‘उसका’ भी ये आलम है ‘पूनम’


    चाँद आसमां में रहता है मगर


    जिक्र उसका जाने क्यों सरे आम होता है


    रोशन होते हैं चिराग उसके नाम से


    ज़माल से उसके चुंधिया जाती हैं नज़रें


    हर गुलशन का ‘वही’ गुलफ़ाम होता है


    झील सी गहरी उसकी आँखों में नहा कर


    खुद चाँद भी ज़लवा-फ़रोश होता है .........पूनम (AR),,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,bhut badiya p ji muje ye panktiya bhut pasnd aayi thanks
    and good luck

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    1. मोहन बिष्ट जी बहुत बहुत आभार ........यह रचना मेरी शुरुवाती रचनाओं में से एक है ........और मेरे काव्य संग्रह अरमान में सलग्न है ......

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