Thursday, December 13, 2012

Baadal..........बादल......



बरखा रानी का जन्म दाता ....


अपने कोष में समेटे है धरती का अमृत


वो जो लेता है स्वरुप हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप


वो रखता है क्षमता सूर्य को ढापने की


वो जो फैलाता है माँ सम आँचल तेज 


धुप में


वही जो दिखता है क्षितिज के छोर तक


मुलायम है,सफ़ेद है कभी कोमल रूई सा


सख्त लगता है कभी स्याह कोयले सा


वो जिसे देख नाचे जंगल का मोर


वो जिसे देख खिल उठे मन का भी मोर


वो बदलता है नित नए रूप


कभी नयी वधु सा उदीप्त ,तेजोमय


कभी उदास ,मुरझाई विरह में प्रेमिका


वो जो चंचलता में नहीं कम किसी हिरनी से


वो जिसकी चपलता का चर्चा नहीं कम किसी तरुणी से


वो जो अल्हड सा घुमे चिंता विहीन नवयोवना सा


कभी हाथ में आए ,कभी फिसल जाए


कभी क़दमों में ज़न्नत सजा जाए


वो निराकार ,कभी साकार मेरे सपनो का बादल


अपने कोष में समेटे है पृथ्वी का निर्मल जल ........पूनम

8 comments:

  1. Replies
    1. shukriya Mukesh ji ........baadlon ke roop mei man ke bhaav likhne chahe

      Delete
  2. बादल को देखने का अंदाज - बहुत खूब

    ReplyDelete

  3. वो जो चंचलता में नहीं कम किसी हिरनी से
    वो जिसकी चपलता का चर्चा नहीं कम किसी तरुणी से
    वो जो अल्हड सा घूमे चिंताविहीन नवयौवना-सा

    कभी हाथ में आए ,कभी फिसल जाए
    कभी क़दमों में ज़न्नत सजा जाए
    वो निराकार , कभी साकार
    मेरे सपनो का बादल !

    अपने कोष में समेटे है
    पृथ्वी का निर्मल जल…

    क्या बात है !
    वाह ! वाऽह ! वाऽऽह !

    बहुत खूबसूरत !
    पूनम माटिया जी
    बहुत सुंदर !

    आपकी रचना में आपका भीतरी सौंदर्य भी झलक रहा है…
    सावन के महीने में फिर पढ़ेंगे यह कविता
    :)


    बहुत बहुत शुभकामनाओं सहित…

    ReplyDelete
    Replies
    1. राजेंद्र जी ......आप से तारीफ मिलती है तो लगता है कोई पदक मिला :) ..
      आपने सच कहा .......बचपन से ही बदल मेरे स्वप्नों के प्रतीक रहे हैं

      Delete