ताज़ा ग़ज़ल
पूरे के पूरे आपके हम हो नहीं सके
बोझिल हुआ था रिश्ता कि हम ढो नहीं सके
तारे सजा के आपने, आँखों में जो भरे
रौशन किये थे ख़ाब वो सच हो नहीं सके
काँटों-सा जो मिला है हमें क्या बताएँ अब
बिस्तर मिले जो फूल के, तो सो नहीं सके
ऐसे फँसे सराब में हम फँस के रह गये
सच्चा मिला जो प्यार तो हम खो नहीं सके
सराब-मृगतृष्णा, धोखेबाजी
ऐसे उड़ी थी धूल कि क़िरदार अट गया
शीशे को देखते रहे पर धो नहीं सके
बरसात भी मिली कभी तो धूप भी हमें
'पूनम' कभी भी चाँदनी हम बो नहीं सके
पूनम माटिया
पूनम माटिया
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