Wednesday, December 7, 2022
अमृता शेरगिल पेंटिंग में कविता by Dr Neelam Verma----Review By Poonam Matia
कला कला को जन्मती, कला कला का सार
कला रहित मानव अहो! जन्म हुआ निस्सार
प्रथम पंक्ति डॉ. नीलम वर्मा के संदर्भ में पूर्ण तरह चरितार्थ होती है| नृत्य और काव्य कला का संगम एक चिकित्सक यानी कार्डियक फिजिशियन में अद्भुत!
क्षणिकाएं, हाइकु, ग़ज़ल, अनुवाद, अंग्रेज़ी में कविताएं और अन्य कई विधाओं में नीलम जी लिखती हैं| साथ ही अंतस् के पटल पर सदैव कुछ नया प्रस्तुत करती हैं|
कविता विशेषकर हाइकु और उसके अनुरूप पेंटिंग जब साथ आते हैं यानी उनका समन्वय होता है तो विधा ‘हाइगा’ हो जाती है| ‘अमृता शेरगिल पेंटिंग में कविता ’ के लिए नीलम जी को विशेष बधाई|उनकी साहित्यिक- माला में एक और गोहर पुर गया|
कुछ वर्ष पूर्व भी हाइगा विधा में एक संग्रह लोकार्पित हुआ था जिसमें रेखा रोहतगी जी के हाइकु थे और उनके अनुरूप बने हुए चित्र या रेखाचित्र| वह भी एक कॉफी टेबल बुक थी किंतु जब नीलम वर्मा जी की यह कृति मेरे सम्मुख आई तो ये शब्द स्वत: ही मुंह से निकल गए- आँखों के लिए अमृत यानी टॉनिक| स्फुट-लेखन की बात और है, किंतु केवल 3 पंक्तियों यानी 5-7-5 का नन्हा-सा हाइकु जब जीवन दर्शन अभिव्यक्त करता है और इस पुस्तक में चारित्रिक विशेषताओं को भी विस्तार देता है तो यह अद्भुत एवं महनीय कार्य है|
अमृता शेरगिल की पेंटिंग भी इतनी आसानी से उपलब्ध नहीं होतीं| यह पुस्तक कई मायनों में महत्वपूर्ण है-एक तो इसमें बोलती हुई-सी पेंटिंग हैं और उन पेंटिंग्स में से आती हुई अमृता शेरगिल की मन की आवाज़ है जो नीलम जी ने अपने हाइकु के माध्यम से हम तक पहुंचाई है|साथ ही यह भी शिल्प के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण है कि नीलम जी ने हाइकु में तुकांत के चयन और प्रयोग में ध्यान दिया है जिस कारण वे स्मरणीय और सुंदर हो गए हैं|
एक बार हाइकु के संबंध में मैंने यह भी पढ़ा था कि विश्व यानी ब्रह्मांड में जो नाद गूँजता है यथा
नमः शिवाय:
ओम् नम: शिवाय
नमः शिवाय
यह विश्व का प्रथम हाइकु है| डॉ. गोयंका को एक बार सुना था इस सन्दर्भ में क्योंकि उनका जापान में रहते हुए इस विधा पर गहन अध्ययन है| कहीं पढ़ा भी था कि अधिकतर हाइकु प्रकृति और प्रकृति के स्वभाव के विषय में लिखे जाते हैं किंतु आज यानी वर्तमान में जैसे ग़ज़ल का पारंपरिक स्वरूप बदल गया है,लहजा बदल गया है और सामाजिक सरोकार उसमें जुड़ गए हैं, ठीक उसी प्रकार हाइकु भी ज़िन्दगी, समाज, दर्शन और अध्यात्म से जुड़कर नित नवीन हो रहे हैं|
अधिक न लिखते हुए इस पुस्तक के कुछ हाइकु और एक शीर्षक जो नीलम जी की क्रिएटिविटी को आपके सामने लाएगा साझा करना चाहूँगी|
‘मेरी सिमिट्री’ यानी वो जगह जहाँ मृत शरीर दफनायें जाते हैं लेकिन नीलम जी ने इसका हिंदी में जो शीर्षक दिया वह था ‘ख़ुशी का जाम’ क्योंकि हमारे शास्त्रों में और कहीं और भी यह कहा जाता है कि मृत्यु एक उत्सव है| पहला ही हाइकु
कला गर्विता
रंग रेखा रूपसी
मेरी अमृता
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शून्य आकाश
अंधेरों में ढूंढती
आत्मप्रकाश
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जाएगी कहाँ
हवाओं में मिलेंगे
उसके निशां
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तृष्णा अपूर्ण
गुरुशरण बिना
कैसे हो पूर्ण
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खानाबदोश
हंगरी के गांवों में
जलवाफ़रोश
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मौत शिकारी
लकीरों की क़िस्मत
रंगों से हारी
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कितनी ख़ूबसूरती से एक गहरी बात कही है क्योंकि जो रेखा चित्र बनाते हैं जो केवल पेंसिल स्केच करते हैं और जब उनमें रंग भर देते हैं तो देखिए फिर रंग ही मुखर हो जाते हैं, रेखाएं छुप जाती हैं तो यही हमारी सोच की भी बात होती है कि कला के ऊपर कला नित नवीन होती है या छुप जाती है|
चुप हो जाती
शहजादी उदास
कुछ न गाती
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आंखें विरान
रहती पराधीन
हर मुस्कान
तो मित्रो! कहना चाहूंगी कि यह बुक, कॉफी टेबल बुक जिसमें पेंटिंग हैं, हाइकु हैं - एक पठनीय और संग्रह्नीय पुस्तक है|इसके लिए नीलम जी, उसके उनके प्रकाशक उमेश मेहता जी, दोनों ही बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं| अमृता शेरगिल की पेंटिंग्स तो अद्भुत हैं ही|
पूनम माटिया
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