मेरी मित्र सूची - क्या आप सूची में है ?

Saturday, November 1, 2025

शुभाशंसा -‘शजर पे चांद उगाओ'.. डॉ पूनम माटिया -ग़ज़ल संग्रह ..Poonam Matia #JangBahadurPandey

 


 ‘शजर पे चांद उगाओ’- लाजबाब ग़ज़ल संग्रह है


डॉ. जंग बहादुर पाण्डेय , पूर्व अध्यक्ष, हिंदी विभाग रांची विश्वविद्यालय, रांची 
द्रुतडॉक:

pandey_ru05@yahoo.co.in

 किसी सरस्वती पुत्री की सुदीर्घ सारस्वत साधना का आकलन करना आसान काम नहीं है, विशेषत: उस सरस्वती पुत्री की साधना का आकलन करना तो और भी कठिन कार्य है; जिसका व्यक्तित्व और कृतित्व बहु-आयामी हो, जिसके चिंतन का आकाश विस्तृत और व्यापक हो और जो एक साथ कई भाषाओं एवं विधाओं में निष्णांत हो, ऐसी वाणी-साधिका का बहिरंग जितना व्यापक होता है, अंतरग कहीं उससे अधिक गहरा। संस्कृत, हिन्दी , अंग्रेजी और उर्दू की परम विदुषी डॉ पूनम माटिया एक ऐसी ही वाणी-साधिका और सरस्वती की वरद् पुत्री हैं। कविता करना कठिन है और कविता में स्वाभाविकता की अभिव्यक्ति तो और भी कठिन कार्य है। अग्नि पुराण के काव्य शास्त्रीय भाग में महर्षि वेदव्यास ने लिखा है: नरत्वं दुर्लभं लोके, विद्या तत्र सुदुर्लभा:। कवित्वं तत्र दुर्लभं, शक्ति: तत्र सुदुर्लभा:। अर्थात् इस संसार में मनुष्य योनि में जन्म लेना कठिन है, विद्या की प्राप्ति उससे कठिन है, कविता करना उससे कठिनतर और कविता में स्वाभाविक अभिव्यक्ति की उपस्थिति एवं शक्ति तो कठिनतम है। यही कारण है कि हिंदी के मूर्धन्य समालोचक एवं सुप्रसिद्ध इतिहासकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कविता को मनुष्यता की उच्च भूमि कहा है। कविता को परिभाषित करते हुए आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है कि "जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञान दशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की मुक्तावस्था रस दशा कहलाती है;  ह्रदय की इसी मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है, उसे कविता कहते हैं। इस साधना को हम भाव योग कहते हैं और कर्म योग एवं ज्ञान योग के समकक्ष मानते हैं|"  आचार्य शुक्ल की स्थापना है,  "कविता ही मनुष्य के हृदय को स्वार्थ संबंधों के संकुचित मंडल से ऊपर उठाकर लोक सामान्य की भाव भूमि पर ले जाती है, जहाँ जगत् की नाना गतियों के मार्मिक स्वरूप का साक्षात्कार और शुद्ध अनुभूतियों का संचार होता है। इस भूमि पर पहुँचे हुए मनुष्य को कुछ काल के लिए अपना पता नहीं रहता, वह अपनी सत्ता को लोकसत्ता में लीन किए रहता है। उसकी अनुभूति सब की अनुभूति होती है या हो सकती है। "आचार्य रामचंद्र शुक्ल- चिंता-मणि-कविता क्या है? डॉ पूनम माटिया जी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार, सुकवयित्री, ग़ज़लगो एवं मनीषी विदुषी हैं। इन्होंने मैट्रिक से एम ए तक सभी परीक्षाएं उच्च श्रेणी में पास की हैं| इन्होंने बी एससी, एम एससी न्यूट्रीशन, बी एड, एम बी ए (मानव संसाधन प्रबंधन)तथा हिंदी में एम ए की परीक्षा पास की है। मध्य प्रदेश, उज्जैन से इन्हें विद्या वाचस्पति तथा विद्या सागर की मानद् उपाधि प्राप्त हैं। आपकी अनेक कृतियां प्रकाशित हैं:-

1स्वप्न श्रृंगार-2011, 2 अरमान -2012, 3 अभी तो सागर शेष है-2015, 4अभी तो सागर शेष है(द्वितीय भाग)2022, 5 क्षितिज के छोर तक-2024, 6 कलर्स आफ सिम्फनी-जुलाई 2024(अंग्रेजी कविताओं का संकलन)| इनकी शताधिक रचनाएं विभिन्न राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित एवं प्रशंसित हुई हैं। आकाशवाणी, दिल्ली और दूरदर्शन, दिल्ली से आये दिन आपकी वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। अपनी रचनाधर्मिता के लिए अनेक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा आप सम्मानित हो चुकी हैं। इन्हें अनेक सम्मान प्राप्त हुए हैं और निरंतर साहित्य की श्रीवृद्धि में इनकी लेखनी चल रही है-साहित्य के लिए यह परम शुभ है।
 इनकी माता का नाम स्व मैना देवी और पिता का नाम स्व श्याम लाल गुप्ता है। इनके पति का नाम श्री नरेश माटिया है, जो एक कुशल उद्यमी और निष्ठावान पति हैं और जो पत्नी के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चलने वाले भारतीय धर्म परायण पुरुष हैं। अयोध्या काण्ड में कोप-भवन में प्रभु श्री राम ने माँ कैकेयी से कहा है कि हे माँ वही पुत्र बड़भागी है, जो माता-पिता के चरणों का अनुरारागी है:- सुनु जननी सोई सुत बड़ भागी। जे पितु मातु वचन अनुरागी। तनय मातु पितु तोष निहारा। दुर्लभ जननी सकल संसारा। मुझे यह लिखने में प्रसन्नता हो रही है कि डॉ पूनम माटिया एवं श्री नरेश माटिया प्रभु श्रीराम की इस कसौटी पर सोलह आना खरा उतरते हैं-यह सबके लिए गौरव का संदर्भ है।
लोकप्रियता यदि किसी ग़ज़लकारा की सफलता एवं कुशलता की कसौटी है-डॉ पूनम माटिया इसकी ज्वलंत उदाहरण रही हैं। इन्होंने सफलता पूर्वक अपने कर्मों का निष्पादन कर प्रभुत
यश और प्रतिष्ठा पाई है। देववाणी संस्कृत, अंग्रेज़ी, हिंदी एवं उर्दू भाषा एवं साहित्य में इनकी गहरी रूचि रही है और इनके जीवन का लक्ष्य (मोटो) रहा है- अपनी बोली अपना वेष। अपनी संस्कृति अपना देश। सारे सहज सुखों का सार। सादा जीवन उच्च विचार। साहित्य ,संगीत और कविता में इनकी गहरी रुचि इस बात का प्रमाण है कि ये अतिशय संवेदनशील हैं और मानवता से प्रेम करती हैं। इस रूप में इनका जीवन धन्य है क्योंकि संस्कृत वांग्मय के सुप्रसिद्ध नीतिकार आचार्य भर्तृहरि ने अपने ‘नीतिशतक’ में कहा है कि साहित्य, संगीत और कला से हीन मनुष्य पशु के समान हैं:- साहित्य संगीत कला विहीन:, साक्षात् पशु पुच्छ विषाण हीन:। तृणं न खादन अपि जीवमान; तद्भागधेयम् परमं पशुनाम।। रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि बिहारी लाल ने भी भर्तृहरि की इस सूक्ति को स्वीकार करते हुए लिखा है कि तंत्री नाद, कवित रस, सरस राग और रतिरंग से अनबूड़े का जीवन व्यर्थ हो जाता है और जिन्होंने सर्वतो भावेन इनका आनंद लिया, उनका जीवन धन्य हो जाता है: तंत्री नाद, कवित रस, सरस राग, रति रंग। अनबूड़े, बूड़े तिरे, जे बूड़े सब अंग।। इन सूक्तियों के आलोक में डॉ पूनम माटिया का जीवन सार्थक एवं मूल्यवान रहा है।
यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात ने कभी कहा था कि परम पिता परमेश्वर को जब अपने द्वारा निर्मित सृष्टि के लोगों से बातचीत करनी होती है, तो वह केवल दो को ही माध्यम बनाता है या तो वह संतो के मुखारविंद से बोलता है या कवियों के मुखारविंद से। अर्थात् संतों या कवियों की वाणी परमात्मा की वाणी होती है ।इसलिए आधुनिक युग के सबसे बड़े लोकप्रिय गीतकार डॉ गोपाल दास नीरज ने लिखा है:- आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य। मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य।। अस्तु मुझे लिखने की इजाजत दीजिए कि डॉ पूनम माटिया को मानव होने का भाग्य और कवयित्री होने का सौभाग्य प्राप्त है,  क्योंकि उनकी कई कविता पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और भविष्य में भी प्रकाशित होंगी। ग़ज़ल अरबी और फ़ारसी काव्य परंपरा से उत्पन्न एक प्रेम पूर्ण कविता है,जो गीतात्मक और भावपूर्ण विशेषताओं के लिए जानी जाती है।यह काफिया (तुकांत शब्द) और रदीफ (काफिये के बाद दोहराया जाने वाला शब्द)से बंधी होती है, जिसमें मतला(पहला शेर) और मक़्ता (अंतिम शेर) विशिष्ट होते हैं। ग़ज़ल एक ही बहर और वजन के अनुसार लिखे गये शेरों का समूह है। इसके पहले शेर को मतला कहते हैं। ग़ज़ल के अंतिम शेर को मक्ता कहते हैं।मक्ते में सामान्यतः शायर अपना नाम रखता है।ग़ज़ल में इश्क़ और प्रेम की बात होती है। उर्दू के सुप्रसिद्ध शायर जिगर मुरादाबादी ने लिखा है कि :- ये इश्क नहीं आसां इतना ही समझ लीजै। इक आग का दरिया है और डूब के जाना है। जिगर मुरादाबादी के शब्दों को उधार लेते हुए ग़ज़ल के संदर्भ में कहा जाता है कि :- मत पूछो ग़ज़ल क्या है? ग़ज़ल लिखना इतना आसां नहीं। इक आग का दरिया है, और डूब के जाना है।यथा:- उनका जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए- सियासत जानें। मेरा पैग़ाम मुहब्बत है जहाँ तक पहुँचे। उर्दू में ग़ज़ल की दुनिया में अनेक ग़ज़लकार हैं -मिर्ज़ा ग़ालिब, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, जिगर मुरादाबादी, अल्लामा मोहम्मद इक़बाल, अकबर इलाहाबादी, नज़ीर बनारसी आदि आदि। लेकिन हिंदी में ग़ज़ल लिखने वाले बहुत कम हैं। दुष्यंत कुमार हिंदी ग़ज़ल की दुनिया के बेताज बादशाह माने जाते हैं।डॉ पूनम माटिया हिंदी ग़ज़लों की दुनिया की अनोखी ग़ज़लकार एवं फ़नकार हैं।‘शजर पे चाँद उगाओ’-उनका नवीनतम ग़ज़ल संग्रह है, जो अपनी प्रस्तुति में लाजवाब है।मैं आद्योपांत मनोयोग पूर्वक उनकी ग़ज़लों से गुज़र गया। इन ग़ज़लों से गुज़रना मानों जन्नत से गुज़रने जैसा आनंद लायक और सुखद है। ग़ज़लकारा डॉ पूनम माटिया निराशा में आशा की तलाश करती हैं और लिख डालती हैं:- अमा की रात है सुनसान हैं सभी राहें, कि जुगनुओं को बुलाओ, बड़ा अंधेरा है। सुख और दुख ज़िंदगी के दो छोर हैं। ज़िंदगी में दुख ज्यादा और सुख कम हैं। मनुष्य सुख में इतराता और दुख में घबराता है। राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखा है कि:- कौंध जाती है कभी बिजली मगर, ज़िंदगी पूरी अंधेरी रात है। कवयित्री डॉ पूनम माटिया ने ज़िंदगी को करीब से देखा है।तभी ज़िंदगी की तल्खियों को कम करने के लिए एक दूसरे के सहयोग की अपेक्षा करती हैं:- हाथ में हाथ दो तो सही, साथ मैं हूँ चलो तो सही। तल्खियां खत्म हो जायेगी, कुछ कहो, कुछ सुनो तो सही।
मौत को भी मात देने वाली डॉ पूनम माटिया अपनी शायरी से विमुख नहीं होती और लिखती हैं:- मौत का है सिलसिला पर ज़िंदगी अपनी जगह, दर्द का अंबार है पर शायरी अपनी जगह। नदीम अहमद नदीम ने डॉ पूनम माटिया के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए लिखा है: "अदब की दुनिया में श्रीमती पूनम माटिया का नाम अपरिचित नहीं है।कविता और रूहानियत से भरपूर ग़ज़लों के माध्यम से आपने जो मकाम हासिल किया है, काबिले तारीफ है।पूनम जी का अदबी सफर तवील है, इन्होंने सिर्फ़ लिखने के लिए नहीं लिखा या शौकिया लेखन नहीं किया वरन् इनका रचनात्मक व्यक्तित्व साहित्य साधना का हासिल कहूँ तो शायद गलत बयानी नहीं होगी। मुखलिस शख्सियत की मालिक पूनम जी इंसानियत और कौमी यकजहती की पैरोकार हैं। इनकी शख्सियत के पहलू इनकी तख्लीकात में भी नुमायां होते हैं।"
डॉ आदेश त्यागी के शब्दों में:-‘शजर पे चांद’ मुहब्बतों की रौशनी की वो उम्मीद है जो हर इंसान हर जगह हर वक्त करता है।"
अनिल मीत ने लिखा है- "पूनम माटिया एक बेहतरीन लब-ओ-लहजे की ग़ज़लगो शायरा हैं।आप शायराना शख्सियत की मालिक हैं और ग़ज़ल के व्याकरण से भी बखूबी वाकिफ हैं।"
अनुज कुमार के शब्दों में -पूनम माटिया भावाभिव्यक्ति की शायरा हैं, किसी ज़ुबान विशेष की नहीं।"
डॉ पूनम माटिया ने इस संग्रह की भूमिका में स्वीकार किया है कि -शायर तो अपने तसव्वूर को लफ़्ज़ों में ढालेगा ही। कुछ ऐसी ही ग़ज़लों से सजाया है-यह संग्रह -शजर पे चांद उगाओ, जिसे पढ़ने से उदास- बेचैन दिल को सुकून मिले, ज़िंदगी के कैनवास में रंग भर जाएं, कभी प्यार मुहब्बत की तरंगें उठें, तो कभी जोश जगे, कभी ज़िंदगी की मुश्किल राह में उजाले की किरणें दिखें, तो कभी खुद से ही गुफ्तगू हो जाए। रंग अनेक हैं, अब आप पर निर्भर है कि कब, कौन सा रंग आपको गुदगुदाए या फिर आप खुद ब खुद गुनगुनाने लगें।" ग़ज़ल संग्रह का शीर्षक शजर में चांद उगाओ एक ग़ज़ल के मिसरे से लिया गया है जो बहुत ही सार्थक एवं समीचीन है:- दिखाई देते नहीं हैं मुहब्बतों के समर, शजर पे चांद उगाओ बड़ा अंधेरा है। ग़ज़ल भी कविता का ही एक रूप है, अतः कविता के संदर्भ में कुछ निवेदन करना समीचीन लगता है।मेरी अवधारणा है कि कविता तीन वर्णों के योग से बनती है:- क=कल्पना, वि=विचार और ता=तालमेल। अर्थात् कविता कल्पना और विचार की समानुपातिक रागात्मक भावाभिव्यक्ति है।यदि कविता में कल्पना की अधिकता होगी, तो कविता ऊहात्मक और फैंटेसी हो जाएगी और विचारों की प्रचुरता से कविता दर्शन हो जाएगी। जिस प्रकार कुशल गृहिणी व्यंजन बनाते समय लवण की मिलावट का सदैव ख्याल रखती है, अर्थात् लवण कम होने पर व्यंजन फीका और अधिक होने पर तीखा हो जाता है, उसी प्रकार कुशल कवि को उत्कृष्ट कविता रचना के समय इन तत्वों पर ध्यान देना अनिवार्य है। राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा है कि सरस्वती की जवानी कविता है और बुढ़ापा दर्शन है। पूनम माटिया ने कविताएं जवानी में लिखीं, प्रकाशित कराईं और प्रभूत प्रशंसा पाई, बुढ़ापा तो अभी आया ही नहीं है, शायद वो आये भी नहीं। कविता ईश्वरीय वरदान है और डॉ पूनम माटिया को यह ईश्वरीय वरदान प्राप्त है। डॉ उमा शंकर चतुर्वेदी 'कंचन' ने कविता को परिभाषित करते हुए लिखा है कि:- शब्द में संचित ज्ञान है कविता, स्वर्णिम एक विहान है कविता। अक्षर ब्रह्म कहा जाता है, समझो तो भगवान है कविता। कवि की अपनी सृष्टि है कविता , भावों की ही वृष्टि है कविता। अर्थ ढूंढने वालों की निज, अपनी-अपनी दृष्टि है कविता। कोमल शब्द विलास है कविता, हास और परिहास है कविता। सांसो के कच्चे धागे पर, नव जीवन की आस है कविता। , , ग विद्यालय कविता, बड़े-बड़े देवालय कविता। देश भाल पर मुकुट सरीखा, शोभ रहा हिमालय कविता|”
अगर यह सच है कि छायावाद के कवि शब्दों को तौल कर रखते हैं, प्रयोगवाद के कवि शब्दों को टटोल कर रखते हैं, नई कविता के कवि शब्दों को गोल कर रखते हैं, सन् साठ के बाद के कवि शब्दों को खोल कर रखते हैं। तो मैं कहना चाहूँगा कि डॉ पूनम माटिया ने अपनी इन ग़ज़लों में शब्दों को खोल कर रखा है, यही इनकी काबिलियत है; जिसके लिए ये थोक भाव से बधाई की पात्र हैं। इन्होंने अपनी ग़ज़लों में गागर में सागर भरने का प्रयास किया है। उर्दू और हिंदी दोनों भाषाओं के पाठक एक साथ आनंद उठा सकते हैं क्योंकि ग़ज़लों का उर्दू पाठ भी सहज और सामने पृष्ठ पर उपलब्ध है।भाषा एवं कथ्य दोनों दृष्टियों से उनकी ग़ज़लें वैभव पूर्ण रही हैं।एतदर्थ मैं इनके मंगलमय भविष्य की कामना करता हूँ। आपके लिए मेरी परमात्मा से प्रार्थना है कि :- मिले सदा शुभ हर्ष आपको, नहीं कभी आए अपकर्ष। सतत् सुधा साहित्य प्रवाहित, लिखे लेखनी यश उत्कर्ष।।

शुभैषी
जंग बहादुर पाण्डेय पूर्व अध्यक्ष, हिंदी विभाग रांची विश्वविद्यालय, रांची
चलभाष:9431595318 8797687656,9386336807
द्रुतडॉक:pandey_ru05@yahoo.co.in
तिथि 15 अगस्त 2025 (स्वतंत्रता दिवस)



No comments:

Post a Comment