Wednesday, September 26, 2012

एक आम इंसान कही खो रहा....



इन ऊँची -ऊँची गगन चुम्बी इमारतों में
एक आम इंसान कही खो रहा  

कभी सर ऊँचा कर चलता था
आज आस्तित्व भी धूमिल हो रहा  .

सपने उड़ान भर रहें है ऊंची 
लेकिन यथार्थ में धरातल को छू रहा 


आधुनिक समाज का सूटेड-बूटेड है पहनावा
चिंताजनक है स्तिथि, अंतर्मन जो खोखला हो रहा

रिश्तों में प्यार दिखाई दे बेशक
जरूरत के समय केवल एक दिखावा ही हो रहा  

रास्ते गाँव से शहर की तरफ आते रहे 
मगर वापस जाने का पथ धूमिल हो रहा  

इन ऊँची -ऊँची गगन चुम्बी इमारतों में
एक आम इंसान कही खो रहा  ...................पूनम(अप्रकाशित)

Sunday, September 23, 2012

निश्छल प्रेम...............


प्रेम ईश है
प्रेम भक्त है 
प्रेम में जीवन 
प्रेम बिन तन निष्प्राण 
प्रेम ही संगीत 
प्रेम ही मधुर गान
सुमधुर झंकार से झंकृत 
कर्ण-प्रिय और 
नैनों की ज्योति है प्रेम
अधरों पर मुस्कान 
सुगन्धित पवन है प्रेम 
ये धरती प्रेम-मय 
व्योम में भी व्याप्त है प्रेम 
धुरी पर ज्यूँ घूमे धरा 
त्यों ही झूमे दिल प्रेम -भरा 
मीरा है प्रेम 
राधा है प्रेम 
कबीर के दोहे 
कालिदास का काव्य है प्रेम 
निश्छल चन्द्र किरणों सा 
तेजोमय दिनकर सा 
हर प्राणी का 
तात और मात है प्रेम ............पूनम .......



Tuesday, September 11, 2012

आज़माइश.........


pic courtsey.....Bharat Patel 




. 
हर पल आज़माइश के क़गार पर ही ख़ुद को खडा पाते हैं
एक इम्तिहान से उभर नहीं पाते हैं हम अभी
सामने एक नयी समस्या से फिर जूझते नज़र आते हैं

जीना पड़ता है ‘आज’ में हर किसी को
पर इस ‘आज ‘ को हरदम ‘कल’ की गिरफ़्त में ही पाते हैं

खुशियों का रेला लगा हो चारों ओर बेशक
दुखों का भँवर घेर लेगा कब
इसी पशो-पेश में ही ख़ुद फंसा पाते हैं

दिल शीशे का नहीं ,काफ़ी मज़बूत है जानते हैं हम
पर इसके टूटने का ही शोक मनाते नज़र आते हैं

अच्छा नहीं इतना उदासीन रवैया, जानते हैं सभी
फिर भी दुखों में डूब कर ही क्यों ग़ज़ल उभार पाते हैं
......poonam (AR)


naye roop mei 

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Thursday, September 6, 2012

ओ! मेरे चंचल शोख मितवा


मधुर ताल, मधुर गान 
मधुर ही हैं ये अधर तोरे 
नयन तोरे धीर, गंभीर 
पर चलाये घनेरे तीर 
हृदय तरंगित हो उठता 
जब पग में बाजे पायल तोरे 
सुन मोरे चंचल, शोख मितवा 
तोरे से जगमग दिन-रैन मोरे 

कह दो दिल खोल कर.............



चाहती तो कहना बहुत कुछ थी,मगर शिकन देख
जाने क्यों थाम लिया खुद को, सी लिए लब 

सुना था कि बातों में बात बड जाती है 
यही एक बात लबों पे ताला लगा जाती है

काश कि कोई चाबी उनके दिल की मिले
तो फिर क्यूँ बड़े यूँ शिकवे-गिले

आसां हो जाये दिल तक पहुंचना
न चुप रहना, न तिल का ताड़ बनना

ग़लतफ़हमी की बेल बेलगाम होती है
अक्सर इसके फलों में कड़वाहट बसी होती है

कहते हैं लोग - कह दो दिल खोल कर
क्यूँ बाद में पछताना बातों को नाप-तोलकर

थी आँखों में नमी और दिल में तूफ़ान-ऐ-ज़ज्बात
पर रोका न खुद को ,बस कह दी अपने दिल की बात

कहते ही सिंधु समान अश्रु-सगर उमड़ पड़ा
दिल था जो भारी,हल्का हो बादल-सम उड़ चला

मुस्कुरा के देखा उन्होंने ,खोले अपने भी दिल के पाट
मेरे दिल में भी खिल उठे आज फिर सूर्ख गुलाब ........................पूनम.