Friday, August 24, 2012

तड़प



अश्क बह जाएँ

किसे फ़रक पड़ता है

सूख के दरदरे हो जाएँ

क्या  फ़रक  पड़ता है

न पत्थर पिघलता है

न सागर मचलता है

बस एक दिल तड़पता है

और दो आंखें बरसती हैं ................पूनम(N)

जीवन चक्र


यही प्रकृति है इस देह की 


जब तक रहती है आत्मा विराजमान 


मानव देखता है स्वप्न नए 


रचता रहता है नए कीर्तिमान 


अंतकाल फिर मिलती है काया ‘उसमे’


मिट्टी हो जाती है फिर मिट्टी 


खोकर अपना आस्तित्व इस धरा में 


एकाकार होता है ईश से 


नव निर्माण के लिए आतुर,और 


पाकर गोद इस नर्म धरती की 


अंकुरण होता है फिर 


जैसे कोई कोमल कोपल नयी 


फैलाती है शाखाएं 


इस दिशाहीन जगत में 


रचती है जाल रेखाओं का 


मायाजाल अनगिनत आशाओं का 


चक्र चलता रहे युहीं अंतहीन 


जन्म ,मरण और फिर जन्म कहीं 


भ्रमित है मानव, संभवतः


क्या, क्यों और कहाँ 


होना है स्थिर मुझको अंततः...........पूनम (SS)

रूठना-मनाना

मेरी हंसी उन्हें कुछ फीकी सी लगी 


आँखों की चमक कुछ धीमी सी लगी 


पास आकर बोले ,क्या बात है


क्या हमसे कोई हो गयी नादानी 


हम भी बैठे रहे कोने में सकुचाए 


कहा धीरे से उसनेफिर 


क्यों है हमारे सरताज मुरझाए 


ज़रा नज़रें उठाइये ,थोड़ा मुस्कुराइए 


क्यों धडकन पर हो पहरा बिठाए 


जिंदगी हमारी तुम्ही से है


चलो छोडो रूठनाहमें देखना है 


तुम्हारा वही खिल-खिलाके मुस्कुराना..........पूनम (SS)

ज़माल ए हुस्न


आजकल ‘उसका’ भी ये आलम है ‘पूनम’


चाँद आसमां में रहता है मगर 


जिक्र उसका जाने क्यों सरे आम होता है 


रोशन होते हैं चिराग उसके नाम से 


ज़माल से उसके चुंधिया जाती हैं नज़रें 


हर गुलशन का ‘वही’ गुलफ़ाम होता है 


झील सी गहरी उसकी आँखों में नहा कर 


खुद चाँद भी ज़लवा-फ़रोश होता है .........पूनम (AR)

Sunday, August 19, 2012

स्वतंत्रता के मायने .......


कल मैंने भी स्वतंत्रता दिवस मनाया 
सुबह देर तक सोई
छुट्टी का इस्तेमाल किया

बेटी को था पुरूस्कार मिलना
तो जाके उसकी जगह उसे भी मैंने
ही स्वीकार किया,

क्यूँ ? पूछोगे नहीं ?
हाहाहा ! अरे भई
उसने भी तो कल ही
जी भर के नींद का आनंद  लिया

पकवान बनाए
खाए और खिलाए
बाद उसके छत पर
पतंगबाजी का रसपान किया

दूर गगन में पंछी की भांति
मन-पतंग को फुर्र से उड़ा
हर किसी ने खुद को आज़ाद किया

कितना संतोष पाता है मानव
काट पतंग दूजे की
बो-काटे !चिल्ला कर खुद
को ही हर किसी ने राजा मान लिया


समाज ,राज्य ,देश
नहीं रखते हैं मायने
काट पतंग , दूजे को हरा
अपने स्वाभिमान की भूख को थोडा शांत किया

कितना अजीब है हर खेल यहाँ
पतंग की डोर से
पंख शायद कट जाते होंगे किसी पंछी के
इस बात पर किसी ने न तनिक ध्यान दिया

स्वतंत्र देश में स्वतंत्र विचार
स्वतंत्र आचार-व्यवहार
मित्रों !तभी तक अच्छे
जब हमने दूजे की स्वतंत्रता का भी मान किया.......पूनम (N).








Sunday, August 12, 2012

मुलाक़ात ............




पूछता है आइना अक्सर, कहाँ गयी तेरी वो मुस्कान अब ?
कैसे बताएं उसे कि उनसे, होती नहीं मेरी मुलाकात अब  ?

दरों-दीवार रहते थे मेरे, जिनके प्यार से रोशन हरदम,
क्या कहें गहरा गयी है, रात सी स्याही सरे शाम अब|

पहलु में मेरे खोये हुए , गुज़रते थे रात –दिन  जिनके,
रास्ते जुदा हुए उनसे, हो गयी ये बात सरे–आम अब|

चटकती थी कलियाँ मेरे दिल की, अहसास से जिनके ,
खिलते नहीं अब गुल वहाँ , मुरझा गयी है हर शाख अब|

बड़े अरमानो से बसाई थी , साथ उनके दुनिया ख़्वाबों की,
बिखर के खत्म हो गयी  , नगरी वो हंसी-महताब  अब|

उनके  साथ कट जाती थी, जो बातों, वादों, मनुहारों में,
क्यों कटती नहीं काटे , वो लंबी सुनसान रात अब |

बड़े गुमान से कहते थे मुझे, अश्क बेशक़ीमती हैं ‘पूनम’,


कौन है जो सम्भालेगा मुझे, समझेगा मेरे जज़्बात  अब |


.............पूनम (N)

Monday, August 6, 2012

दोस्ती ......शीतल चांदनी

दोस्ती के मायने कोई 
 

यूँ ही समझ नहीं सकता ......
 

बिना आग की लपटों से गुज़रे 
 

कोई ये तप्त दरिया पार कर नहीं सकता
 

शीतल चाँद की चांदनी भी यहीं झलकती है 
 

बिन दो पल ठहरे कोई ये ठंडक पा नहीं सकता.........पूनम (AR) 

अंजुली भर प्यार ...


इस सफर में चलते-चलते मिलेंगे बहुत 
 

प्यार से लगेंगे गले या काट सकते हैं गला भी 
 

बात बनती है जब उठे हस्त आशीष के लिए 
 

या फिर किसी असहाय की मदद के लिए 
 

हाथ हाथ को थाम ले बढे मंजिल की ओर 
 

कहानी ऐसी लिखे इस जिंदगानी के पथ पर 
 

जो सागर से हो गहरी और ऊँची आसमा से 
 

जीत लिखो या हार लिखो ,बस मेरे दोस्त 
 

इक अंजुली-भर निस्वार्थ प्यार लिखो ........पूनम (SS)

Saturday, August 4, 2012

आत्मचिंतन



खुद से खुद को मिलने की फुर्सत नहीं
ज़माने से मिला करते हैं हम

मुस्कुराकर रिप्लाई करते हैं सबको
ज़हन में अपने हज़ारों प्रश्न रखते हैं हम

आइये ,कभी खुद से खुद की मुलाक़ात कर लें
एक पल तो अपने भी दिल से चैन से बात कर लें

कल फिर मौका मिले न मिले
आज ही इन प्रश्नों से नज़रें दो चार कर लें

आओ ना ! बैठें, झाँक लें भीतर
कुछ अपने गम और खुशियों का भी हिसाब कर लें

दुनिया की भीड़ हर पल चारों ओर से घेरे है
कुछ समय तो आत्म-चिंतन भी कर लें ......पूनम (N)

Baadal..........बादल.........

...


बरखा रानी का जन्म दाता ....
अपने कोष में समेटे है धरती का अमृत
वो जो लेता है स्वरुप हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप 
वो रखता है क्षमता सूर्य को ढापने की 
वो जो फैलाता है माँ सम आँचल तेज धुप में 
वही जो दीखता है क्षितिज के छोर तक 
मुलायम है,सफ़ेद है कभी कोमल रूई सा
सख्त लगता है कभी स्याह कोयले सा 
वो जिसे देख नाचे जंगल का मोर 
वो जिसे देख खिल उठे मन का भी मोर 
वो बदलता है नित नए रूप 
कभी नयी वधु सा उदीप्त ,तेजोमय 
कभी उदास ,मुरझाई विरह में प्रेमिका 
वो जो चंचलता में नहीं कम किसी हिरनी से 
वो जिसकी चपलता का चर्चा नहीं कम किसी तरुणी से 
वो जो अल्हड सा घुमे चिंता विहीन नवयोवना सा 
कभी हाथ में आए ,कभी फिसल जाए 
कभी क़दमों में ज़न्नत सजा जाए 
वो निराकार ,कभी साकार मेरे सपनो का बादल 
अपने कोष में समेटे है पृथ्वी का निर्मल जल ........पूनम (N)