इन ऊँची -ऊँची गगन चुम्बी इमारतों में
एक आम इंसान कही खो रहा
कभी सर ऊँचा कर चलता था
आज आस्तित्व भी धूमिल हो रहा .
आज आस्तित्व भी धूमिल हो रहा .
सपने उड़ान भर रहें है ऊंची
लेकिन यथार्थ में धरातल को छू रहा
आधुनिक समाज का सूटेड-बूटेड है पहनावा
चिंताजनक है स्तिथि, अंतर्मन जो खोखला हो रहा
रिश्तों में प्यार दिखाई दे बेशक
जरूरत के समय केवल एक दिखावा ही हो रहा
रास्ते गाँव से शहर की तरफ आते रहे
मगर वापस जाने का पथ धूमिल हो रहा
इन ऊँची -ऊँची गगन चुम्बी इमारतों में
एक आम इंसान कही खो रहा ...................पूनम(अप्रकाशित)