जाम था, तिश्र्नगी रही फिर भी
वस्ल था, बेकली रही फिर भी
वस्ल था, बेकली रही फिर भी
ज़िन्दगी ज़िन्दगी न थी यूँ तो
शान से वो तनी रही फिर भी
ज़िन्दगी से बहुत निबाह किया
ज़िन्दगी अजनबी रही फिर भी
तेरा आना
न था ज़रूरी,पर
आस दिल में बँधी रही फिर भी
यूँ तो सब आस-पास थे मेरे
तेरे बिन कुछ कमी रही फिर भी
लाख चाहा न डगमगाएं हम
रात दिन बेख़ुदी रही फिर भी
रात दिन बेख़ुदी रही फिर भी
ढक लिया चाँद अब्र ने तो क्या
रात ‘पूनम’ की ही रही फिर भी ........ पूनम माटिया
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