औरत को जब-जब मिले माँ का स्वरुप
नतमस्तक हो जाये नर, दानव-औ-देवदूत
हर
क्षण माता-पिता के प्रति आदर-सम्मान और सेवा भाव के लिए है परन्तु किसी दिवस को हम
विशेष बना देते हैं जब हम माता या पिता को केंद्र में रख कर मनाते हैं ....
कभी
सोचा कि एक रचना रची जाए, कभी लगा कि आप से बात करी जाए ...’माँ’ ..एक ऐसा शब्द है
जिसमे संसार बसा है तो लगा कि एक रचना में कैसे समाएगा यह अनंत स्नेह-सिक्त सागर
...और ऐसा भी नहीं कि माँ के बारे में लिखने वाली मैं पहली होउंगी .....साहित्य
में माँ के नाम के परचम सबसे ऊपर लहराते हैं ...कोई भी विधा हो-कहानी ,कविता ,ग़ज़ल
-सभी में माँ को शिरोमणि का दर्जा दिया गया है .....सूर्योदय से चंद्रोदय तक माँ
चक्रघन्नी की तरह पूरे घर में दृष्टिगोचर होती है ......पति ,बच्चे ,बड़े-बूढ़े –परिवार
का कोई भी सदस्य हो ..माँ के ध्यान से छूट जाए ....ऐसा हो नहीं सकता ......इसी
प्रकार ..देश दुनिया का कोई भी साहित्यकार ‘माँ’ पर लिखने से अछूता रहा हो
......ऐसा मुझे नहीं लगता |
आज
जब मैं कभी भी पीछे मुड के देखती हूँ तो
मन में अपनी माँ के लिए श्रद्धा का ऐसा ज्वार आता है जो अश्रु रूप में नैनों से
बहने लगता है और अनेकों-अनेक धन्यवाद देता है यह मन उनके निस्वार्थ भाव से किये गए
हमारे लालन पालन के लिए .......हमें वो बनाने के लिए जो आज हम हैं |
ज़हनी तौर पे जो तस्वीर बसी है मेरी माँ की
......वो शर्तीय किसी और ने नहीं देखी होगी ...और आज मैं उसी चित्र के कुछ रंग आप
से साझा करना चाहती हूँ .....वैसे तो हम पांच भाई बहिन हैं ......पर हर एक ने कुछ
खास चित्र अंकित किये होंगे अपने मस्तिष्क-पटल पे|
मुझे
तो मेरी माँ ,जिन्हें हमेशा से मैंने मम्मी कहा है, उसी पवित्र रूप में याद आती
हैं ......सुबह सवेरे उठकर नहा-धोकर, खुले, घुंगराले केशों को अपनी सूती धोती के
पल्लू से ढकती हुई मम्मी रसोई में सारे बर्तन खाली कर दुबारा से पानी से भरती थी
..उनकी दिनचर्या का आज भी यह महत्वपूर्ण भाग है .....बालों को दोनों कानो से थोडा
सा उठाकर एक पतली सी गुथ में बांध लेती थी .....एक नयी दुल्हन सी सुंदर लगती थी
मेरी मम्मी मुझे ...माथे पे लाल बिंदिया गोर रंग पे बहुत निखर के आती थी ....आज
मेरी मम्मी की त्वचा झुरियों से भर गयी है .शरीर भी सिकुड़ कर छोटा सा रह गया है .....मेरे काँधे तक आने वाली मेरी मम्मी अब
उतनी स-शक्त नहीं रही जितना मैं उन्हें अपने बचपन से देखती आई हूँ| .
शायद हर माँ ही .........हाँ ‘मैं’ भी ...एक अजीब
सी दैवीय शक्ति से भरपूर होती है जो उसे
भगवान के जैसी ही सर्वज्ञ, सजग और
सम्पूर्ण बना देती है ....पूजा करती हुई मेरी मम्मी को देखकर मुझे लगता था कि शायद
मम्मी अपने लिए कुछ मांगती ही नहीं ........ बच्चों की ख़ुशी के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की इच्छा शायद सबसे अधिक माँ में
ही होती है जो एक चाबी सी भर देती है माँ
के शरीर में .....वैसे तो हर बालक को अपनी माँ के हाथ का बना खाना सबसे स्वादिष्ट
लगता है .....पर यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी जब मैं कहूँगी कि मेरी मम्मी के हाथ
का बना खाना खाने के बाद कोई भी उंगलियाँ चाटे बिना नहीं रह सकता |
एक अनोखा गुण जो मैंने बहुत कम लोगों में देखा है
.....वो यह कि मम्मी मार्किट में भी सिर्फ
खरीदारी नहीं कर के आती थी वह तो दिमाग भी भर लाती थी नए नए विचारों से .....और घर
आकर उन्हें हमारे कपड़ों ...मेरे लिए फ्राक .दीदी के लिए सूट ..भाइयों के लिए शर्ट,
नेकर .....पापा के लिए कुर्ते-पजामे ...और अपने खुद के ब्लाउज़ में बखूबी ढाल देती थी ....वो क्षण अविस्मरनीय
होते थे जब उनकी आँखे चमक जाती थी ......उन कपड़ों में हमें सजे संवरे देख के |
घर में आने वाले मित्र ,रिश्तेदार
,अड़ोसी-पडोसी कोई भी ऐसा नहीं होगा जिसने
उनकी कर्तव्य निष्ठा पर पुष्प समान शब्दों की वर्षा न की होगी ........मेरे बच्चे
भी नानी के सामने मुझे गौण ही कर देते हैं और सही भी है ...उनकी छाया हैं
हम...कितने भी बड़े ,संपन्न हो जाए .....उनके रोशन तेज के समक्ष कुछ नहीं |
औपचारिक
शिक्षा तो विद्यालय ,कालेज इत्यादि में मिलती है सभी को .....परन्तु माँ तो अनुभव
का वो पूर्ण संसार है जो चलता–फिरता गुरुकुल है परिवार के सभी सदस्यों के लिए| उनके
द्वारा पुराने रीति-रिवाजों को निभाते हुए सभ्यता और संस्कृति का हस्तांतरण करना (जैसे
कि मम्मी का गोबर से गोवर्धन और दशहरा बनाना और दीपावली पर खड़िया से हटड़ी को लीपना)..,
.....बच्चों के संग बच्चा बन कार्टून फिल्म की बाते करना , बातो-बातों में गिनती, पहाड़े
, नर्सरी-राइम्स याद करवा देना ,........बहुओं-बेटियों के संग टी. वी. धारावाहिक के किरदारों की चर्चा
करना और सम –सामयिक विषयों जैसे समाज में फैली विकृतियों -सामूहिक रेप ,
भ्रष्टाचार इत्यादि पर अपनी बेबाक राय रखना तथा काम करते-२ आजकल के ज़रूरी अंग यानी
मोबाइल और कंप्यूटर का सफल उपयोग करना.......अपने समकक्ष लोगों के साथ ग्रंथों में
निहित ज्ञान पर तर्क-वितर्क करना ......साबित करता है .......
परिवार को जोड़े रखने का मज़बूत आधार.......माँ स्वयं ही एक सम्पूर्ण संसार |
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