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Thursday, August 29, 2013

मीलों हैं फैली तन्हाई ................

ऊपर रंगी आसमा है आया चिढाने नीचे बरपी तन्हाई है सीना ताने
हैं शूल ही शूल जहां तक निगाह जाए है रेत ही रेत कहाँ से गुल कोई आये

दूर तक न नामो निशां है इंसानी ज़ात का कोई तो आके ले जायज़ा मेरे हालात का ...................पूनम

Wednesday, August 28, 2013

चक्रधर...............chakradhar..




चक्रधर से कहाँ छिपे हैं आज के असहनीय दृष्टांत 
वो भी होगा परेशां, होगा उसका भी चित अशांत

कोटि-कोटि प्रार्थनाएं पहुँचती होंगी उस तक
कब तक इन सूचनाओं पर न देगा वो ध्यान

उठती होंगी लहरें, मचलते होंगे असंख्य तूफ़ान
कब तक साहिल की सीमाये सकेंगी उसे बांध

दिया था उसने भगवत-गीता में सन्देश
आऊँगा मै जब भी बढेंगे कलियुगी क्लेश

आएगा एक दिन ‘वह’ रूप इंसा का धार कर
लेगा अवतार, दुष्टों का करेगा नाश संघार कर 

अपने नाम का न होने देगा वह अपमान यूँ
सृष्टि रची है उसी ने, न हो ए-इंसा परेशान तू

ढोंगी साधू बेशक रहें जपते माला के मनके
जमाते रहे भीड़,सजाते रहे मस्तक पर तमके

आएगा, जब तो घंटियों की मधुर ताल होगी
गुंजित आसमा और धरा एक पुष्प-माल होगी

देर हो जाये भले न अंधेर होगी, ये विश्वास है मेरा 


चक्र की धार न 'कल' कम थी न 'कल' कम होगी ........poonam 

Wednesday, August 21, 2013

ghazal..................

तुझे सारा जमाना चाहता है||
तुझे दिल में बिठाना चाहता है||

अभी कितना रुलाना चाहता है |
कहाँ तक आजमाना चाहता है||

हमारी सात जन्मों की कसम है |
बता कितना निभाना चाहता है||

मुझे महताब का देकर भुलावा |
तुम्हीं को वो दिखाना चाहता है||

किसी ने बाग़ जंगल सब उजाड़े|
शज़र कोई बचाना चाहता है||

नहीं कुहरा तिरी क़िस्मत ये 'पूनम' |

‘क़मर’ अब जगमगाना चाहता है ||                                 ...........पूनम माटिया 


u can now read it ...In Roman .too.

Tujhe sara zamaana chahta hai |
Tujhe dil meiN bithaana chahta hai ||

Abhi kitna rulaana chahta hai |
KahaaN tak aazmaana chahta hai ||

Hamaari Saat JanmoN ki kasam hai |
Bataa kitna nibhana chahta hai ||

Mujhe Mehtaab ka dekar Bhulava |
Tumhi ko vo dikhana chahta hai ||

Kisi ne baag ,jangal sab ujaade |
Shazar koi bachaana chahta hai ||

NahiN kuhra tiri kismat ye ‘poonam’|
'Kamar' ab jagmagaana chahta hai ||............... poonam matia

रेशम के नाज़ुक धागे में बंधा पवित्र स्नेह-दुलार..


पावन पर्व राखी का 
देता ये भीगा सा अहसास
भाई-बहिन का यह रिश्ता
देखो है कितना खास

रेशम के नाज़ुक धागे में
बंधा पवित्र स्नेह-दुलार
यही है इस पावन पर्व का
गरिमा-पूर्ण मनुहार

लक्ष्मी ने बाँधी थी राखी
बाली की कलाई
बदले में मांग ली थी
विष्णु की रिहाई

तब से अब तक बहनों ने
भाई संग प्रीति निभाई
जब-२ बाँधी डोर रेशम की
भाई ने रक्षा कर कसम निभाई


बढ़ी दूरियां, बदला माहोल
राखी की गरिमा में हुआ है ह्यास
रह गयी डोरी प्रेम की
सिर्फ एक औपचारिकता आज

बहिन सोचे राखी के धागे में
जड़ दूँ मोती, हीरे हज़ार
भाई सोचे क्यूँ है डाले
बहना मेरे सिर पे ये भार

आज रेशम की ये डोर
करती सबसे इक गुहार
सींचो इस रिश्ता को
रख दिल में प्यार-२ बस प्यार......... poonam 

Thursday, August 15, 2013

मातृभूमि तूने दिया बहुत ,जांबाज़ तूने किया बहुत 


मैं भी अक्षम नहीं किन्तु हाथ बंधे हैं मेरे 


है इल्तेज़ा यही मेरे परवरदिगार तुझसे 

काट बेड़ियाँ,खोल खिड़कियाँ हैं मेरे सामने हैं काज बहुत ..... Poonam matia



Matribhumi aur shaheedoN ko naman 

सन 1947 में जो हमें मिली क्या वो आजादी थी ....सभी जानते हैं कि वो स्वतंत्रता नहीं बल्कि एक समझोता /एक संधि थी जिसमे एक हाथ से शक्ति से दुसरे हाथ में गयी थी .इसलिए ही हम अब तक सही मायने में स्वतंत्रता का फल पा नहीं पायें हैं ......बुराइयां भी आज के समय में बहुत हैं ..........परन्तु स्वतंत्रता दिवस के अवसर पे थोडा आत्मचिंतन ज़रूरी है ....कि क्या हमें सही मायने में इसे पाया है ..गर आप सोचते हैं हाँ ....तो ठीक .........गर समझते हैं कि नहीं .......तो यह और जरूरी हो जाता है ..क्योंकि हमारे नीति निर्माताओं ने देश भक्ति के लिए केवल कुछ ही दिन मार्क कर दिए हैं तो हमें उन्हें व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए .और अपने दिल की गहराइयों से आजादी के दिन के यादगार दिवस को मनाये ताकि देश भक्ति के कुछ भाव दिलों से निकल बाहर आयें और हर एक शख्स कुछ योगदान दे पाए, .स्वेच्छा से ...अपनी जननी जन्म भूमि के लिए कुछ कर पाए .. ........
जय भारत ,वन्दे मातरम ......... धन्यवाद एवं शुभकामनाएं

Friday, August 9, 2013

Teej kii hardik badhaiyaan .....................


सावन का आया है सुहावना माह 
मयूर बन झूमने की उठी है चाह 

ज्यूँ कृष्ण संग रास रचावें गोपियाँ 
त्यूँ बदरा करे अम्बर में अटखेलियाँ

मनोहारी ‘कुमारी’ छाई है छटा 
सौंधी है माटी , बावरी हुई जाए घटा

पुष्प हैं सुगन्धित , पवन है आनंदित
‘तीज’ उड़त, हिय रोम-रोम आह्लादित

चहु ओर पींग बढावें सु-कुमार
ललनाएं झूलन को चली कर सोलह-सिंगार

मनिहारिन सतरंगी चूड़ी ले इत-उत फेरा लगावे
गोरी कलइयां थामन कृष्ण खुद झुला झुलावन आवें

मन-भ्रमर कहीं भी चैन न पावे
तीज मनाने छोरी पिया मिलन ही चहावे

सांवरिया संग मन पंछी गगन चूम-चूम आवे
कजरी, मल्हार सावन की भीनी-भीनी फुहार सुनावे

बरसों बरस यूँही भारतीय संस्कृति परवान चढती जावे
तीज-त्यौहार ,लोक-परम्पराएं सब मिलके चाव से निभावें ....... poonam matia 

Friday, August 2, 2013

मेरी नज़्म .......वोमेन एक्सप्रेस में .....

बाहर भी बारिश है भीतर नमी सी है 
शायद तुम्हारी ही कुछ-कुछ कमी सी है 

यादों का सैलाब क्यों फिर से उमड़ा है 
ख़ाबों का इक बाग़ क्यों फिर से उजड़ा है 

मुमकिन नहीं नींद आँखों को छू जाए 
ख़ाबीदा नग़मों में तू मुझको गा पाए 

शायद ये तेरी ही आँखों का पानी है 
बारिश की बूँदों में तेरी कहानी है 

क़िस्सा ये सुनने को दुनिया थमी सी है 
बाहर भी बारिश है भीतर नमी सी है
...........................................पूनम