अंतराष्ट्रीय हिंदी कविता प्रतियोगिता में अन्य ग्यारह के साथ प्रथम स्थान
प्राप्त करने अत्यंत ख़ुशी है ........पूनम माटिया 'पूनम'
मेरी रचना पर्यावरण और जीवन से सम्बंधित थी .....
शीर्षक: अनुभव के रंग .......
हमारे मन मस्तिष्क की गति
अग्नि मिसाइल से कम नहीं
अचानक ये आभास हुआ मुझको
जब पाँव दौड रहे थे ट्रेड-मिल पर
और सोच उड़ान पा पहुँच गयी
शीशे की बड़ी-बड़ी खिड़कियों के पार
खड़े वृक्षों के हरे पत्तों के झुरमुट में
देखा करती थी हमेशा से ही
पर जाने क्यूँ अलग-अलग रंग में
बंटे नज़र आ रहे थे आज ये पत्ते मुझे
कोई सुनहरा हरा रंग लिए हुए
कोई चमकदार हरा ,कोई गहरा हरा
और कुछ काला, ढलका हुआ सा हरा
जीवन के विभिन्न रंग मानो इन
पत्तों ने समेट लिए अपने में
शैशव काल की कोमलता, कच्चापन,
नाज़ुकपन लिए हलके सुनहरे हरे पत्ते
मानो अभी इन्हें वर्षों निगरानी चाहिए
बड़ों की, खुदमुख्तार होने तक
तेज हवा, चमकती धुप, मूसलाधार बारिश
कहीं कुम्लाह ना दे इनकी कोमल काया
फिर चमकदार हरे पत्तों से जा टकरा
लौट आयीं मस्तिष्क की तरंगे
अपना बचपन दौड गया आँखों के सामने से
बेफ़िक्र, मनमौजी,
ज़माने की ऊँच-नीच से अनजान
अपनी ही धुन में सवार, हंसी-ठिठोली करता बचपन
बचपन बीत गया पलभर में
और सामने आ गया
ज़िम्मेदारी से भरा व्यस्क-काल
पढ़ाई ,लिखाई ,नौकरी , परिवार
रोज की दौड-धुप , नये प्रयोग, नये आयाम
बस कुछ कर दिखाने का ज़ुनून
ये गहरे हरे पत्ते यही तो दर्शाते हैं
जीवन भर के अनुभव सामने ले आते हैं
अचानक, ठहर गयी निगाह
उन बड़े से ,गहरे हरे पत्तों पर
जिनका हरा रंग कुछ कल्साया था
और शीघ्र ही अपने बुढापे की
ओर अग्रसर होते हुए कदमो की
भारी सी थाप सुनाई देने लगी
अब इन पत्तों की शेष बची जिंदगी
में केवल इन्तेज़ार ही तो है
सूख कर झड़ जाने तक !
हाँ, छाया ज़रूर देते ये
आने-जाने वाले पथिकों को
देख इन्हें ही, ले लेता कुछ चैन की साँसे
भागता –दौड़ता , जिंदगी से लड़ता इंसान
जब हुआ अहसास ये, तब !
अपने होने का गर्व, नकारा होते हुए वज़ूद
के अहसास को कहीं गहरे दबा आया
और अपने अनुभव से रंग देने का
मन हुआ एक बार फिर
इन नये, चमकते हुए कोमल, नादान
हरे पत्तों की तरह उमड़ते बाल-पन को....... पूनम माटिया 'पूनम'
शीर्षक: अनुभव के रंग .......
हमारे मन मस्तिष्क की गति
अग्नि मिसाइल से कम नहीं
अचानक ये आभास हुआ मुझको
जब पाँव दौड रहे थे ट्रेड-मिल पर
और सोच उड़ान पा पहुँच गयी
शीशे की बड़ी-बड़ी खिड़कियों के पार
खड़े वृक्षों के हरे पत्तों के झुरमुट में
देखा करती थी हमेशा से ही
पर जाने क्यूँ अलग-अलग रंग में
बंटे नज़र आ रहे थे आज ये पत्ते मुझे
कोई सुनहरा हरा रंग लिए हुए
कोई चमकदार हरा ,कोई गहरा हरा
और कुछ काला, ढलका हुआ सा हरा
जीवन के विभिन्न रंग मानो इन
पत्तों ने समेट लिए अपने में
शैशव काल की कोमलता, कच्चापन,
नाज़ुकपन लिए हलके सुनहरे हरे पत्ते
मानो अभी इन्हें वर्षों निगरानी चाहिए
बड़ों की, खुदमुख्तार होने तक
तेज हवा, चमकती धुप, मूसलाधार बारिश
कहीं कुम्लाह ना दे इनकी कोमल काया
फिर चमकदार हरे पत्तों से जा टकरा
लौट आयीं मस्तिष्क की तरंगे
अपना बचपन दौड गया आँखों के सामने से
बेफ़िक्र, मनमौजी,
ज़माने की ऊँच-नीच से अनजान
अपनी ही धुन में सवार, हंसी-ठिठोली करता बचपन
बचपन बीत गया पलभर में
और सामने आ गया
ज़िम्मेदारी से भरा व्यस्क-काल
पढ़ाई ,लिखाई ,नौकरी , परिवार
रोज की दौड-धुप , नये प्रयोग, नये आयाम
बस कुछ कर दिखाने का ज़ुनून
ये गहरे हरे पत्ते यही तो दर्शाते हैं
जीवन भर के अनुभव सामने ले आते हैं
अचानक, ठहर गयी निगाह
उन बड़े से ,गहरे हरे पत्तों पर
जिनका हरा रंग कुछ कल्साया था
और शीघ्र ही अपने बुढापे की
ओर अग्रसर होते हुए कदमो की
भारी सी थाप सुनाई देने लगी
अब इन पत्तों की शेष बची जिंदगी
में केवल इन्तेज़ार ही तो है
सूख कर झड़ जाने तक !
हाँ, छाया ज़रूर देते ये
आने-जाने वाले पथिकों को
देख इन्हें ही, ले लेता कुछ चैन की साँसे
भागता –दौड़ता , जिंदगी से लड़ता इंसान
जब हुआ अहसास ये, तब !
अपने होने का गर्व, नकारा होते हुए वज़ूद
के अहसास को कहीं गहरे दबा आया
और अपने अनुभव से रंग देने का
मन हुआ एक बार फिर
इन नये, चमकते हुए कोमल, नादान
हरे पत्तों की तरह उमड़ते बाल-पन को....... पूनम माटिया 'पूनम'