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Sunday, May 11, 2014
Thursday, May 8, 2014
ज़िन्दगी एक सफ़रनामा ...........
जब छोटी थी मै जिंदगी एक चुलबुली चिड़िया थी
नन्हे-नन्हे पर, नन्ही नन्ही खुशियाँ थी
कुछ आगे बढता गया समय
ज्यों रेलगाड़ी चलती अपने लक्ष्य की ओर
उतरते -चढ़ते मुसाफिरों के साथ
वैसे ही पाठ जीवन के अपना रंग चढाते रहे
अपने-पराये उसमे अपनी भूमिका निभाते रहे
विद्या ने अविद्या के मिटाए निशाँ
सपनो ने भी सजाया अपना जहां
साथी बदल गए
घनिष्ट मित्रों ने भी रास्ते जुदा किये
इसी का नाम है जिंदगी
जहां होती है नित नयी रवानगी
उतार-चढाव बिन नहीं है मज़ा पहाड़ों का
कभी तो मौसम ग्रीष्म रहा और कभी जाड़ों का
सूरज ने कभी पिघलाया अपने तेज से
चंदा की चांदनी ने भी कभी बिठाया सेज पे
फूलों,तितलियों से रंग -बिरंगी थी कभी ये राह
सियाह और सफ़ेद भी बीते दिन कभी बेपरवाह
उम्र के पढाव पार होते गए
कभी थी अकेले अब मेरे भी अंश बड़े होते गए
थकन बेशक हो सफर-ए-जिंदगानी में
ठाना है न हो कमी जोश-ए-जवानी में
सीखना-सिखाना ,रुकना और फिर चलना
यही तो रीत है और यही पाठ है सिर्फ पढ़ना
अकेले तो जाना है इस संसार से पार
पर कुछ कर जाएँ औरों के लिए
तो भव सागर से नैया हो जायेगी बिन कठिनाई पार
और फिर भी इस जगत से जुड़े रहेंगे तार .......................... .पूनम माटिया 'पूनम'.
नन्हे-नन्हे पर, नन्ही नन्ही खुशियाँ थी
कुछ आगे बढता गया समय
ज्यों रेलगाड़ी चलती अपने लक्ष्य की ओर
उतरते -चढ़ते मुसाफिरों के साथ
वैसे ही पाठ जीवन के अपना रंग चढाते रहे
अपने-पराये उसमे अपनी भूमिका निभाते रहे
विद्या ने अविद्या के मिटाए निशाँ
सपनो ने भी सजाया अपना जहां
साथी बदल गए
घनिष्ट मित्रों ने भी रास्ते जुदा किये
इसी का नाम है जिंदगी
जहां होती है नित नयी रवानगी
उतार-चढाव बिन नहीं है मज़ा पहाड़ों का
कभी तो मौसम ग्रीष्म रहा और कभी जाड़ों का
सूरज ने कभी पिघलाया अपने तेज से
चंदा की चांदनी ने भी कभी बिठाया सेज पे
फूलों,तितलियों से रंग -बिरंगी थी कभी ये राह
सियाह और सफ़ेद भी बीते दिन कभी बेपरवाह
उम्र के पढाव पार होते गए
कभी थी अकेले अब मेरे भी अंश बड़े होते गए
थकन बेशक हो सफर-ए-जिंदगानी में
ठाना है न हो कमी जोश-ए-जवानी में
सीखना-सिखाना ,रुकना और फिर चलना
यही तो रीत है और यही पाठ है सिर्फ पढ़ना
अकेले तो जाना है इस संसार से पार
पर कुछ कर जाएँ औरों के लिए
तो भव सागर से नैया हो जायेगी बिन कठिनाई पार
और फिर भी इस जगत से जुड़े रहेंगे तार ..........................
Thursday, May 1, 2014
Ghazal--------- Geetabh mei prakashit ........
कुछ तिरा दर्द भी सताता है ||
कुछ ज़माना भी कह्र ढाता है ||
इक तसव्वुर तेरा है दुश्मन सा |
जो मुझे रात भर जगाता है ||
तर्क तूने ताल्लुकात किये |
फिर मुझे किसलिए बुलाता है ||
ये बता क्या तू खुश है इसमें ज़रा |
दिल मेरा जो तू यूँ दुखाता है ||
इक ख़ुशबू सी छाने लगती है |
जब तू मेरे करीब आता है ||
दिल तो दुश्मन था मुहब्बत का ,मगर |
वक़्त भी ज़ुल्म बहुत ढाता है ||
मैंने दुनिया लुटा दी तेरे लिए |
और तू मुझको आजमाता है ||
आज 'पूनम' की रात है यानी |
वो ग़ज़ल कोई गुनगुनाता है||.....पूनम माटिया 'पूनम'
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