ग़लती सारी नहीं
दहेज़ मांगने वालों की
कुछ तो ग़लती रही होगी
उनकी भी जो
लाड़-लाड़ में , दिखावे में
लाद देते हैं बिटिया को
ऊपर से नीचे तक सोने में
और यही बातें ख़लल डालती हैं
ग़रीब के चैन की नींद सोने में ।
दहेज़ इच्छा से दें तो खुशियाँ नहीं तो जुड़ जाता है दुखों से रिश्ता पल-पल बन जाता है नासूर हर ज़ख्म रहता है रिस्ता टूट जाती है डोर जो बंधी थी सात फेरों में पड़ जाती हैं बेड़ियां न रुकते हैं आंसू न हिलते हैं लब बस साँसे ही टूट जाती हैं क्योंकि बिटिया रानी न ससुराल, न ही मायके में ज़ुबान खोल पाती है माँ-बाप पीटते हैं छाती जली हुई कटी हुई जब बस लाश ही हाथ आती है|
मैं पूछती हूँ कि क्यों ? सोते रहे जब बिटिया बिन कहे कुछ सिर्फ़ मुस्काती थी खिलखिलाने में भी उसके कराहट बुदबुदाती थी नज़रें कहाँ मिलाती थी? वो तो धरती में ही गढ़ी जाती थीं| क्यों नहीं खोली आँखें तब ? क्यों नहीं सुना मौन जान से प्यारी बिटिया का? ग़लती तब की जब ज़ालिमों के घर बिहा दिया गलतियों का पुतला बन बलिवेदी पर अपनी ही बिटिया को चढ़ा दिया दहेज़ के दानव ने निगल ली एक बिटिया फिर!!!!!!!!!!!!!
पूनम माटिया दिलशाद गार्डन , दिल्ली