“अभी तो सागर शेष है’’-समाज का आइना
काव्य
संग्रह ‘अभी तो सागर शेष है’ की रचनाएं पढ़ने के बाद मुझे लगा वर्तमान समय में साहित्य और काव्य की
रचना को इस तरह से कलमबद्ध किया है जैसे एक टूटी हुई माला को पिरोकर खूबसूरत रंग
दिया हो। इन सब काव्यों से अब युवा वर्ग इतना दूर हो चला है कि उन्हे ये पता ही
नहीं -काव्य से क्रांति भी आ सकती है| आपकी रचना “क्रांति
बिगुल बजाना होगा’’ आज के युवाओं को पढ़ने की जरूरत है ताकि वे समाज के आइने से रू ब रू होकर
अपने आचार-विचार को उच्च कोटि तक ले जा सकें|
आवाज
को अब उठाना होगा,
कानुन
को ललकारना होगा।
घृणित, विक्षिप्त मानसिकताओं को जड़ से ही अब उखाड़ना होगा
घृणित, विक्षिप्त मानसिकताओं को जड़ से ही अब उखाड़ना होगा
त्योहार
से संबंधित रचनाएं बहुत ही व्यवहारिक हैं, आज
के समाज का दर्पण हैं| अब
तो त्योहार अधिकतर केवल सोशल मीडिया पर ही मनाये जाते हैं।
‘होली तब और अब’, ‘आओं ऐसे मनाये होली’, दिपावली और रक्षाबंधन के ऊपर आपकी रचनाएं
मार्मिक हैं, दर्पण हैं आज के जीवन का। ‘पिया संग खेली होली’ खूबसूरती से कलमबद्ध
की हुई रचना है जो कृष्ण-राधा के ब्रज की होली का एहसास कराती है।
‘विश्वास की नींव बेटियाँ’ आपके जीवन से प्रभावित लगती है और
बेटियों के मातृत्व प्रेम को उजागर करती है|
रचना-‘तस्वीर या हकीकत’, ‘मालूम न था’, ‘चाँद से चाँद की बाते करेंगे’ आपकी निर्मलता तथा जीवंत मन को परिलक्षित करती हैं| आपकी भावना समाज तक ही सीमित नहीं अपितु मन भी रोमांचित करती है|
रचना-‘तस्वीर या हकीकत’, ‘मालूम न था’, ‘चाँद से चाँद की बाते करेंगे’ आपकी निर्मलता तथा जीवंत मन को परिलक्षित करती हैं| आपकी भावना समाज तक ही सीमित नहीं अपितु मन भी रोमांचित करती है|
कवितायें-
मुलाकात और आत्मचिंतन, दोनों का भाव बहुत ही सुंदर है, एक में जीवन दिखता है तो दूसरी में ख़ुद
को खोजता इंसान दिखता है।
‘नवजीवन’ में लिखा गया
‘माँ-बाप के आँचल से निकल बेटी रखती
बाहर कदम
पर जब आवे सुरक्षित तब होता है नवजीवन’- पूरी कविता यर्थाथ ब्यान करती हुई इस पंक्ति पर आकर केन्द्रित हो जाती है जो आज के समाज की स्थिति है| इस कविता में हर उम्र के लोगों के भावों को रखा गया है, वृद्ध तो हैं ही|
पर जब आवे सुरक्षित तब होता है नवजीवन’- पूरी कविता यर्थाथ ब्यान करती हुई इस पंक्ति पर आकर केन्द्रित हो जाती है जो आज के समाज की स्थिति है| इस कविता में हर उम्र के लोगों के भावों को रखा गया है, वृद्ध तो हैं ही|
‘मोक्ष को तरसती आत्मा’, बेहद पंसद आने वाली कविता है, हर मानव
ऐसा सोचा करता है|
‘आम
इंसान कहीं खो रहा’, -दुनिया में इंसान अब आगे जाने के क्रम
में ख़ुद को ही भ्रम में डाल रहा है, जिस
कारण वो असली खुशी से वंचित रह रहा है।
‘भ्रूण हत्या-आखिर क्यों?’ - ऐसा शब्द है जिसे समझता कर कोई है लेकिन
पालन करना नहीं चाहता| इस कार्य में महिला ही महिला के अधिकार का शोषण करती है।
‘कोमल
अधपके अंग, एक धड़कता साँस लेता दिल
क्यों कत्ल कर ख़ुद को ताकतवर कहलाती है दुनिया,
भ्रूण हत्या कैसे कर पाती है दुनिया?
क्यों कत्ल कर ख़ुद को ताकतवर कहलाती है दुनिया,
भ्रूण हत्या कैसे कर पाती है दुनिया?
इंसान
की फितरत और महिलाओं की मार्मिक स्थिति का ब्यान करती है।
‘सधवा से विधवा हुई-क्या मेरा कसूर था?
उससे
भी पहले पैदा हुई-क्या मेरा कसूर था?
चाह
सिर्फ एक -‘इंसां हूँ, इंसां तो मानी जाऊँ|’
यह रचना
महिलाओं के भाव उत्कृष्टता से उद्धृत करती है|
ग़ज़ल
के बोल और उसकी गहराई बशीर बद्र साहब की याद दिलाती है| आपकी ग़ज़ल-
‘ कुछ तेरा दर्द भी सताता है कुछ ज़माना
भी कहर ढाता है
इक तसव्वुर तेरा दुश्मन-सा जो मुझे रात भर जगाता है
ग़ज़ल की सर्वश्रेष्ठ पंक्ति है|
इक तसव्वुर तेरा दुश्मन-सा जो मुझे रात भर जगाता है
ग़ज़ल की सर्वश्रेष्ठ पंक्ति है|
ये
पूनम माटिया जी की शुरूआत है-‘अभी तो सागर शेष है’
पुष्कर
कुमार सिन्हा,
उप
प्रबंधक - स्टार हेल्थ इंसोरेंस, भागलपुर
बी.एस.सी.
(भौतिकी)
पता
- राज मनोरम कॉलोनी
सिकन्दरपुर, मिरजानहाट
भागलपुर, बिहार
- 812005
मो0 - 7808771100