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Saturday, August 24, 2019

ग़ज़ल


बह्र कामिल
किसी कर्म का मुझे फल मिला मेरा आज तू जो हबीब है
मेरी
तिश्नगी ,   मेरी बंदगी, जो हयात में  तू नसीब है

हबीब -मित्र, तिश्नगी -प्यास
बंदगी - पूजा-
अर्चना
तेरी  जुस्तजू,  तेरी आरज़ू,  मुझे हर  क़दम    तेरी चाहतें
तू
ही दर्द है,   तू दवा मेरी, तू इलाज है ,   तू तबीब है
तबीब: दवा करने वाला, चिकित्सक

मेरी
सोच में, मेरे ख़्वाब में, मेरी साँस में वो बसा है जो
रफ़ीक़ है, रक़ीब है, वो दूर है,   क़रीब है

रफ़ीक़: मित्र , दोस्त

दिली
ख़्वाहिशें मिटें दूरियाँ, हो सियासतों का अमल यही
जो
कसीह है, जो क़सीफ़ है मिले सब उसे जो ग़रीब है
कसीह: विवश, लाचार
क़सीफ़
: मैला, अपवित्र

ये
शरीर बस  जो मिला मुझे , मेरी रूह का ही लिबास है
ये
जो आज है कभी हो हो ये तो हर जनम में क़शीब है

क़शीब
-पहनने का  नया वस्त्र


पूनम माटिया