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Sunday, May 24, 2020
ख़याल है पन्ने .....ज़हन एक किताब ............: वासंती कवि सम्मेलन- भारत के उत्कर्ष की, आशाओं का द...
ख़याल है पन्ने .....ज़हन एक किताब ............: वासंती कवि सम्मेलन- भारत के उत्कर्ष की, आशाओं का द...: अद्भुत दृश्य रहा अंतस् की षष्ठम् गोष्ठी का जो ....स्कूल के बच्चों के काव्य पाठ से आरम्भ होकर एक शानदार कविसम्मेलन ...
ख़याल है पन्ने .....ज़हन एक किताब ............: अभी तो सागर शेष है ........... पूनम माटिया
ख़याल है पन्ने .....ज़हन एक किताब ............: अभी तो सागर शेष है ........... पूनम माटिया: हृदय अपनी गति से चलता जाता है वक़्त भी किसी के रोके कहाँ रुक पाता है पर, हम रुकते हैं थामते हैं खुद को सोचते हैं, जाँचते-परखते...
वासंती कवि सम्मेलन- भारत के उत्कर्ष की, आशाओं का दौर
अद्भुत दृश्य रहा अंतस् की षष्ठम् गोष्ठी का जो ....स्कूल के बच्चों के काव्य पाठ से आरम्भ होकर एक शानदार कविसम्मेलन में परिवर्तित हो गयी। बच्चों और अभिभावकों के रूप सैकड़ों श्रोताओं ने कवियों के उत्साहवर्धन में जो तालियाँ बजायीं उनके लिये विशाल-विराट कवि मंच भी तरसते हैं।
ज्ञात हो वसंत पंचमी के उपलक्ष्य में अंतस् और ग्रीनफ़ील्ड पब्लिक स्कूल विवेक विहार, दिल्ली के संयुक्त तत्त्वावधान में संस्था की षष्ठम् कवि गोष्ठी में प्रसिद्ध शायर सर्वेश चंदौसवी की अध्यक्षता और ख्यातनाम ग़ज़लकार डॉ आदेश त्यागी के सान्निध्य में सफलतापूर्वक संपन्न हुई ।
अंतस साहित्यिक, सांस्कृतिक ,सामाजिक संस्था है और हर क्षेत्र में नए प्रयोग करने में विश्वास रखती है| ग्रीनफ़ील्ड स्कूल के साथ मिलकर भावी पीढ़ी के कवियों अर्थात विद्यार्थियों के अन्तस् में छिपे कवि को उभारने के लिए उन्हें एक समृद्ध मंच देने का प्रयास किया ताकि साये बच्चें भारत के उज्जवल भविष्य में एक योगदान दें सकें|
स्वागत अध्यक्षा एवं ग्रीनफ़ील्ड स्कूल की प्रधानाचार्या सुश्री नमिता जोशी, मुख्य अतिथि शायरा उर्वशी अग्रवाल एवं प्रसिद्द कार्टूनिस्ट माधव जोशी, शायर सरफ़राज़ अहमद फ़राज़, कवि राम चरण साथी, डॉ वीणा मित्तल विशिष्ट अतिथि रहे । नमिता जोशी ने स्वागत उद्बोधन में विद्यालय के संस्थापक स्व. बसंत जोशी की चौथी पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए संस्था के साथ आयोजित कवि सम्मेलन में आये सभी अतिथि कवियों और श्रोताओं का स्वागत अभिवादन किया| अंतस् के संरक्षक नरेश माटिया ने अंतस् की गतिविधियों के बारे में बताया। मंचस्थ सभी तथा महासचिव दुर्गेश अवस्थी एवं संस्था-अध्यक्ष राष्ट्रीय ख्यातनाम साहित्यकार, कवयित्री पूनम माटिया, समाज सेविका ऋतू भाटिया ने दीप प्रज्ज्वलित कर आयोजन का शुभारंभ किया।
इस अवसर पर ग्रीन फील्ड स्कूल की विवेक विहार और मौजपुर शाखा के बच्चों ने अपनी मधुर आवाज़ में सरस्वती वंदना की तथा चयनित बच्चों ने हिंदी-संस्कृत में काव्य पाठ भी किया। इस भव्य आयोजन में वरिष्ठ कवियों के साथ विद्यार्थियों द्वारा काव्य पाठ ने नए आयाम दिए।
पूनम माटिया के शानदार संचालन में लगभग 4 घंटे चली इस गोष्ठी में सरफ़राज़ अहमद, नईम अहमद, तूलिका सेठ, वंदना कुँअर रायज़ादा, संदीप शजर, कामना मिश्रा, इंद्रजीत सुकुमार, मयंक राजेश, राजीव सिंघल, एहतराम सिद्दीक़ी जाहिल, भूपेंद्र राघव, प्राची कौशल, सुनील सिंध्वान, सुरेश भारती, अंजू अग्रवाल, आज़म सहसवानी, , सुशीला श्रीवास्तव, अपर्णा थपलियाल आदि कवियों ने बहुत सुंदर काव्य पाठ किया।
विभिन्न रसों से सजे काव्य पाठ का विनयशील चतुर्वेदी, नरेश माटिया, डी के गर्ग, सुनीता शर्मा, साक्षी जैन, भवनीत कौर, सलमा के साथ-साथ स्कूल के सैकड़ों बच्चे, अध्यापिकाओं और अभिभावकों ने आनंद लिया।
अंतस् के परामर्शदाता मशहूर ग़ज़लगो आदेश त्यागी और उस्ताद शायर सर्वेश चन्दौसवी द्वारा शानदार गीत-ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए अंत तक विद्यालय का सभागार भरा रहा।
मंचीय अतिथियों को शॉल, पुष्प माला एवं स्मृति चिन्ह तथा उपास्थित सभी कवियों को स्मृति चिन्ह भेंट किया गया।सभी प्रतिभागी विद्यार्थियों को सहभागिता प्रमाण पत्र देकर उनका उत्साहवर्धन किया गया।
स्थापित कवियों के साथ भावी कवियों के काव्य पाठ की इस पहल की सभी ने सराहना की। अंत में पूनम मटिया ने ग्रीनफ़ील्ड स्कूल की प्रधानाचार्या नमिता जोशी और प्रबंधक प्रफुल्ल जोशी , विद्यालय की अध्यापिकाओं , विद्यार्थियों , उनके अभिभावकों , कवि-कवयित्रियों तथा अन्य सभी श्रोताओं का हार्दिक आभार व्यक्त किया|
शुष्क पात सब झड़ रहे, फूट रहे नव बौर
भारत के उत्कर्ष की आशाओं का दौर .......पूनम माटिया /
अंतस्
साहित्यिक, सामाजिक , सांस्कृतिक संस्था
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Friday, May 22, 2020
अभी तो सागर शेष है ........... पूनम माटिया
हृदय अपनी गति से
चलता जाता है
वक़्त भी किसी के रोके
कहाँ रुक पाता है
पर, हम रुकते हैं
थामते हैं खुद को
सोचते हैं, जाँचते-परखते हैं
अपनी ही सोचों की गहराई
अपने ही कार्यों का फैलाव
मापते हैं और जानते हैं
जो किया वो मात्र इक बूँद है
अभी तो सागर शेष है |
यह सोच फिर दौड़ने को
कर देती है प्रेरित
समय कितना है, पता नहीं
जाना कहाँ है, दिशा नहीं
बदहवास से, एक अनजानी राह पे
फिर चल देते हैं क़दम
चुनते हुए अपनी पसंद के फूल
हटाते हुए अपनी ही राहों के शूल
और इसी मादक दौड़ में
जाने–अनजाने, कहीं किसी राह पे
रह जाते हैं हमारे क़दमों के निशां
जो शायद किसी रोज़
किसी को राह दिखायें
किसी अनजान, दिग्भ्रमित को
दिशा नयी दे पायें
बूँद, बूँद सहेजे हुए ये पल
शायद सागर तक ले जायें|
पूनम माटिया
(अभी तो सागर शेष है - काव्य-संग्रह -2015)
Tuesday, May 19, 2020
#corona -- Poonam Matia
कोई कहता है-मनुष्य स्वभाव से ही #आलसी है, कोई कहता है-#बदलाव जल्दी पसंद नहीं आता इसे। इसलिए ही इस #कोरोना #प्रतिबंधन का लाभ उठा रहे हैं हम। पहले घर में टिकते नहीं थे, अब घर से निकलने का मन नहीं करता।
क्या यह आलस है?
क्या यह कोरोना का डर है? या बदलाव से मुँह मोड़ना?
यदि मैं कहूँ तो-
नहीं!
न आलस है, न डर
न ही लचीलेपन की कमी।
यह है-एक नया #एहसास
नया इसलिए कि कभी चखा ही न था हमने इसका स्वाद
यह सन्तुष्टि है #अंतर्मन की,
यह अनचाही भाग-दौड़ से मिला तनिक विश्राम है,
ये जिज्ञासा है स्वयं को जानने की
ये कोशिश है
अपनी लघु इच्छाओं को पहचानने की
माना कि थक जाती हूँ करते-करते घर का काम,
माना कि चाहती हूँ कर लूँ थोड़ा आराम,
कुछ पल ठहर लूँ अपने ही साथ,
कुछ पल तो सुन लूँ अपनो की बात।
ऐसा नहीं कि ललचाता नहीं #आभासी संसार
खींचता रहता है ये चुम्बकीय शक्ति से
वो-जो दिखाई नहीं देती पर रखती है ताकत
मुझसे मुझको चुरा लेने की
फिर उसी व्यर्थ की खींचा-तानी में।
आख़िर तो #माया है फैलाती है जाल
जन्म से मृत्यु तक!
माया ठगती है, स्वप्न दिखाती है,
उड़ाती है अंतहीन आकाश में, और
पल में धरा पर ले आती है।
सोचती हूँ -बाँध लूँ इन सपनों को,
सीमाहीन जगत में सीमित कर लूँ
अपने सपनों का फैलाव
कि अतिक्रमण करता है ये #प्रकृति की स्वच्छन्दता का,
कि बिगाड़ता है #संतुलन।
बस! यही सोच होने लगी है हावी
रोक लेती है अब फिर उसी दौड़ में शामिल होने से।
नहीं! ये आलस नहीं!
इसमें #सन्तुष्टि है, सुख है, किन्तु!
रुकना नहीं बस करना है गति को मंथर
केवल #मंथर, सतत समय के बहाव में रहते हुए ।
पूनम माटिया
क्या यह आलस है?
क्या यह कोरोना का डर है? या बदलाव से मुँह मोड़ना?
यदि मैं कहूँ तो-
नहीं!
न आलस है, न डर
न ही लचीलेपन की कमी।
यह है-एक नया #एहसास
नया इसलिए कि कभी चखा ही न था हमने इसका स्वाद
यह सन्तुष्टि है #अंतर्मन की,
यह अनचाही भाग-दौड़ से मिला तनिक विश्राम है,
ये जिज्ञासा है स्वयं को जानने की
ये कोशिश है
अपनी लघु इच्छाओं को पहचानने की
माना कि थक जाती हूँ करते-करते घर का काम,
माना कि चाहती हूँ कर लूँ थोड़ा आराम,
कुछ पल ठहर लूँ अपने ही साथ,
कुछ पल तो सुन लूँ अपनो की बात।
ऐसा नहीं कि ललचाता नहीं #आभासी संसार
खींचता रहता है ये चुम्बकीय शक्ति से
वो-जो दिखाई नहीं देती पर रखती है ताकत
मुझसे मुझको चुरा लेने की
फिर उसी व्यर्थ की खींचा-तानी में।
आख़िर तो #माया है फैलाती है जाल
जन्म से मृत्यु तक!
माया ठगती है, स्वप्न दिखाती है,
उड़ाती है अंतहीन आकाश में, और
पल में धरा पर ले आती है।
सोचती हूँ -बाँध लूँ इन सपनों को,
सीमाहीन जगत में सीमित कर लूँ
अपने सपनों का फैलाव
कि अतिक्रमण करता है ये #प्रकृति की स्वच्छन्दता का,
कि बिगाड़ता है #संतुलन।
बस! यही सोच होने लगी है हावी
रोक लेती है अब फिर उसी दौड़ में शामिल होने से।
नहीं! ये आलस नहीं!
इसमें #सन्तुष्टि है, सुख है, किन्तु!
रुकना नहीं बस करना है गति को मंथर
केवल #मंथर, सतत समय के बहाव में रहते हुए ।
पूनम माटिया
एक ग़ज़ल पेशे नज़र............. Poonam Matia
*बेटों से हो रखवाली, होगी इक नई तारीख़*
*इनसे हो न शैतानी, होगी इक नई तारीख़*
*खेल ये सियासत का, आदमी जो समझेगा*
*ख़त्म होगी बदहाली, होगी इक नई तारीख़*
*मत उदास बैठो अब, कब तलक़ रहेंगे ग़म*
*रात तो ढलेगी ही, होगी इक नई तारीख़*
*मुन्हसिर है सब उस पर, वो ही है जहां का रब*
*गर रज़ा भी हो उसकी, होगी इक नई तारीख़*
मुन्हसिर- निर्भर
जहां-जगत
*अब हवा भी बदली है, बदली हैं फ़ज़ाएँ भी*
*अब लगे है हमको भी, होगी इक नई तारीख़*
पूनम माटिया
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