आज ये अम्बर पटा है और ज़मीं दुश्मन बनीं
चार सू है तीरगी पर रौशनी अपनी जगह
बेवजह क्यों रोकते हो, निभ नहीं सकती अगर
बंदिशें अपनी जगह हैं, दोस्ती अपनी जगह
भूलना आसां नहीं है, याद पर कैसे करें
अपनी-अपनी है सभी की, ज़िन्दगी अपनी जगह
साथ गर अपनो का हो तो हल मसाइल के मिलें
मुश्किलें अपनी जगह ख़ुशक़िस्मती अपनी जगह
कौन किसके काम आता, रहबरी करता है कौन
ख़ुद बनाता है जहां में आदमी अपनी जगह
धार पैनी वक़्त की है, चल सँभल कर तू ज़रा
खेल माया खेल ले पर बंदगी अपनी जगह
है अमावस भी यहाँ और रात 'पूनम' की यहाँ
चार दिन की ज़िंदगी है, वापसी अपनी जगह