सोच पर जो पड़ी, धुल थी मन्थरा.......
अवसाद में अवसर खोज निकालने वाली अंतस् मार्च 2020 से ही बिना नागा अपनी
साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक गतिविधियों में संलग्न है| फ़रवरी एवं मार्च 2021 में अवसर का लाभ
उठाते हुए दो गोष्ठियाँ ऑफ़ लाइन भी कीं किन्तु समय की गंभीरता को देखते हुए पुनः
ऑनलाइन गोष्ठियों को सिलसिला आरम्भ हुआ और समय-समय पर देश-विदेश के स्थापित व्
नवीन कवि-कवयित्रियों ने प्रतिभागिता कर अंतस की पहचान को विश्व-व्यापी बनाया|
अंतस् संस्था ने अपनी २६ वीं मासिक गोष्ठी का आयोजन कोविड
प्रोटोकॉल के चलते इस माह भी ऑनलाइन ज़ूम एप पर किया|
2021 सितम्बर माह की गोष्ठी में
भारत के विभिन्न राज्यों से कवि-कवयित्रियों शिरकत की| कोलकाता, पश्चिम
बंगाल से ‘रचनाकार’ संस्था की सह-सचिव रचना सरन ने अपनी मधुर वाणी में शारद-वंदन
किया:
आदिशक्ति परब्रह्म विचारिणी/ बुद्धि प्रदायिनी, जड़ता निवारिणी,
विद्या तुमसे, मानवता भी/तम का कर निस्तार, माँ सरस्वती ध्याऊँ
बारंबार
कोटा, राजस्थान से मुख्य अतिथि डॉ रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
ने अपने अनुभव in पंक्तियों के माध्यम से साझा किये:
माँ का प्यार, पिता की सीखें मिलतीं तो कुंदन होते/पाषाणों सा नीवों में, जड़ जाना मन को
भाता है।
यद्यपि मधुमासों का लाड़, मिला होगा मुझको बेशक,/ग्रीष्मकाल की
उष्मा में,मुर्झाना मन को भाता है।
गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ शायर-गीतकार डॉ आदेश
त्यागी की राम-कथा-पात्र सम्पाती के सन्दर्भ में कही गयी पंक्तियों ने सबका मन
मोह लिया:
वृद्ध हूँ अन्यथा
काम आता अवश्य/ कपियो! सीता से तुमको मिलाता अवश्य
बोले सम्पाती, बल होता
तो मैं तुम्हें/ ले के सागर के
उस पार जाता अवश्य
सिद्ध-प्रसिद्द कवि-शायरों की सुसंयोजित उक्तियों से समृद्ध
रोचक सञ्चालन कर रहीं संस्था की अध्यक्ष पूनम माटिया ने भी राम-कथा के
पात्रों को रेखांकित करते हुए कुछ मुक्तक पढ़े, साथ कलेवर बदलते हुए हास्य ग़ज़ल की
फुहार छोड़ी:
राम को जो चुभा, शूल थी मन्थरा/ दुख अवध को मिला, मूल थी मन्थरा
माना अपराध कैकेई से ही हुआ/ सोच पर जो पड़ी,
धूल थी मन्थरा
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चढ़ना था हमको बस पर, पर भीड़ ने धकेला/ टूटी हुई है चप्पल, बस लड़खड़ा रहे हैं
परियों-सी उनकी लड़की, भोंदू-सा अपना लड़का/ सिक्का है अपना खोटा, फिर भी चला रहे हैं
विशिष्ट अतिथि तूलिका सेठ ने तरन्नुम में ग़ज़ल की तान
द्वारा रस-वर्षा की:
फ़ासला था बहुत, वह नहीं आ सका / उसकी
ख़ुशबू लिए आ रही
है हवा
हर बार की तरह कृष्ण बिहारी शर्मा
के गीत ने सबको मंत्र-मुग्ध कर दिया:
ठुमक ठुमक नाचे
कठपुतली/ नाचें दो नन्हे
पैंया रे।
अथक निरंतर नर्तन
चलता/ जैसे सांसों की गुइयाँ रे।....
संचालन का सूत्र
सँभाले/ बैठा दूर निपुण सैंया रे।
ठुमक ठुमक नाचे कठपुतली/ नाचें दो नन्हे
पैंया रे।
देवेंद्र सिंह ने भी राम-कथा को ही
अपने काव्य पाठ का आधार बनाते हुए मुक्तक पढ़े:
मास-दिवस पथ तकते
बीते राम! कहो कब आओगे/ दर्शन
के प्यासे नैनों को, कब तक यूँ
तरसाओगे
डॉ नीलम वर्मा की सामाजिक सरोकार की कविता, कामना मिश्रा
का माँ-शीर्षक गीत, उषा श्रीवास्तव के गीत-ग़ज़ल, रचना सरन, दीपा गुप्ता और
सान्निध्य गुप्ता ने भी सुमधुर काव्य-प्रस्तुति दी|
कवयित्री सरिता
गुप्ता, डॉली अग्रवाल, सुनीता अग्रवाल , आनंद ऋषिकेश इत्यादि सुधि श्रोता साथ
जुड़े रहे तथा ऑनलाइन गोष्ठी डेढ़ घंटे से बढ़ते-बढ़ते 3 घंटे तक रुचिपूर्ण ढंग से चली|
अंत में संस्था की प्रचार सचिव कामना मिश्रा ने संस्था की गतिविधियों
की जानकारी देते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया|