कल की ही तो बात है वैसे,
कोयल कूक रही हो जैसे,
या कोई चिड़िया चहकी हो,
या फिर कोई कली महकी हो|
हँसी खनकती थी कंगन सी,
काया थी निर्मल कंचन सी|
आज हँसी वो नहीं खनकती,
आँखें अब क्यों नहीं चमकतीं,
अविरल सरिताएँ बहती हैं,
अश्रु धार ये क्या कहती हैं|
पल-पल साथ निभाया तेरा,
तू काया, मैं साया तेरा|
हर पल तेरी राह निहारी,
मैं तुझपर ही थी बलिहारि|
लेकिन अब ये क्यों लगता है?
तुझसे मुझको डर लगता है|
ज्वालामुखी कोई फूटेगा,
क़हर कोई मुझपर टूटेगा|
अब बहकर लावा आएगा,
रिश्ते को झुलसा जायेगा|
इस रिश्ते की नर्म ज़मीं पे,
सिर्फ़ फफोले रहेंगे रिसते|
और फफोलों की स्याही से,
एक क़लम कुछ सच्चाई से,
आग लिखेगी, आग लिखेगी,
इक जलता भूभाग लिखेगी|
क्या अब भी वो हवा चलेगी?
प्रेम-सुवासित काव्य लिखेगी?
क्या खुश्बू वापस आएगी?
नज़्मों को फिर महकाएगी?
काश! कि वो दिन वापस आयें,
मेरी कविता वापस लायें|
रिश्ते का गुणगान लिखूँ मैं
प्रेम को फिर उन्वान लिखूँ मैं|
प्रेम को फिर उन्वान लिखूँ मैं|
...................poonam matia
रिश्ते का गुणगान लिखूँ मैं
ReplyDeleteप्रेम को फिर उन्वान लिखूँ मैं|
-जरुर लिखिए
जरुरत है इन पर लिखना
जी विभा, धन्यवाद
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