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Thursday, October 23, 2014

इस वर्ष दीपावली कैसे मनाएंगे ..........




हाहाह! दीपावली का नाम ही खुशियों के दीप आँखों में जला जाता है परन्तु इस दफ़े की तो बात ही कुछ और हैं ....अच्छे दिन जो आ गए हैं ....भीतर की ख़ुशी बाहर हर काम में दिखाई दे रही है  चाहे वो घर-बाहर की सफाई हो या बाज़ार से खरीदारी| देश भर में स्वच्छता-अभियान की ऐसी गूँज है कि मानो बिन दीपक ही सब ओर जगमग हो जायेगी| रोजमर्रा के सामान की कीमतों में बढ़ोतरी की अपेक्षा कुछ कमी ही दिखाई दे रही है तो शायद खरीदारी में भी आनंद दुगना हो जाए हालाँकि अभी दीपावली के लिए जगमग करती लाइट्स , सूखे मेवे ,मिठाइयां, नए कपड़े इत्यादि लाये नहीं हैं और पटाखे तो अब कम ही खरीदते हैं| सुना है चाइनीज़ बम्ब .पटाखे भी शायद् प्रतिबंधित हैं अब.चलो अच्छा ही है कि अपने देश के लोगों को काम अधिक मिलेगा. पटाखे तो सच कहूँ मैं अब चलाती भी नहीं ,प्रदुषण ही इतना अधिक है पहले से ही , उसे और क्यूँ बढ़ाना? पर बच्चे जब तक शगुन न करे आनंद भी नहीं आता तो भई कुछ तो खर्चा हम करेंगे ही पटाखों पे |मेरी बिटिया की शादी के बाद की पहली दीवाली है तो ये बात भी इस दीपावली को और खास बनाती है|
अब एक महत्वपूर्ण बात जो मेरे ज़ेहन में रहती है वो ये कि दीपावली केवल हमारे घर को ही रोशन न करे बल्कि उनका घर भी खुशियों से रोशन करे जो हमारे लिए मिट्टी के दीप बनाते हैं तो मैं तो ज़रूर मोमबत्तियों के साथ मिट्टी के दीपक भी खरीदूंगी क्यूंकि एक तो ये पर्यावरण को नुक्सान नहीं पहुंचाते  दुसरे इनकी झिलमिलाती लौ मुझे दीपावली के आधारभूत सन्देश ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय असतो मा सद्गमय’ की प्रेरणा देती है ...तो आओ



मंगल गाले , दीपों की अवली सजाले
आवो मंदिर में माँ लक्ष्मी को बिठालें..  पूनम माटिया ‘पूनम’ poonam.matia@gmail.com

Saturday, October 18, 2014

Deep sleep..........Hallmark of Ultimate joy

All have said that Death is horrible
Yet the 'Moksha' is considered divine.
How can the way to Divinity to be horrid?
Rarely we relish deep sleep !!!!!!!!!!!!
Mostly we all are hunting day and night.
Why ? The question remained unanswered.
For long the brain waves kept echoing
After reaching the dead end of a long tunnel
Yet, never Man has left his search
Neither have I stopped the race .
The Thoughts always leave me behind
Kept me running to match up the pace.
Tit bits of happiness do fall in the lap
Yet the greed is to snatch it all.
Sight of a new born brings tinkle in the eyes,
Crawling baby standing suddenly brightens the smile.
Yes, the life offers joy in bits and pieces. 
Arms of beloved do give oceans of warmth,
Feeding the young fills our belly ,too.
A hand raised in blessing draws away sky of fear
Yet, the search is always on to find the Ultimate
The question still persists, is death so horrid?
So much so to race against time and be avoided.
Does the joy of Uniting with the Invisible
Can only be relished on leaving the bodily envelope?
Can't the fruits of His eternal love
Be tasted in this so called 'Cursed' flesh and blood?
Roaming in the jungle of thoughts and their embodiment
Suddenly by heavenly grace came upon a light
Enlightening the panting soul, caressed like mother
Soul in flesh and blood do rest for a while
Do unite momentarily with the Creator
Lo! man, woman, be any age ,sex or creed
All bestowed with HIS aura of divine seize.
In the lone moments when Man is asleep
Sleeping with his worries at a bay ,
With worldly relations far beyond his reach
Death in a beautiful package of Life
Do come when we're deep asleep.
None of the desires 'Dharm, Arth ,Kaam ,Moksha'
Bind the body and mind, 
The fruits of ultimate happiness do quench
The thirsty souls with Nectar so divine.
The realization aptly removes the fear of Death.
If a dose,so tiny relinquishes the soul,
How can be the arms of DeathBe lesser than the arms of loving mother?......... Poonam matia'poonam' 

Tuesday, October 14, 2014

परवाज़ .........


सभी रंग जहाँ के 
इक तितली में 
सिमट आये हैं 
मानो मेरे अरमानो के 
पंख निकल आये हैं|

हथेली खोलकर
उड़ा दिए नभ में
दिल में रखकर
भी क्या होता?

क्यूँ न ये
परवाज़ पा जाएँ?
क्यूँ न ये
अम्बर नाप आयें ?

क्यूँ भीतर ही भीतर
दबा के इनको
दफ्न कर दें
अपनी हर चाह को ?

ज़मी पे रहें
आज पाँव, बेशक
जंजीर ज़माना
पहनाये , बेशक

न कोई बंदिश
न पहरा कोई
खुला हो गगन
न सैयाद कोई

उड़ के क्षितिज को
क्यूँ न आज छू लें?
बंद मुठ्ठियों से निकलके
शायद ये ‘तितली’
आफ़ताब छू ले !!! ......



पूनम माटिया'पूनम'

Wednesday, October 8, 2014

ख्यालों की चिड़िया........




ये ख्यालों की चिड़िया भी बड़ी चुलबुली 
कभी यहाँ, कभी वहां उड़, बैठ जाती 
एक पल जीवन-तरु के आदि में ले जाती , 
दूजे पल अज्ञात-ओ-अनिश्चित भविष्य
का पुरज़ोर हिलोरा दे अशांत कर जाती|
परों में उत्साह की उड़ान भर कभी
ये नन्ही रंग-रंगीली रुनझुन चिड़िया
माँ का सुखद, सलोना, धवल चांदनी सा
स्वरुप अंखियों में तारों-सा चमका जाती|
सुबह, सवेरे मन्दिर की घंटी, आरती के स्वर
बर्तनों की टनटन और चूल्हे पे सब्ज़ी की महक
अलसाई आँखों में ठन्डे पानी के छींटे,
वो पंखे की तेज़ गति में अकस्मात कमी,
मन ही मन कुडकुड और फिर दूर तलक
सड़के माप, भारी सी बक्सा उठाये अकेला सफ़र
कभी भूत से वर्तमान में संग अपने ले आती|
और, अचानक फिर फुद्फुदाकर श्यामल सी चिड़िया,
ऐनक से सधी आँखों, किताबों के मध्य
अपनी रसोई, अपने ही पलंग पर शुष्क पत्तियों-सी
शाख से जुडी रहने का वृथा-सा प्रयास करती
ख़ुद मुझे ही माँ की जगह खड़ा कर जाती|
भीतर तक कुलबुला , इस चिड़िया पे क्रोधित हो
बरबस ही नयनो में सावन भर पागल बदरा-सी
इसके परों को भिगो निस्तेज करने को आतुर ही होती
कि फ़िर जा बैठी ये चंचल, चपला-सी
दुरंगी ऊन के गोले के बीच फंसी सलाइयों में|
नन्हे हाथों को थामे माँ के सधे-ओ-संतुलित हाथ
एक, एक फंदे को धीमे-धीमे अपने ही
स्वेटर में तब्दील कर मानो
चाँद से ब्याह रचाया हो अपनी गुड़िया का,
घर-बाहर सब दो फर्लांग में नाप
दादू से मनवाई गयीं किले सी फ़रमाइशें
ये चमकीले अहसासात की चिड़िया
फ़िर प्यारी सी लगने लगती |
प्यार से सहलाने को हाथ बढ़ाने को होती ,
अंगुलियाँ भी खुलने को होती तैयार, दुष्ट फ़िर
आ बैठी दर्द से चटकते घुटनों पे,
चीं-चीं कर शहर-भर में नगाड़ा पीट आती
बढ़ती उम्र की एक एक आहट का|
शोर से घबरा कानों तक पहुँच जाते हाथ|
नन्ही सी जान उसे, बक्श देती उसकी जान
पर कहाँ थी मानने वाली वो शैतान
फ़ुदक-फ़ुदक कर जा बैठती कढ़ाई में गोल-गोल
पूरियां तलती माँ की सूती साड़ी के सुंदर पल्लू में|
चुलबुली ख़्यालों की ये चिड़िया दिखती ज़रूर नन्ही सी
पर रखती अपने परों में ग़ज़ब की जान
जानती-पहचानती घर-आँगन अपना
और जानती-पहचानती उतार-चढ़ाव मेरी ज़िन्दगी के|
ये ख्यालों की चिड़िया भी बड़ी चुलबुली
कभी यहाँ, कभी वहां उड़, बैठ जाती
एक पल जीवन-तरु के आदि में ले जाती ,
दूजे पल अज्ञात-ओ-अनिश्चित भविष्य
का पुरज़ोर हिलोरा दे अशांत कर जाती|
कभी बच्ची बन खेलती, दौड़ाती, खिजाती मुझे, और कभी
मेरी ही माँ बन जीवन के पाठ पढ़ा, सुखद नींद दे जाती|
ख्यालों की चुलबुली चिड़िया सहेजे हैं सभी यादें मेरी
रखे है परों में अपने सुख-दुःख की कॉपी मेरी| .......poonam matia'poonam'

Sunday, October 5, 2014

एक साक्षात्कार डॉ बेचैन के साथ .... पढियेगा .मेरे प्रश्न और उनके उत्तर

अक्टूबर का ट्रू मीडिया पत्रिका का अंक राष्ट्रीय कवि ,गीतकार ,ग़ज़लकार हमारे सबके पसंदीदा डाक्टर कुंअर बेचैन जी के व्यक्तित्व व् कृतित्व पर केन्द्रित है ... और मुझे पूरी उम्मीद है जिस प्रकार पिछले कुछ अंक ...... जो सुरेश नीरव जी ...पंडित दामोदर दास चतुर्वेदी जी ... पी पी श्रीवास्तव 'रिंद ' जी पर केन्द्रित थे और उन्हें आपका भरपूर स्नेह और समर्थन मिला ..उसी तरह यह अंक भी घर घर में सहेजने योग्य होगा ......... और इस ओर एक कदम उठाया मैंने जब मैं नरेश के साथ उनके घर साक्षात्कार के लिए पहुची ....... बेचैन जी के विनम्र स्वभाव से सब ही परिचित हैं ........  और मित्र दुर्गेश अवस्थी भी आ गए बुलाने पर ....तो चार घंटे वहां कैसे बीते पता ही नहीं चला ...और उनकी सहधर्मिणी आदरणीय संतोष कुंअर जी की उपस्तिथि में बहुत कुछ जाना .समझा और सहेजा ...... कुंअर बेचैन जी के जीवन .... पठन.पाठन ...लेखन ......वाच्य ...सम्मान और भी बहुत कुछ ......

Much Awaited October Issue of True media 

दोस्तों ....नमस्कार ..... कैसे हैं आप सब ?.....कैसे चल रहा है यह उत्सव महीना ....... एक खुशखबर ...अक्टूबर का '' डॉ बेचैन पे आधारित ट्रू मीडिया विशेषांक' अब उपलब्ध है ......बहुत कुछ रोचक और सार्थक सामग्री के साथ ..... एक साक्षात्कार डॉ बेचैन के साथ .... पढियेगा .मेरे प्रश्न और उनके उत्तर .....और बहुत सारी पिक्स............. e link ...
http://issuu.com/omprakash9/docs/true_media










Friday, October 3, 2014

पूनम लगाये गुहार

दोस्तों ...... वैसे तो साफ़-सफ़ाई कोई एक दिन या कुछ घंटो की बात नहीं ..फिर भी जिस स्तिथि में हमारा भारत आज है .........उसमे एक ऊर्जित अभियान की आवश्यकता है ........ ताकि भारत में हर गली-कूंचे में स्वच्छ वातावरण मिले ....
खुद मेरा अनुभव है .......मेरे छोटे भाई का परिवार विदेश में रहता है .....और ....कई अलग -अलग कारणों के साथ वापस न आने का एक कारन यह भी है कि यहाँ ..जहाँ -तहां गंदगी दिखती है ...... खैर ..........कल से शुरू हो रहे '' स्वच्छता अभियान ' के तहत एक छोटा सा योगदान ...
..

और दोस्तों मैं कुछ बातों की ओर विशेष ध्यान दिलाना चाहती हूँ

कचरे का सही निराकरण ..........ही सफाई की ओर पहला कदम है .यहाँ- तहां कूड़ा फेंकना ............ और सफाई अपनी ज़िम्मेदारी न समझना हमारी (भारतीयों की ) सबसे बड़ी कमजोरी है ........ऐसा नहीं कि हमे सफाई रखना आता नहीं ........ जब भी कोई विदेश जाता है .सुधर जाता है ........ क्यूंकि वहां के माहोल में ही उसे रहना पड़ता है नहीं तो ऊंचा फाइन देना पड़े ..........पर हमारी परेशानी यह है कि अपने देश में ..लोकतंत्र का सही मतलब नहीं समझते ..बल्कि उसे मिसयूज़ करते हैं .........
इसके अलावा ........ अधिकतर लोगों की (खासकर गरीबों की ) मजबूरी है कि उन्हें अभी तक आधारभूत सुविधाएं नहीं मिली आज़ादी के इतने बरस बाद भी उनके घर नहीं हैं .......और घर हैं भी .तो उनमे टॉयलेट्स /शौचालय नहीं हैं ...इसलिए सड़कें /नदी /नालें /रेलवे ट्रेक उनके लिए ऐसे हैं जैसे कूड़ाघर और शौचालय .......
वे कपडे भी नदियों के किनारे या फिर सड़क पे जो म्युनिसिपलिटी की नल /हैंडपंप होते हैं .वहां नहाते -धोते हैं ........
कूड़ा अधिकतर पौलिथिन में फेंका जाता है .......या फिर खाली ढक्कन /बोतल और प्लास्टिक की पन्नियाँ खुले में फेंकी जाती हैं जो घर बाहर की नालियों को ब्लाक करती हैं यानि अवरोध बनती हैं .........इसका एक महत्वपूर्ण कारन है कि आजकल जितना भी सामान चाहे वो बिस्किट ,वेफर्स ,टॉफ़ी .,चॉकलेट , केक पेस्ट्री ,चाट -पकोड़ी .....सभी प्लास्टिक कोटेड होता है ........ जितना भी टेक-अवे फ़ूड यानि बाज़ार से पैक कराके लाया गया खाना .......पत्तल ,थेर्मोकोल की प्लेट्स .....सब्ज़ी .....फल .,कपडे जूते ........क्या नहीं है जो पौलिथिन या प्लास्टिक की फिल्म वाली पैकिंग में नहीं मिलता ..... (एक फैशन सा बन गया है लेमिनेटेड क्राकरी और पैकेजिंग का इस्तेमाल )....... और यहाँ -वहां खाना और कचरे का जहां -तहां फेंक देना ............ ..........बहुत कुछ है जो सुधार मांगता है ......फिर भी थोड़े से शुरुवात करना बुरा नहीं है ...हमारे वैज्ञानिक भी इस पैकिंग मटेरियल के लिए कोई विकल्प सोचे जो जैविक हो..... सही कदम -सही दिशा में उठायें तो मज़िलें मिल ही जाती हैं ...बेशक से समय लगे .......... और समय लगेगा ही ..क्यूंकि समय लगा है स्तिथियों के इतना बिगड़ने में ..
........
बच्चो पूनम लगाये गुहार
कूड़ा डालें ‘बिन’ में हरबार
खाएं चोकलेट, वेफ़र जितनी बार
आइसक्रीम से भी कर लें प्यार
पर छिलके, रैपर, ढक्कन खाली
सड़क पे फैकना, है गलत व्यवहार
बच्चो पूनम लगाये गुहार ..
कचरा न फेंकें सड़क पे यार
क्यों करते हम धरा पे वार
सफाई करना इक पवित्र काम
रख सफ़ाई, करें वतन से प्यार
बच्चो पूनम लगाये गुहार ...
नदी-नाली में कचरा भरमार
बढ़ते पानी से आएगा ज्वार
डूबेंगे पशु, घर खेत, खलिहान
महामारी मचाएगी हाहाकार
बच्चो पूनम लगाये गुहार ..
अकेले नहीं हम, पूर्ण संसार
फेंकने वालो की लगी भरमार
अजैविक कचरे का लगा अंबार
जिसका नहीं कोई पारावार
बच्चो पूनम लगाये गुहार ..
जन-जन में करें प्रचार
रखना है स्वच्छ घर-संसार
हर कोई ले अपने संज्ञान
नयी पीढ़ियों को दें उपहार
बच्चो पूनम लगाये गुहार
कूड़ा डालें ‘बिन’ में हरबार
पूनम माटिया ‘पूनम’
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