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Wednesday, July 9, 2014

Wednesday, July 2, 2014

संतुष्टि का धन...... एक कहानी .....बच्चों के लिए ,,,,,,बड़े भी पढ़ें :)




यश अपने दादू का कुर्ता खींच-खींच कर कह रहा था ‘दादू कहानी सुनाओ न | अब तो मेरी गर्मी की 

छुट्टियां भी शरू हो गयी हैं|’ दादा जी पलंग पर लेटते हुए ‘अरे बेटे ! छुट्टियां हैं तो जल्दी सो जाओ 
,सुबह सैर के लिए चलना मेरे संग, हाहाहा|’

यश कहाँ मानने वाला था , उसके पास न प्रश्नों की कमी थी, न दादू से कहानी सुनने के कारणों की |झट 
से बोला ‘’नहीं दादू ,आज तो आपसे कहानी सुनकर ही सोऊंगा ,न पापा सुनाते हैं न मम्मी के पास समय 
होता है मेरे लिए ,बस जॉब से आकर काम में व्यस्त हो जाती हैं फिर कहती हैं ‘मैं थक गयी ,अब सोउंगी’ 
|’’

अब दादा जी बेचारे क्या करते ,यश की जिद्द के आगे झट से घुटने टेक दिए और उसके बालों में उंगलियाँ 
फेरते हुए कहने लगे  नंदन वन में एक वृक्ष था दुबला-पतला सा, लेकिन बेहद सुंदर| सुंदर, सुडौल होने के 
बावज़ूद भी उसे ईर्ष्या होती थी एक बड़े से घने दरख्त से|’

यश बोला, ‘दादू दरख़्त क्या होता है?’

‘बेटे दरख़्त यानि पेड़ , वह पतला वृक्ष सोचता था कि काश में भी वैसा हो जाऊं | उसकी ‘विश’ पता नही 
कैसे पूरी हो गयी, शायद कोई एंजेल या परी उसकी बात छिप के सुन रही थी | रात ही रात में वह हरे-हरे 
कोमल पत्तो से भर गया| ख़ुशी से वह झूमने लगा| उसे देख अनेक पशु-पक्षी उसके पास आये , परन्तु ये 
क्या ! जानवर अपनी भूख मिटाने के चक्कर में उसके सारे पत्ते खा गए |’
‘फिर क्या हुआ दादू ?’ यश की आँखों से नींद बिलकुल गायब थी |
दादा जी अपनी लय में आगे सुनाते गए |
‘‘वृक्ष उदास हो गया, सोचने लगा, ‘इससे तो अच्छा होता मेरे पत्ते पतले व् नुकीले हो  जाते’| उसकी यह इच्छा भी पूरी हुई और जब वह सो कर सुबह उठा तो देखा कि वैसा ही हुआ है जैसा उसने चाहा था| कांटेदार, नुकीले पत्ते गाँव वाले काट कर ले गए अपने घरों की बाड़ बनाने के लिए|
अब वृक्ष के मन में ख्याल आया ‘काश! मेरे पत्ते सोने से हो जाये और मैं सबसे खूबसूरत लगूं’ और देखते ही देखते वह सोने से लद गया परन्तु उसकी ख़ुशी उसी पल जाती रही जब उसने देखा कि गरीब
, अमीर सभी उसके पत्ते तोड़कर ले जा रहे हैं, और ले जाते भी क्यूँ न आखिर सोना पेड़ पर किस काम का|’’
यश की आँखों में नींद के कोई आसार नहीं थे और दादा जी भी उतेजित हो उसकी उत्सुकता को और बढ़ा रहे थे|
‘’पेड़ ने सोचा ‘सोने का होने से तो अच्छा है बर्फ़ का बन जाऊं|’ यह सोचते-सोचते वह सो गया | तडके उठकर क्या देखता है कि उसकी सभी पत्तियां दूध सी सफ़ेद बर्फ़ की बन गयी थी | पर अभी वह ठीक से भगवान को धन्यवाद कह भी नहीं पाया था कि सूर्य की तेज किरण उसे चुभने लगी |’’
‘फिर क्या हुआ दादा जी’ यश उठकर बैठ गया |
दादा जी उदास हो के बोले ‘होना क्या थे बेटे, सभी पत्तियां एक-एक करके पिघलने लगी |वृक्ष फिर वहीँ का वहीँ खाली, बेबस, उजाड़| सोचने लगा कि इससे तो बेहतर था कि वह जैसा था वैसा ही रहता|’ 
यश बोला ‘हाँ ,दादू पेड़ तो पहले ही सुंदर था पर उसकी इच्छाएं ही ख़त्म नहीं हो रही थी |’
दादा जी बोले , हाँ मेरे समझदार बच्चे, देर से ही सही पेड़ ने संतुष्टि पायी.

शिक्षा : मनुष्य की तो जन्म से लेकर मरने तक पिपासा यानि प्यास यानी इच्छाएं शांत ही नहीं होती| अनंत, अविरल, सदैव उसका ध्यान अधिक से अधिक पाने में लगा रहता है, आखिर मानुष जो ठहरा किन्तु उसे प्रकृति से सीखना चाहिए|
............................poonam matia