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Monday, July 22, 2013

पिसती जनता पीसे नेता बढती रहे नेता की शान.................





देश कहा जाता है महान 
चाहे हो जनता लहूलुहान 

नेता कुर्सी नाही छोड़े 
चाहे जनता खींचे कान 

महंगाई सर चढ़ के बोले
नेता बैठे तब भी सीना तान

घोटालों की चली है रेल
'कर' की मार पड़ी है आन

झगड़े ,हमला, आतंक भारी
क़ानूनी दांव पेंच रहे छाता तान

पिसती जनता पीसे नेता
बढती रहे नेता की शान

हिन्दू -मुस्लिम न जाने भेद
फिर भी बटता रहे हिन्दुस्तान ..........................................पूनम माटिया 
गुरु कहीं भी ,कोई भी हो सकता है जिससे हम कुछ सीखते हैं या ज्ञान प्राप्त करते हैं ..........वह एक बालक भी हो सकता है .......एक वृद्ध भी .......एक वृक्ष भी हो सकता है .....और एक पत्थर भी ............शिव भी ........और शैव भी ....... विष्णु भी .........और वैष्णव भी .......माता भी ..........और पिता भी .......अध्यापक भी .........और एक शिष्य भी ......एक जड़ पर्वत भी .....और यायावर राहगीर भी ....अर्थार्त .....जो ज्ञान की वृष्टि /वर्षा करे .वही गुरु है ..........और उसके प्रति हमें अपने मन में श्रद्धा ,आदर और कृतज्ञता के भावधारण करने चाहियें ........तभी ज्ञान-उपार्जन की सफ़लता है ........गुरुवे: नमः ........बधाई सभी को गुरु पूनो की ..और मेरा हार्दिक आभार उन सभी को जिनसे मैंने आज तक कुछ भी सीखा ................
Guru kahin bhi koi bhi ho sakta hai Jisse ham kuchh seekhte hain ya gyaan prapt karte hain .........vo ek baalak bhi ho sakta hai .......aur ek vriddh bhi ............ek vriksh bhi ho sakta hai ......... aur ek patthar bhi ....... Shiv bhi ..........aur shaiv bhi ....... Vishnu bhi ...........vaishnav bhi ........ mata bhi aur .......pita bhi ....... adhyapak bhi .....aur Shi


shya bhi.......... ek jad parvat bhi ........aur ek chalta raahgeer bhi .................. artharth .......... jo gyaan kii vrishti kare ....Vahi Guru hai .... uske prati shradhha ,aadar aur kritagyata ke bhaav man mei dharan karne chahiyen ......tabhi gyaan -uparjan kii safalta hai ............. Guruve Nam:........ badhaai sabhi ko Guru pUno ki ......aur Mera hardik abhaar un sabhi ko Jinse maine aaj tak Kuchh bhi seekha hai ................. Poonam matia

अनाथ बुढापा ..............

बूढ़े मां-बाप को अकेला छोड़ देना एक ज्वलंत समस्या है। पाश्चात्य देशों की नक़ल और सामाजिक मूल्यों की कमी हमें स्वार्थी बनाती जा रही है। हर कोई आगे की ओर ही देखना चाहता है। अपने बच्चों के प्रति तो अपना कर्तव्य सभी समझते हैं, पर मां-बाप, जिन्होंने जन्म दिया, उन्हें ना जाने क्यों अचानक बोझसमझने लगते हैं।

ऐसा लगता है कि जैसे भूतकाल को देखना हमें पसंद नहीं क्योंकि जो गुजर गया, वो गुजर गया। अब सभी ‘उगते सूरज को सलाम’ वाली कहावत जिंदगी में भी अपनाने करने की कोशिश कर रहे हैं। इसलिए जो बुढ़ा हो गया, जो अब आर्थिक रूप से घर-परिवार में कोई योगदान नहीं दे सकते, उन्हें दूर कर दिया और जो आगे आर्थिक रूप से सहयोग देने वाले हैं, उन्हें सर आंखों पर बिठा लिया। ठीक वैसे ही, जैसे बलि से पहले बकरे को फूल-माला पहनाई जाती है। लेकिन, माला पहनाते वक्त यह भूल जाते हैं कि जब बच्चे आर्थिक रूप में सहयोग देने लायक होंगे, तब तक खुद वो आर्थिक रूप से बेकार हो चुके होंगे और उनके बच्चे उनके साथ ठीक वही करेंगे, जो वो देख रहे हैं। आखिर बच्चे घर से ही सब सीखते हैं और मां-बाप उसके सबसे पहले शिक्षक होते हैं, इसलिए उनकी बात वो कभी हल्‍के में नहीं लेते, जबतक खुद उसकी सोचने-समझने की शक्ति नहीं आ जाती।

हम इस समस्या को कुछ इस तरह से समझ सकते हैं कि जिस प्रकार कामकाजी माता-पिता बच्चों को क्रेच में बेखटके छोड़ने लगे हैं, उसी प्रकार बेटा-बहू बूढ़े मां-बाप को अकेले या ओल्ड एज होम या वृदाश्रम में छोड़ने में कुछ बुराई नहीं मानते, जबकि बुढ़ापा उम्र का वो पड़ाव हैं, जहां परिवार के सहारे और साथ की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। अकेले रहने वाले बड़ी उम्र के लोगों की सुरक्षा खतरे में होती है। शहरों में उनकी बढती हत्याएं इसका जीता-जागता उदहारण है। हम सभी को इन विषयों पर विचार कर सही दिशा में बढ़ना चाहिए।

हम यह क्यों भूल जाते हैं कि जैसे बच्चों को जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए बडों के सहारे की जरूरत होती हैं। इसमें जितने ज्यादा लोग और हर उम्र के लोग बच्चों को सिखाते हैं, बच्चे उतने ही ज्यादा दुनिया को समझने लगते हैं और दुनिया की समस्याओं का सामना करने में उतने ही ज्यादा सक्षम बनते हैं। उसी तरह परिवार के बूढ़े लोगों को भी बच्चों और युवाओं के साथ की जरूरत होती है। वैसे भी यह तो सिर्फ एक मानसिक अवस्था है, इससे शरीर का क्या लेना-देना? वास्तव में है क्या बुढ़ापा? जब कोई शरीर और मन दोनों से थक जाए और उसके बाद उसे लगे कि वो दुबारा वही ताजगी नहीं पा सकता... न मानसिक स्तर पर न ही शारीरिक स्तर पर... तो वो अवस्था ही बुढ़ापा है। अगर इसमें देखे, तो शारीरिक स्थिति तो समय के साथ-साथ बदलती रहती है और गिरती रहती है, थकावट बढ़ती रहती है, पर मानसिक स्तर को हमेशा थकावट से दूर रखा जा सकता है, बस अगर शारीरिक स्थिति उसे मजबूर न करे। मेरा मतलब बीमारी आदि से है। तो, फिर जब शरीर ही थक सकता है, तो बुढ़ापा कैसा! इसलिए, मानसिक स्तर पर आप हमेशा तरो-ताज़ा रह सकते हैं।

बस जरूरत है... आप अपने मस्तिष्क को कुछ नया करते रहने दें... जो उसे अच्छा लगता है, वो करने दे... हो सकता है कि चुस्ती-फुर्ती में उम्र की वजह से थोड़ी कमी आती जाए, पर बिना झिझक, बिना हिचक और बिना किसी शर्म के कि आप कितने बड़े है... कुछ नया करने का जज्बा या जो पसंद है, वो करने का जज्बा, जैसे- पतंग उड़ाना, गप्पे मारना या शैतानी करना आदि-जारी रखें। हम सभी को यह समझना होगा कि यह तभी संभव है, जब बड़े-बूढ़े परिवार के बीच रहे और अकेला ना महसूस करें........पूनम माटिया 
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Tuesday, July 9, 2013

ताकतवर हो नींव..........



बूँद बूँद सागर भरे
तिनका तिनका नीड़ 
पाथर में पाथर जुड़े 
ताकतवर हो नींव

कलिकाल विकराल हो
उसका रूप अधीर 
बढ़ते जाएँ दुष्कर्म जो
सुरसरी कैसे थामे नीर

उसकी शक्ति अपार है 
जाने हर कोई जीव 
रक्षा करे हर काल में 
गर पुण्य जायें जीत 

जड़ चेतन सब में बसे 
है अंश उसी का जीव 
फ़तेह करने निकल पड़ा 
फिर भी उठा शमशीर

बढ़ते बढ़ते बढ़ गयी 
हुआ प्यास से अधीर 
भरे पेट भी आसानी से 
दूजे की रोटी लेता छीन

बस इतना ही चाहिए 
चलता चले रणवीर 
किन्तु संरक्षण प्रकृति का 
रखता चले उर बीच

जितनी भी रचना करे 
नभ धरती समंदर बीच 
शोभित करे वक्ष स्थल 

न घाव करे गंभीर.................... पूनम माटिया