देश कहा जाता है महान
चाहे हो जनता लहूलुहान
नेता कुर्सी नाही छोड़े
चाहे जनता खींचे कान
महंगाई सर चढ़ के बोले
नेता बैठे तब भी सीना तान
घोटालों की चली है रेल
'कर' की मार पड़ी है आन
झगड़े ,हमला, आतंक भारी
क़ानूनी दांव पेंच रहे छाता तान
पिसती जनता पीसे नेता
बढती रहे नेता की शान
हिन्दू -मुस्लिम न जाने भेद
फिर भी बटता रहे हिन्दुस्तान ..........................................पूनम माटिया
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