बाहर भी बारिश है भीतर नमी सी है
शायद तुम्हारी ही कुछ-कुछ कमी सी है
यादों का सैलाब क्यों फिर से उमड़ा है
ख़ाबों का इक बाग़ क्यों फिर से उजड़ा है
मुमकिन नहीं नींद आँखों को छू जाए
ख़ाबीदा नग़मों में तू मुझको गा पाए
शायद ये तेरी ही आँखों का पानी है
बारिश की बूँदों में तेरी कहानी है
क़िस्सा ये सुनने को दुनिया थमी सी है
बाहर भी बारिश है भीतर नमी सी है
यादों का सैलाब क्यों फिर से उमड़ा है
ख़ाबों का इक बाग़ क्यों फिर से उजड़ा है
मुमकिन नहीं नींद आँखों को छू जाए
ख़ाबीदा नग़मों में तू मुझको गा पाए
शायद ये तेरी ही आँखों का पानी है
बारिश की बूँदों में तेरी कहानी है
क़िस्सा ये सुनने को दुनिया थमी सी है
बाहर भी बारिश है भीतर नमी सी है
...........................................पूनम
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