चक्रधर से कहाँ छिपे हैं आज के असहनीय दृष्टांत
वो भी होगा परेशां, होगा उसका भी चित अशांत
कोटि-कोटि प्रार्थनाएं पहुँचती होंगी उस तक
कब तक इन सूचनाओं पर न देगा वो ध्यान
उठती होंगी लहरें, मचलते होंगे असंख्य तूफ़ान
कब तक साहिल की सीमाये सकेंगी उसे बांध
दिया था उसने भगवत-गीता में सन्देश
आऊँगा मै जब भी बढेंगे कलियुगी क्लेश
आएगा एक दिन ‘वह’ रूप इंसा का धार कर
लेगा अवतार, दुष्टों का करेगा नाश संघार कर
अपने नाम का न होने देगा वह अपमान यूँ
सृष्टि रची है उसी ने, न हो ए-इंसा परेशान तू
ढोंगी साधू बेशक रहें जपते माला के मनके
जमाते रहे भीड़,सजाते रहे मस्तक पर तमके
आएगा, जब तो घंटियों की मधुर ताल होगी
गुंजित आसमा और धरा एक पुष्प-माल होगी
देर हो जाये भले न अंधेर होगी, ये विश्वास है मेरा
चक्र की धार न 'कल' कम थी न 'कल' कम होगी ........poonam
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