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Saturday, December 29, 2012

प्रतिदिन के सब काम हो रहे हैं यथावत.....
परन्तु दिल है व्यथित ..
''दामिनी ''
ने विदेश में अपनों से बहुत दूर इस निर्दयी दुनिया को त्याग दिया है ....
एक पाली -पनोसी........ तेईस साल ...... डाक्टर बेटी........को खोना क्या और कैसा होता है .हर माँ 
बाप समझ सकता है ......
परन्तु देश के
'सदर' को अब अनुशासन की चिंता है
.कानून का इस्तेमाल कर दिल्ली में पोलिस की नाकाबंदी की गयी है ...
ये व्यवस्था
आम इंसान की सुरक्षा के लिए तब क्यूँ नहीं की जाती ....जब उसका दिल शंकित और असंतुष्ट रहता है 

जब तक के बच्चे (खासकर बेटियाँ) स्कूल /कॉलेज /नौकरी से सुरक्षित वापस न आ जाये .......
क्यूँ बलिदान देना पडा उस बच्ची को देश को जगाने को ..
क्यूँ ये जाग्रति हर बार बलिदान मांगती है ......
प्रश्न चिन्ह लगाती है ये 
भारतीय सभ्यता और परम्पराओं की दुहाई देने वाले 
सियासत दारों के पाषाण रवैये पर ..................
शब्द भी चीत्कार करते हैं 
जब उस मासूम का चेहरा ज़हन में लाने की कोशिश की जाती है 
जैसे कह रही हो अब भी ''मै जीना चाहती थी ''...........................पूनम 

Thursday, December 20, 2012

एक आवाज़ उठेगी तो सौ संग में जुड़ जाएँगी.........


देश की राजधानी में एक लड़की की अस्मत दागदार ,तार तार हुई है .......ऐसे में कोई कैसे हंस सकता है ........सभी को अपनी शक्ति के अनुसार इस घटना का विरोध करना चाहिए और खासकर एक लेखक और कवी को अपने शब्दों के माध्यम से अपना योगदान देना चाहिए ........



दिल पे अघात हुआ है 
अबला पे अत्याचार  हुआ है 

सियासतदारों की नाक के नीचे 
रक्षा के लिए प्रतिबद्ध 
संविधानी तौर पे कटिबद्ध 
पुलिसकर्मियों की खुली आँखों के सामने 
जन सुविधाओं के चालकों ने 
देश की अस्मत पर कुठाराघात किया है 

ऐसे में हम कैसे रहे शांत 
कैसे न उठाये आवाज़ 
क़ानून को ललकारना होगा 
घ्रणित ,विक्षिप्त मानसिकता को 
जड़ से उखाड़ना होगा 

एक आवाज़ उठेगी तो 
सौ संग में जुड़ जाएँगी 
शायद सरकार के कान पे 
जूँ कोई रेंग जायेगी 

एक आवाज़ उठेगी तो 
सौ संग में जुड़ जाएँगी 
शायद सरकार के कान पे 
जूँ कोई रेंग जायेगी .................................पूनम.

Thursday, December 13, 2012

Baadal..........बादल......



बरखा रानी का जन्म दाता ....


अपने कोष में समेटे है धरती का अमृत


वो जो लेता है स्वरुप हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप


वो रखता है क्षमता सूर्य को ढापने की


वो जो फैलाता है माँ सम आँचल तेज 


धुप में


वही जो दिखता है क्षितिज के छोर तक


मुलायम है,सफ़ेद है कभी कोमल रूई सा


सख्त लगता है कभी स्याह कोयले सा


वो जिसे देख नाचे जंगल का मोर


वो जिसे देख खिल उठे मन का भी मोर


वो बदलता है नित नए रूप


कभी नयी वधु सा उदीप्त ,तेजोमय


कभी उदास ,मुरझाई विरह में प्रेमिका


वो जो चंचलता में नहीं कम किसी हिरनी से


वो जिसकी चपलता का चर्चा नहीं कम किसी तरुणी से


वो जो अल्हड सा घुमे चिंता विहीन नवयोवना सा


कभी हाथ में आए ,कभी फिसल जाए


कभी क़दमों में ज़न्नत सजा जाए


वो निराकार ,कभी साकार मेरे सपनो का बादल


अपने कोष में समेटे है पृथ्वी का निर्मल जल ........पूनम

Monday, December 10, 2012

किधर जा रहें हैं .............क्या खो रहें हैं हम ..............



प्रकृति से दूर हो रहें हैं हम
काफी कुछ खो रहे हैं हम


अपनों की बात क्या करें
खुद से भी दूर हो रहे हैं हम


सृजन तो हो रहा है अब भी
सुकून दिल का खो रहे हैं हम


दूर की आवाज़ सुन लेते है
मौन अंतर में बो रहे हैं हम


विश्व को परिवार बनाने चले
निज नाते रिश्ते खो रहे हैं हम


जानते बूझते मूक बधिर बने
इस जिंदगी को ढो रहे हैं हम .......................पूनम