प्रतिदिन के सब काम हो रहे हैं यथावत.....
परन्तु दिल है व्यथित ..
''दामिनी '' ने विदेश में अपनों से बहुत दूर इस निर्दयी दुनिया को त्याग दिया है ....
एक पाली -पनोसी........ तेईस साल ...... डाक्टर बेटी........को खोना क्या और कैसा होता है .हर माँ बाप समझ सकता है ......
परन्तु देश के 'सदर' को अब अनुशासन की चिंता है
.कानून का इस्तेमाल कर दिल्ली में पोलिस की नाकाबंदी की गयी है ...
ये व्यवस्था आम इंसान की सुरक्षा के लिए तब क्यूँ नहीं की जाती ....जब उसका दिल शंकित और असंतुष्ट रहता है
जब तक के बच्चे (खासकर बेटियाँ) स्कूल /कॉलेज /नौकरी से सुरक्षित वापस न आ जाये .......
क्यूँ बलिदान देना पडा उस बच्ची को देश को जगाने को ..
क्यूँ ये जाग्रति हर बार बलिदान मांगती है ......
प्रश्न चिन्ह लगाती है ये
भारतीय सभ्यता और परम्पराओं की दुहाई देने वाले
सियासत दारों के पाषाण रवैये पर ..................
शब्द भी चीत्कार करते हैं
जब उस मासूम का चेहरा ज़हन में लाने की कोशिश की जाती है
जैसे कह रही हो अब भी ''मै जीना चाहती थी ''...........................पूनम
परन्तु दिल है व्यथित ..
''दामिनी '' ने विदेश में अपनों से बहुत दूर इस निर्दयी दुनिया को त्याग दिया है ....
एक पाली -पनोसी........ तेईस साल ...... डाक्टर बेटी........को खोना क्या और कैसा होता है .हर माँ बाप समझ सकता है ......
परन्तु देश के 'सदर' को अब अनुशासन की चिंता है
.कानून का इस्तेमाल कर दिल्ली में पोलिस की नाकाबंदी की गयी है ...
ये व्यवस्था आम इंसान की सुरक्षा के लिए तब क्यूँ नहीं की जाती ....जब उसका दिल शंकित और असंतुष्ट रहता है
जब तक के बच्चे (खासकर बेटियाँ) स्कूल /कॉलेज /नौकरी से सुरक्षित वापस न आ जाये .......
क्यूँ बलिदान देना पडा उस बच्ची को देश को जगाने को ..
क्यूँ ये जाग्रति हर बार बलिदान मांगती है ......
प्रश्न चिन्ह लगाती है ये
भारतीय सभ्यता और परम्पराओं की दुहाई देने वाले
सियासत दारों के पाषाण रवैये पर ..................
शब्द भी चीत्कार करते हैं
जब उस मासूम का चेहरा ज़हन में लाने की कोशिश की जाती है
जैसे कह रही हो अब भी ''मै जीना चाहती थी ''...........................पूनम
इस दु:ख को शब्दों में समेटना मुश्किल है, बस अनुभव ही किया जा सकता है |
ReplyDeleteदर्द से भरी ....
ReplyDeleteइस गुस्से को बनाए रहना होगा .. ये बलिदान व्यर्थ न जाए ...
ReplyDeletewo jeena chahti thi :(
ReplyDeleteवनीत जी ...नव्या ....दिगंबर नासवा जी ....मुकेश सिन्हा जी ......चाहती तो बहुत कुछ थी .......परन्तु सियासत दारों की अनदेखी और दांव-पेंच के सामने बेबस जिन्दगी से हार गयी .....किन्तु एक लौ जगा गयी दिलों में के कुछ तो बदलाव आये मानसिकता में ,कानून में ...पूनम
ReplyDeletehttp://khyaalhainpanne.blogspot.in/2012/12/blog-post_20.html
अलविदा दामिनी...:(
ReplyDeletesahi hai.... maansikta main badlaav jaroori hai.....
ReplyDeleteMarmsparshi
ReplyDelete@सुमित ....विनोद जी ...संजय भास्कर जी अपने भाव प्रकट करने के लिए आभार
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