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Wednesday, January 7, 2015

लावा............


कल की ही तो बात है वैसे,
कोयल   कूक रही हो जैसे,
या कोई चिड़िया चहकी हो,
या फिर कोई कली महकी हो|
हँसी खनकती थी कंगन सी,
काया थी निर्मल कंचन सी|

आज हँसी वो नहीं खनकती,
आँखें अब क्यों नहीं चमकतीं,
अविरल सरिताएँ बहती हैं,
अश्रु धार ये क्या कहती हैं|

पल-पल साथ निभाया तेरा,
तू काया,     मैं साया तेरा|
हर पल तेरी राह निहारी,
मैं तुझपर ही थी बलिहारि|

लेकिन अब ये क्यों लगता है?
तुझसे मुझको डर लगता है|
ज्वालामुखी कोई फूटेगा,
क़हर कोई  मुझपर टूटेगा|

अब बहकर लावा आएगा,
रिश्ते को झुलसा जायेगा|
इस रिश्ते की नर्म ज़मीं पे,
सिर्फ़ फफोले रहेंगे रिसते|

और फफोलों की स्याही से, 
एक क़लम कुछ सच्चाई से, 
आग लिखेगी, आग लिखेगी, 
इक जलता भूभाग लिखेगी|


क्या अब भी वो हवा चलेगी? 
प्रेम-सुवासित काव्य लिखेगी? 
क्या खुश्बू वापस आएगी? 
नज़्मों को फिर महकाएगी?

काश! कि वो दिन वापस आयें, 
मेरी कविता वापस लायें |
रिश्ते का गुणगान लिखूँ मैं 
प्रेम को फिर उन्वान लिखूँ मैं|
प्रेम को फिर उन्वान लिखूँ मैं|

...................poonam matia 'poonam' 

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