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Tuesday, November 4, 2025

शजर पे चाँद उगाओ .......पूनम माटिया के ग़ज़ल संग्रह पर शायर डॉ आदेश त्यागी जी के बेशक़ीमती अशआर Dr AdeshTyagi

 


दिखाई देते नहीं हैं मुहब्बतों के समर
शजर पे चाँद उगाओ, बड़ा अँधेरा है

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शजर पॅ चाँद' मुहब्बतों की रौशनी की वो उम्मीद है जो हर इंसान हर जगह हर वक़्त करता है। मुहब्बत की ग़ैर मौजूदगी का मतलब है एक बेहद अहम हयात-बख़्श उन्सर (जीवनदायी तत्त्व) से महरूम (वंचित) होना जो ज़िन्दगी के शजर (वृक्ष) की शादाबी (तरो-ताज़गी) को ख़त्म कर के उसे बे-गुल-ओ-समर (पुष्प-फल विहीन) कर देता है।

शे'रियत की अरूज़ी (छन्द शास्त्रीय) ख़ुशबू से मुअत्तर यह शे'र किताब-ए-हाज़िरा (प्रस्तुत पुस्तक) का उनवानी शे'र (शीर्षक-शे'र) है जो पूनम माटिया के शे'री मजमूआ (संकलन) के मेआर (स्तर) को बयान कर रहा है।

यूँ तो पूनम माटिया किसी तअरीफ़-ओ-तआरुफ़ (प्रशंसा व परिचय) की मोहताज (निर्भर) नहीं हैं फिर भी उनका यह नया मजमूआ यक़ीनी तौर पर इनकी शोहरत में चार चाँद लगायेगा। इस यक़ीन का कारण यह है कि हालांकि उनकी कई किताबें मंज़र-ए-आम (दृश्य-पटल) पर आ चुकी हैं लेकिन यह पहली मर्तबा है कि अरूज़ी तौल-ओ-अर्ज़ (नापतौल) की कसौटी पर खरी उतरी उनकी ख़ालिस ग़ज़लें शायअ (मुद्रित) हुई हैं।

दुआगो हूँ कि मुहब्बतों के समर को देखने की ख़ाहिशमंद 'पूनम' अपनी ग़ज़लों के ज़रीआ (माध्यम) से चाहने वालों के दिलों के पेड़ की फुनगी पर प्रेम का चाँद टाँकने में कामयाब रहें।

तथास्तु
डॉ आदेश त्यागी
(सहायक पुलिस आयुक्त)
ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश 

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