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Friday, February 8, 2013



ताज़ा मुक्तक........

आँखें न जाने क्या क्या सह जाती है 
कभी जलती हैं आग सी ,कभी दरिया सी बह जाती हैं 
क्यूँ पढता नहीं 'वो' इन्हें 
लब जो कह पाते नहीं ये आँखें अक्सर कह जाती हैं
.......पूनम माटिया 'पिंक'

Taza muqtak ......

Aankhe'n na jaane kya kya sah jaati hain
kabhi jalti hain aag sii ,kabhi dariya se bah jati hain
kyun padhta nahi 'vo' inhe
lab jo kah paate nahi ye aankhe'n aksar kah jaati hain
.
....poonam matia'pink'

15 comments:

  1. बहुत खूब जिंदगी को दृष्टी से देखने का नायाब प्रयास . सुन्दर प्रस्तुति

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    1. मदन मोहन जी ....धन्यवाद .

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  2. hothon se khatash ki jo mn ne lee luft...bhatak gaeen saansain aur thahar rahee aahain .....

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    1. साँसों की भटकन न मालूम कहाँ ले जाए
      आँखों को आँखों का सहारा न मिले तो .......पूनम

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  3. सुंदर प्रस्तुति ॥
    शुभकामनायें ।

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    1. धन्यवाद अनुपमा जी

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  4. आँखें दिल का आइना होती है,बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती।

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  5. राजेंद्र जी धन्यवाद

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  6. क्यूँ पढता नहीं 'वो' इन्हें
    लब जो कह पाते नहीं ये आँखें अक्सर कह जाती हैं.......

    कई बार पढे हुए को ज़ाहिर भी तो नहीं कर पाते ...
    हाय रे इंसान की मजबूरियां !... सुना ही होगा !

    बहुत ख़ूबसूरत !
    पूनम जी

    चित्र और रचना का सामंजस्य देखते ही बनता है ... ... ...

    बसंत पंचमी सहित
    सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
    राजेन्द्र स्वर्णकार

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    1. राजेंद्र जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका .....और हाँ कई बार आँखें पढ़ कर भी ज़ाहिर नहीं कर पाते लोग
      या यूँ कहें कि ज़रूरी नहीं समझते :)

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