समझते समझते सब गुड़ गोबर हो गया. पहली और दूसरी पंक्ति में कैसा तो विरोधाभास है! पढ़ना आसान नहीं फिर भी हर कोई इन्हें पढ़ लेगा... हाय पूनम स्पष्ट करो न प्लीज़.
प्रेम जी .......:) आप जान के अंजान बन रहे हैं ....... खैर ....आँखें पढना मुश्किल है इसलिए शायद बहुत से पढ़ ही नहीं पाते .........बात समझ में आती है .........पर अगर पता हो के कोई इसमें माहिर है .......फिर भी वो अनजान दिखाए खुद को .....तो ?????????????????????????????????
शुक्रिया प्रेम सहजवाला जी ......मेरी रचनाओं के प्रति अपना स्नेह व्यक्त करने के लिए .....आपने कमेन्ट क्यूँ डिलीट किया :) .खैर मैंने वो रात को ही पढ़ लिया था
ओम पुरोहित जी .....कोशिश ही नहीं की मैंने और पंक्तियाँ जोड़ने की ......क्योंकि मैं सिर्फ इतना ही कहना चाह रही थी ........जो कहा और जो आपने समझा :))))))) बहुत बहुत शुक्रिया .......
दिगम्बर जी .......लिखा किस मन से है ...और पाठक किस मंस्तिथि में पढ़ रहे हैं ....दोनों भिन्न हो सकती हैं ......फिर भी मैंने अपने अनुसार लिखा ......हो सकता है उसका अर्थ कुछ और भी निकले ......:) धन्यवाद आपने पसंद की ये ३ पंक्तियों की रचना
समझते समझते सब गुड़ गोबर हो गया. पहली और दूसरी पंक्ति में कैसा तो विरोधाभास है! पढ़ना आसान नहीं फिर भी हर कोई इन्हें पढ़ लेगा... हाय पूनम स्पष्ट करो न प्लीज़.
ReplyDeleteप्रेम जी .......:) आप जान के अंजान बन रहे हैं ....... खैर ....आँखें पढना मुश्किल है इसलिए शायद बहुत से पढ़ ही नहीं पाते .........बात समझ में आती है .........पर अगर पता हो के कोई इसमें माहिर है .......फिर भी वो अनजान दिखाए खुद को .....तो ?????????????????????????????????
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Deleteशुक्रिया प्रेम सहजवाला जी ......मेरी रचनाओं के प्रति अपना स्नेह व्यक्त करने के लिए .....आपने कमेन्ट क्यूँ डिलीट किया :) .खैर मैंने वो रात को ही पढ़ लिया था
Deletebadi mushil hai ye bhasha nigaho ki,jara si bhool hoye saza ban jaye gunaho ki
ReplyDeleteAziz saheb umda sher padha aapne ...........aur sach hi kaha ..........shukriya
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ReplyDeleteआँखें पढना आसान नहीं हर कोई जाने
कोई इन्हें पढना न जाने तो हम माने
पढ़कर भी अनजान बने तो क्या माने
Wah Poonam ji--bahut khoob !
teen hi panktiyon me sari hakikat.
jaandaar evam shandar ! Wah !
ओम पुरोहित जी .....कोशिश ही नहीं की मैंने और पंक्तियाँ जोड़ने की ......क्योंकि मैं सिर्फ इतना ही कहना चाह रही थी ........जो कहा और जो आपने समझा :))))))) बहुत बहुत शुक्रिया .......
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद यशवंत जी .......नमस्कार
Deleteसुन्दर रचन. बधाई.
ReplyDeleteडा. रघुनाथ मिश्र
अधिवक्ता/ साहित्यकार.
रघुनाथ जी ....... आपके आने से रचना स्वत: ही सार्थक हो जाती है .....धन्यवाद
Deleteआपने लिखा ओर फिर उसका मंतव्य भी बखूबी समझा दिया ...
ReplyDeleteतीनों पंक्तियाँ एक फलसफा कह रहीं हैं ...
दिगम्बर जी .......लिखा किस मन से है ...और पाठक किस मंस्तिथि में पढ़ रहे हैं ....दोनों भिन्न हो सकती हैं ......फिर भी मैंने अपने अनुसार लिखा ......हो सकता है उसका अर्थ कुछ और भी निकले ......:) धन्यवाद आपने पसंद की ये ३ पंक्तियों की रचना
Deleteइन अनजानों से ही निपटना है.
ReplyDeleteनवरात्रि और नवसंवत्सर की अनेकानेक शुभकामनाएँ.
सही कहा रचना जी .......इन्ही अनजान लोगों से ही निपटना है :)
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