बहुत दुःख की बात है कि समय बीतता जाता है .......और स्तिथियों में कोई अंतर नहीं नज़र आता .....वे रहती है ज्यों की त्यों ........भयावह ... सजा की कमी है या नैतिक शिक्षा की ....क्या चलता है दीमाग में ऐसी विकृत मानसिकता वाले मानुष रूपी पशु के भीतर जब वह ऐसा कुकृत्य करता है .......क्या उसके खुद के लालन पालन में कुछ कमी रही रह गयी ......या उसने खुद कुछ ऐसा भोगा ...... जो अब उस दबाव को वो सहन नहीं कर पा रहा और इस तरह का दानवीय व्यवहार ज्वालामुखी के रूप में उजागर हो रहा है ......इसमें उस नन्ही, नासमझ,नादान बच्ची का क्या कसूर ....... जो इस उम्र में अभिशापित हो गयी ...........मरने के कगार पे है ....बच गयी तो सारी उम्र के लिए यह दर्दनाक हादसा अपने साथ लेकर जीएगी ......'दामिनी' चली गयी ....और न जाने कितनी रोज पीड़ा भोगती हैं .....स्तिथियाँ बदलती ही नहीं .......... क्यूँ ..........??????????????
कुछ शब्द जो उद्वेलित मन से बह निकले .....
जाने कौन सी इच्छा की पूर्ती कर रहे हैं लोग
वासना की चरम सीमा पर दानवीय व्यवहार
अपनी मर्यादा में क्यूँ नहीं रह पा रहे हैं लोग
न वाज़िब सजा, न आधारभूत नैतिक शिक्षा
पतन संस्कृति का क्यूँ थाम नहीं पा रहे हैं लोग
सियासी दांव-पेंच से आसान है बच निकलना
कानूनी शिकंजे क्यूँ कड़े नहीं कर पा रहे हैं लोग
भोगना, सहना जैसे आदत बन गयी है
संवेदना-शून्य पाषाण क्यूँ बनते जा रहे हैं लोग .................................. पूनम
beshak ak behatareen prastuti वासना की चरम सीमा पर दानवीय व्यवहार
ReplyDeleteअपनी मर्यादा में क्यूँ नहीं रह पा रहे हैं लोग
न वाज़िब सजा, न आधारभूत नैतिक शिक्षा
पतन संस्कृति का क्यूँ थाम नहीं पा रहे हैं लोग
सियासी दांव-पेंच से आसान है बच निकलना
कानूनी शिकंजे क्यूँ कड़े नहीं कर पा रहे हैं लोग
भोगना, सहना जैसे आदत बन गयी है
संवेदना-शून्य पाषाण क्यूँ बनते जा रहे हैं लोग
Aziz saheb bahot shukriya
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