आत्मा का सफ़र खत्म होता नहीं
चलता रहता है ये अनंत , चैन पल भर नहीं
गुजरता है बरसो-बरस कई जज़ीरों से
जानवर , पक्षी , फूल या हम-तुम
जैसे कई शापित मानवी शरीरों से
जब तक ना हो जाए हमारे कर्मो का हिसाब
मोक्ष को तरसती रहे आत्मा ,चलता रहे
जन्म-मरण और जन्म फिर , यह चक्र चिरकाल
कश-म-कश में रहे है जीव ,
कब , कहाँ और कैसे मुक्त हो इस जीवन चक्र से
लालची पूजे देव-देवी या कोई हो पत्थर निर्जीव
इसी आशा में जीवन गुजरता जाए
देंगे कभी तो देव हमें मोक्ष का कोई उपाय
..............पूनम
चलता रहता है ये अनंत , चैन पल भर नहीं
गुजरता है बरसो-बरस कई जज़ीरों से
जानवर , पक्षी , फूल या हम-तुम
जैसे कई शापित मानवी शरीरों से
जब तक ना हो जाए हमारे कर्मो का हिसाब
मोक्ष को तरसती रहे आत्मा ,चलता रहे
जन्म-मरण और जन्म फिर , यह चक्र चिरकाल
कश-म-कश में रहे है जीव ,
कब , कहाँ और कैसे मुक्त हो इस जीवन चक्र से
लालची पूजे देव-देवी या कोई हो पत्थर निर्जीव
इसी आशा में जीवन गुजरता जाए
देंगे कभी तो देव हमें मोक्ष का कोई उपाय
..............पूनम
पूनम माटिया इस कदर दार्शनिक बन गई कि उसे महात्मा कहने को मन करता है. इजाज़त?
ReplyDeleteप्रेम जी दार्शनिक कोई बनता नहीं ....यह तत्व हर किसी की शक्सियत में पहले ही शामिल होता है ....बस देखना ये होता है कि ...कब उभर के आता है .......और अक्सर देखा गया है .....कि जीवन के अनुभव ''दार्शनिकता '' सामने ले आते हैं .....
Deleteऔर हाँ आप को तो १००% इजाज़त है किसी भी संबोधन के लिए ....:)
खूबसूरत रचना
ReplyDeleteजीवन में मोक्ष ही मिले ...ये जरुरी भी तो नहीं
ReplyDeleteअंजू .सच कहा एक जीवन में मोक्ष ( जन्म-मरण से छुटकारा ) मिल जाए ये कहाँ ज़रूरी है ...:)....वे तो विरले ही होते हैं जो मुक्ति पा जाते हैं ............. आपका सदैव स्वागत है
Deleteजब तक ना हो जाए हमारे कर्मो का हिसाब
ReplyDeleteमोक्ष को तरसती रहे आत्मा ,चलता रहे
जन्म-मरण और जन्म फिर , यह चक्र चिरकाल ..
ये चक्र कब खत्म होगा .. इसका पता भी आत्मचिंतन से ही लगेगा ... अन्यथा चक्र तो चलता रहेगा ...
दिगम्बर जी ....सच है आत्मचिंतन और सुकर्म .......हमें मोक्ष का रास्ता दिखा सकते हैं ...
Deleteमोक्ष मिलता भी है या नहीं कौन जाने? जन्म मरण का चक्र कभी रुकता नहीं. दार्शनिकता-से भाव, बहुत सुन्दर, बधाई.
ReplyDeleteजेन्नी स्वागत ....
Deleteकहते हैं जो पुन्यतामाएं सिर( जहाँ से इन्सान पैदा होता है ) उसी रस्ते से प्राण छोड़ती हैं ........ जो कि वे सिर्फ अपनी इच्छा से कर सकती हैं ...... ......(.और यह आत्मबल ,ज्ञान और इस नश्वर संसार में मोह माया से मुक्ति ...........उसे यज्ञ ,तप और सुकर्म से ही प्राप्त होता है .) तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है .........
H AM ANANT YAATRA MEN HAIN. JAB HAMARA SHAREER ATMA KO USAKE GANTAVYA TAK LE JANE MEN AKSHAM VAHAN LAGANE LAGTA HAI TAB WAH US AKSHAM SHAREERR KO CHHOD ANY SHAREE KA SAHAARA LETI HAI APNE UTTHAAN KE LIYE.SHAREER ke LIYE SAB KUCHH AUR AATMA KE LIYE KUCHH NAHIN.IS TARAH HAM APANI AATMAA KE VIKAAS ( moksh) men baadhaa banate hain. sirf intazaar karane se moksha nahin hotaa, usake liye sadaacharan- naitikataa-maanavochit vyavahaar kee aawashyaktaa hai - saadhana ke roop men.
ReplyDeleteDR. RAGHUNATH MISHR
रघुनाथ जी आप सही कहा आपने कि हम /हमारी आत्मा ...अनन्त यात्रा में है ,...और विभिन्न शरीर इसके मार्ग में आने वाले पढाव हैं ....इस रचना में यही बात मैंने उजागर करने की चेष्टा की है ......कि कर्म (सुकर्म ) ही हमें इस मार्ग में लक्ष्य (मोक्ष ) की ओर अग्रसर करते हैं .....या फिर (दुष्कर्म ) हमारा पथ बाधाएं लाकर लम्बा कर देते हैं ....... :)
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