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Wednesday, December 18, 2013

विवाह-उत्सव .........









विवाह तो उत्सव होता है खुशी का 
पर जुड़ा है उससे 
उदासी का भी नाता गहरा 
इक ओर पिया के घर है
इन्तेज़ार दुल्हनिया का 

दूजी ओर छूट रहा है
बाबुल से रिश्ता पुराना 

अश्रुपूर्ण आँखों से निहारती 
मैके के छोटे-बड़े रिश्ते सारे 
समझ न सके 'माँ'
पूछे आंसू अपने या निहारे 
बिटिया को आँचल की ओट से


पिताभाई 
ठिठक कर खड़े हैं दूर 
ललना से बिछड़ने को मजबूर 

लड़की की किस्मत
है लिखी कुछ अजीब 
उसका न कोई अपना घर
है न कोई वज़ूद


विवाह है उत्सव खुशी का 
फिर क्यों
पिता-भाई की आँखें हैं नम 
माँ-बेटी के दिल में 
छिपा है कोई गम
................पूनम माटिया (स्वप्न शृंगार से)

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