कुछ तिरा दर्द भी सताता है ||
कुछ ज़माना भी कह्र ढाता है ||
इक तसव्वुर तेरा है दुश्मन सा |
जो मुझे रात भर जगाता है ||
तर्क तूने ताल्लुकात किये |
फिर मुझे किसलिए बुलाता है ||
ये बता क्या तू खुश है इसमें ज़रा |
दिल मेरा जो तू यूँ दुखाता है ||
इक ख़ुशबू सी छाने लगती है |
जब तू मेरे करीब आता है ||
दिल तो दुश्मन था मुहब्बत का ,मगर |
वक़्त भी ज़ुल्म बहुत ढाता है ||
मैंने दुनिया लुटा दी तेरे लिए |
और तू मुझको आजमाता है ||
आज 'पूनम' की रात है यानी |
वो ग़ज़ल कोई गुनगुनाता है||.....पूनम माटिया 'पूनम'
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